चुनावी राजनीति में निशाने पर आ गए राजा महाराजा, पढ़िए सामाजिक संरचनाओं में कैसी थी इनकी भूमिका?
Lok sabha Election 2024 चुनावी राजनीति में आरोप प्रत्यारोप का दौर है। जहां राहुल गांधी ने राजा-महाराजाओं को मनमर्जी करने और वंचित समाज की भूमि छीन लेने वाला बता दिया। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके इसी बयान को उठाते हुए जनसंबोधनों में राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया। पढ़िए सामाजिक संरचनाओं में कैसी थी राजा महाराजाओं की भूमिका?
Lok sabha Election 2024: चुनावी राजनीति अब चरम पर है और इसके निशाने पर आ गए हैं राजा-महाराजा। उन पर राहुल गांधी की एक टिप्पणी ने देश में तूफान ला दिया है। जबकि भारत की प्राचीन राजतंत्र व्यवस्था भी तानाशाही नहीं, अपितु लोकतंत्र की सुगंध से आपूरित थी। उद्यम, शासन तथा सनातन के अभ्युदय के लिए समर्पित रहे देसी शासकों को विदेशी आक्रांताओं की दुर्दांत छवि के समतुल्य प्रदर्शित-घोषित करना अविवेकपूर्ण आचरण है। पढ़िए महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के पूर्व कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा का आलेख…...।
आधुनिक भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां सभी को है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। परंतु जब बोलने की यही आजादी मनमाना स्वरूप लेती है, तब इससे लोकतंत्र आहत भी होता है। इस सप्ताह राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा ही वाद-विवाद छिड़ गया जब चुनाव प्रचार करते हुए राहुल गांधी ने राजा-महाराजाओं को मनमर्जी करने और वंचित समाज की भूमि छीन लेने वाला बता दिया। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके इसी बयान को उठाते हुए अपने जनसंबोधनों में राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया। मुद्दा यहीं शांत नहीं हुआ है, अब नेताओं से ज्यादा उत्तेजित समर्थक और कार्यकर्ता इस पर आमने-सामने हैं।
इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि भारत की सामाजिक संरचना में राजा-महाराजाओं की ऐतिहासिक भूमिका को सही ढंग से जाना-समझा जाए। वास्तव में वैदिक काल से ही भारत में लोकतांत्रिक मूल्य सामाजिक एवं बौद्धिक चेतना के मूल स्वर के रूप में निरंतर विद्यमान रहे हैं। आधुनिक शब्दावली से अर्थ लें तो भारत के सभी भागों और क्षेत्रों में राजतंत्र ही विद्यमान था, परंतु यह राजतंत्र अपनी मूल प्रकृति और आचरण में लोकतंत्र की भावना से अनुप्राणित रहा।
पश्चिम की भांति भारत में अधिनायकता, अत्याचार, शोषण, अनियन्त्रितता, स्वेच्छाचारिता और क्रूरता के उदाहरण सामान्यतः अनुपस्थित हैं। इसका मुख्य कारण राजतंत्र का धर्म द्वारा अनुशासित एवं मर्यादित रहना था। राजा की कोई स्वतंत्र एवं निर्बाध सत्ता कभी नहीं थी। वह सप्तांग का एक प्रमुख अंग एवं नियोजक था। वह धर्म के अनुरूप कार्य करने को प्रतिबद्ध था। वह प्रजा के हित के लिए अपने निजी हित का परित्याग करने के लिए शपथबद्ध था। उसके लिए लोकाराधन जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य था जिसके लिए किसी भी व्यक्तिगत हित का उत्सर्ग किया जा सकता है। इसीलिए राजा की योग्यताओं और अपेक्षित अर्हताओं पर भारतीय चिंतकों ने विस्तारपूर्वक विचार किया।
प्रजावत्सल धर्मपालक
वैदिक ऋषि यह कामना करता है कि राजा लोक संरक्षण तथा योगक्षेम वहन में इतना तत्पर और उद्यत हो कि समस्त प्रजा उसको चाहे। वनवास के कालखंड में वाल्मीकि के राम अयोध्या के शासक भरत से राजा के रूप में प्रजावत्सल, दयालु, निष्पक्ष, संवेदनशील, सुलभ तथा स्थिरमना होने की अपेक्षा करते हैं। भीष्म शरशैय्या पर युधिष्ठिर को राजधर्म की शिक्षा देते समय कहते हैं कि राजा का प्राथमिक दायित्व लोकरंजन है। कालिदास, भास, भवभूति आदि संस्कृत कवि और थिरुवल्लूर आदि तमिल विचारक राजा के कर्तव्यों की विशद विवेचना करते हैं और उसे अपने राज्य के नागरिकों के समग्र कल्याण में सतत संलग्न रहने का निर्देश देते हैं। आचार्य कौटिल्य राजा को स्पष्ट आदेश देते हैं कि प्रजा के हित में ही राजा का हित है।
अन्यथा कुछ नहीं। वस्तुतः भारत में राजा होना एक अधिकार नहीं अपितु दायित्व और धर्मपालन का द्योतक रहा है। इसीलिए अधर्म में प्रवृत्त व्यक्ति को राजा बनने से रोकने के पर्याप्त प्रबंध भी किए गए थे।
सनातन के संरक्षक
कालांतर में भारत ने अनेक विदेशी और विधर्मी आक्रमण देखे जिनके परिणामस्वरूप बलपूर्वक मतांतरण, लूट और हत्याएं हुईं। उपासना स्थल नष्ट किए गए। युवतियां अपहृत और अपमानित हुईं। मूर्तियां खंडित की गईं। शिक्षा स्थान ध्वस्त किए गए, अनेक राजवंश बनते और बिगड़ते रहे परंतु भारतवर्ष के अनेक क्षेत्रों और भागों में सनातन धारा प्रवहमान रही। इन राजवंशों के राजाओं, महाराजाओं ने अपने नागरिकों और समाजों के कल्याण के लिए अनथक परिश्रम किए। पाल, मौखरि, चालुक्य, प्रतिहार, पल्लव, राष्ट्रकूट, प्रद्योत, होयसल, चेदि, चेर, काकातीय, परमार, भारशिव, कर्कोटक, भोंसले, सिन्धिया, हर्यक, सालुव, पुष्यभूति, उत्पल, वाकाटक, सातवाहन, पाण्ड्य, शुंग, वर्धन, गुप्त आदि राजवंशों के राजा-महाराजाओं ने अनेक वर्षों के आक्रमणों से त्रस्त भारतवर्ष की आत्मा को बचाए रखा।
उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में लोककल्याण के यथासंभव और यथाशक्ति प्रयत्न किए। इसी कारण भारत बार-बार लूटे जाने के बाद भी सोने की चिड़िया बना रहा। भारत सहस्राधिक वर्ष तक विश्व की जीडीपी में 20 से 30 प्रतिशत का अंशदाता रहा, यह तथ्य अब सार्वजनिक हो चुका है। भारतवर्ष के सामान्य नागरिक की जिजीविषा और कर्मठता को सही दिशा और नेतृत्व भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान राजा महाराजा ही प्रदान करते रहे।
श्रद्धा से भरा स्मरण
प्रथम शताब्दी में करिकाल चोल द्वारा कावेरी नदी पर बाढ़ तट निर्माण, राज राजेन्द्र चोल द्वारा सिंचाई व्यवस्था, राजमार्ग निर्माण, अद्यतन विस्मयकारी वृहदीश्वर का निर्माण, कृष्णदेव राय द्वारा उद्योग, वाणिज्य, व्यापार और आधारभूत संरचना का विकास, चामराज राजेन्द्र वाडियार द्वारा औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात तथा विश्व के सबसे बडे बांध का निर्माण, अहिल्याबाई होलकर द्वारा न्याय, समृद्धि, शांति के लिए लगभग तीन दशक तक अविस्मरणीय प्रयास और देशभर में विधर्मियों द्वारा विनष्ट मंदिरों का जीर्णोद्धार आदि असंख्य श्लाघनीय कार्य विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में भारतवर्ष के राजाओं ने किए, जिनका स्मरण आज भी श्रद्धा से भर देता है।
विश्व की शक्तियों को आतंकित करने वाले अफगानियों पर शौर्य और पराक्रम से शासन करने वाले महाराजा रणजीत सिंह के समाज कल्याण को कैसे विस्मृत किया जा सकता है? भारतवर्ष में सुशासन, न्यायप्रियता, दृढ़ता, लोकप्रियता और शूरवीरता के प्रत्यक्ष विग्रह छत्रपति शिवाजी महाराज एक अविस्मरणीय राजा थे जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। अपने राज्य के लिए घास की रोटी खाकर भी अनवरत युद्धरत महाराणा प्रताप भी भारत के वंदनीय राजा थे। देशभर में यंत्र और मंत्र की भारतीय पारंपरिक ज्ञान परंपरा के प्रत्यक्ष केंद्र स्थापित करने वाले खगोलशास्त्री, वास्तुकार, गणितज्ञ सवाई जयसिंह भी भारत के राजा थे। अपनी विद्वत्ता, शक्ति, सामर्थ्य, दयालुता और प्रत्युत्पन्नमतित्व से ख्यातिप्राप्त राजा भोज का स्मरण आज रोमांचित कर देता है।
आधुनिक त्रिपुरा के निर्माता
महाराजा बिरेंद्र किशोर माणिक्य बहादुर देववर्मन भी भारत के राजा थे। डॉ. बीआर आंबेडकर जैसे आधुनिक भारत के अत्यंत सम्मानित राजपुरुष को श्रेष्ठ शिक्षा सुविधा प्रदान करने वाले सयाजीराव गायकवाड भी राजा थे। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में 23 वर्ष की आयु में शिशु को पीठ पर बांधकर अश्व पर सवार होकर खड्ग चलाती और अंग्रेजों को भयाक्रांत करती लक्ष्मीबाई भी भारत की रानी थीं। रिवाडी के राव तुलाराम, आरा के कुंवर सिंह, जगदीशपुर के अमर सिंह, मैनपुरी के महाराजा तेज सिंह चौहान जैसे अनेकानेक भारतीय राजाओं ने स्वातंत्र्य संग्राम में प्राणाहुति देकर भारत की स्वाधीनता का मार्ग प्रशस्त किया।
काबुल में 1915 में अंतरिम सरकार के राष्ट्रपति बने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा महेंद्र प्रताप का स्मरण भी आनंदप्रद है। वस्तुतः आधुनिक भारत के निर्माण में प्राचीनतम परंपरा से लेकर संविधान निर्माण तक भारत के राजाओं और महाराजाओं का अप्रतिम योगदान है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के निर्माण में अनेक
भारतीय राजाओं का योगदान है। ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से लेकर भारतवर्ष में अनेक आधुनिक विश्वविद्यालयों के भवन तथा प्रांगण राजा महाराजाओं के औदार्य के प्रमाण के रूप में अवस्थित हैं।
राजा को भारत माना गया है पिता तुल्य
भारत में राजा को पिता तुल्य माना गया है। महाकवि कालिदास कहते हैं कि हे राजन्, प्रजा की पिता की भांति रक्षा करो। भीष्म कहते हैं कि सदा प्रजारंजन में प्रवृत्त रहना, सत्य की रक्षा करना और प्रजा का पालन ही राजाओं का सनातन धर्म है। अत्रि-स्मृति व्यवस्था करती है कि दुष्टों को दंड देना, नियम पालन करने वालों को प्रोत्साहन देना, न्यायपूर्वक कोष का वर्धन करना, पक्षपातरहित रहना और निज राष्ट्र की रक्षा के लिए सभी प्रकार के उपाय करना-ये पांच ही राजा के धर्म हैं।
अतः भारत के राजा भिन्न भिन्न राज्यों का शासन संचालन करते रहे, विविध मतावालंबियों को प्रश्रय प्रदान करते रहे, जनकल्याण हेतु जलाशय, कूप, बावड़ी, सामुदायिक स्थल, राजमार्ग, प्रपात, कुंड, तीर्थ, मंदिर आदि बनवाते रहे। संस्कृति, शिक्षा, विद्या, ज्ञान, साहित्य, कला, स्थापत्य, संगीत, वाद्य, नृत्य, अभिनय, चित्रकला, वास्तु, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में नैपुण्य को प्रोत्साहित एवं संवर्धित करते रहे। भाषाओं और बोलियों को जीवित रखते रहे।
टी. गणपति शास्त्री नामक सामान्य व्यक्ति को उपलब्ध हुए महाकवि भास के ईसा से चार शताब्दी पूर्व लिखित 13 नाटकों का प्रकाशन यदि त्रावणकोर के महाराजा ने न कराया होता तो हमें आज तक यह ज्ञानराशि अप्राप्य रहती। आर. शामशास्त्री नामक स्तकालयाध्यक्ष को उपलब्ध हुए कौटिल्यकृत अर्थशास्त्र को यदि मैसूर के महाराजा ने प्रकाशित न कराया होता तो लोक प्रशासन, राजनीति विज्ञान और आर्थिक प्रबंधन के इस अद्भुत ग्रंथ से विश्व अपरिचित ही रह जाता। यह सूची लंबी और विस्तृत है।
आक्रांताओं से जन्मी आशंका
तत्वतः चुनावी लाभ के लिए भारत के राजा महाराजाओं को पाश्चात्य राजतंत्रों के चश्मे से देखना अनुचित भी है और अवांछित भी। वस्तुतः शक, हूण, कुषाण, यवन, म्लेच्छ आक्रमणों को भारतीय समाज में समाहित कर चुकी भारत की सामाजिक प्रज्ञा ने सातवीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक जो निर्मम, क्रूर, हिंसक, आततायी, बर्बर, विध्वंसक, पाशविक और लुटेरे आक्रांता और शासक देखे तो राजतंत्रात्मक व्यवस्था का भयावह स्वरूप उसे डराने लगा। खिलजी, लोधी, गुलाम, ऐबक, मुगल आक्रमणों ने भारतवर्ष की सामाजिक सांस्कृतिक संरचना पर भी प्रहार किया। पाश्चात्य साम्राज्यवादियों ने भारत की बौद्धिक और अकादमिक चेतना को पददलित कर डाला।
फलस्वरूप हमारे मन-मस्तिष्क में राजत्व के प्रति आशंकाएं घर कर गईं इसीलिए साधारणतः अपनी दुर्दशा के लिए शासक को उत्तरदायी बताना अभ्यास हो गया। आधुनिक भारत के निर्माण में देश के असंख्य बलिदानियों, राष्ट्रभक्तों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, कवियों, साहित्य-सर्जकों, शिक्षकों, पत्रकारों, मजदूरों, किसानों, रक्षा-कर्मियों, राजनेताओं, अधिवक्ताओं आदि की भांति भारत के राजा-महाराजाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यह तथ्य बिना किसी राजनीतिक कुटैव के हम भारतीयों को सदैव स्मरण करना चाहिए।
गणराज्य को समर्पित राज्य
संविधान द्वारा प्रदत्त संसदीय लोकतंत्र ने हमें अनेक अधिकार और सुविधाएं दी हैं परंतु यह स्मरण करना समीचीन होगा कि संविधान सभा में भी भारतीय राजा अथवा उनके प्रतिनिधियों की संख्या लगभग एक चौथाई थी। 28 अप्रैल, 1947 को भारतीय राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा की बैठक में प्रथम बार सम्मिलित हुए। बड़ौदा राज्य के प्रतिनिधि ब्रजेंद्र लाल मित्तर ने कहा कि हम संघ गणराज्य भारत का अभिन्न अंग हैं और भारत के संविधान के निर्माण के उत्तरदायित्व में सहभागी
बनना चाहते हैं।
बीकानेर राज्य के प्रतिनिधि के. एम. पणिक्कर ने तो प्रश्न पूछ डाले कि क्या हम भारत के विषयों में कम देशभक्त हैं? क्या हम भारत के भविष्य के प्रति कम चिंतित हैं? वस्तुतः संविधान सभा की बहसों में भी भारत के राजा-
महाराजाओं की भारत के भविष्य के प्रति सहानुभूतिपूर्वक चिंता दृष्टिगोचर होती है। यह रोचक संयोग ही है कि मैसूर के महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ द्वारा स्थापित और अब सरकारी उपक्रम मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी उस अमिट स्याही की एकमात्र निर्माता है जो निर्वाचन आयोग द्वारा उपयोग में लाई जा रही है।
(लेखक महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के पूर्व कुलपति हैं)
Lok sabha Election 2024: अब शादी-विवाह से लेकर चुनाव तक में पूरा प्रबंधन काम करता है। चुनाव को ही लें, अब दौर बदल गया है। पहले दीवारों पर पोस्टर लगाए जाते थे, नारों से दीवार रंगी जाती थी। अब बदले दौर में पेशेवरी कंपनी के हाथों में चुनाव की कमान आ गई है। जानिए किस तरह चुनाव प्रबंधन का काम हो रहा है।
बदल गया दौर, अब दीवारों पर पोस्टर नहीं, कंपनी के हाथों में आई चुनाव की कमान
आम चुनाव-2024 अब मतदान के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। प्रचार से लेकर मतदान तक, मतदाताओं को बांधे रखने के लिए कैसे किया जाता है चुनाव का प्रबंधन, इसकी पड़ताल की मनोज त्यागी ने...।
एक समय था जब शादी-विवाह से जुड़ी व्यवस्था घर के लोग ही संभाल लेते थे और कुछ कच्चा-कुछ पक्का होते हुए सब संपन्न हो जाता था। कोई अव्यवस्था हुई भी तो आपस में देख-समझकर उसको दूर करने के लिए प्रयास होते थे, या फिर ताउम्र रह जाती थी वह खटास जो इसी अव्यवस्था के साथ सात फेरों से जुड़ जाती थी। यही हाल चुनाव के दिनों में भी होता था। कहीं प्रचार हो पाया, कहीं अधूरी रह गई कोशिश। मगर अब शादी-विवाह से लेकर चुनाव तक में पूरा प्रबंधन काम करता है।
दीवारों पर पोस्टर लगाने से चुनाव प्रबंधन तक
चुनाव प्रबंधन से राजनीतिक दलों को भरपूर लाभ भी मिला। पहले के चुनाव की बात करें तो दीवारों को पार्टी के रंगों से रंग दिया जाता था, रंग-बिरंगे पोस्टर लगाकर दीवारों की सूरत ही बदल दी जाती थी। समय के साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया। इंटरनेट मीडिया के इस युग में कुछ लोगों ने बहुत ही साइलेंट तरीके से कंपनी का गठन किया और चुनावों का प्रबंधन कैसे किया जाए इस पर बाकायदा शोध किया गया। भारत में इस तरह से चुनाव प्रबंधन का पहली बार प्रयोग भाजपा अध्यक्ष रहते हुए नितिन गडकरी ने 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में किया। इसके बाद पेशेवर चुनाव प्रबंधन का प्रयोग दूसरे दलों ने भी किया।
मतदाता तक लगातार दस्तक
आज कई चुनाव प्रबंधन कंपनियां यह काम कर रही हैं। आईवी ब्लू रिसर्च के निदेशक अमरीश त्यागी बताते हैं, ‘चुनाव प्रबंधन में जुटी कंपनियां बूथ डेटा इकट्ठा करती हैं। रिसर्च होती है कि इंटरनेट मीडिया पर कौन से स्थानीय मुद्दों पर चर्चा हो रही है। किन मुद्दों को लेकर लोगों में आक्रोश है। जिस पार्टी के लिए कंपनी क्षेत्रवार काम करती है, उससे जुड़े ही मुद्दों को इकट्ठा किया जाता है। यह नहीं है कि बंगाल के मुद्दों पर उत्तर प्रदेश के किसी एक संसदीय क्षेत्र में प्रयोग करें।
जनता से मुद्दों पर की जाती है बात
कंपनी से जुड़े लोग महिलाओं, बुजुर्ग, युवा, किसान आदि से बात करते हैं, उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राय ली जाती है। शासन से मिलने वाली योजनाओं पर लाभार्थियों से बात होती है। घर, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, किसानों को मिलने वाली सहायता राशि आदि की क्या स्थिति है, कंपनी इसको समझती है। योजनाओं की जानकारी भी जनमानस तक पहुंचाने का काम चुनाव प्रबंधन से जुड़ी कंपनी करती हैं। इसके लिए कंपनी से जुड़े लोग नागरिकों से सीधे जुड़ते हैं। उनसे जानकारी करते हैं कि योजना का लाभ उन्हें मिल रहा है या नहीं।
ये सभी जानकारी जुटा कर पार्टी तक पहुंचाने का काम कंपनी करती है। इंटरनेट
मीडिया के जरिए भी लोगों तक पार्टी की रीति-नीति के बारे में जानकारी पहुंचाई जाती है। मतदाता को समय-समय पर यह भी याद दिलाना होता है कि उसको योजना का लाभ मिल रहा है या नहीं और वह योजना किस सरकार या पार्टी द्वारा
संचालित है।’
भारतीय चुनाव व्यवस्था की दुनिया कायल
अमरीश बताते हैं, ‘भारत की चुनाव व्यवस्था के सभी देश कायल हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने लोगों की राय जानने और उन्हें पक्ष में प्रेरित करने के लिए मुझे बुलाया था। उस समय ट्रंप लगातार बीजिंग और बेंगलुरु को टारगेट कर रहे थे। बेंगलुरु को टारगेट करने से भारतीय समुदाय आहत हो रहा था। लोगों से बात की गई तो उन्होंने यह जानकारी दी। तभी बेंगलुरु को ट्रंप के भाषण से निकाल दिया गया था।'
तकनीक के दौर में बढ़ जाती है राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी
अमरीश मानते हैं कि इस तकनीक के दौर में हमारी और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इसी सप्ताह तेलंगाना से जैसा मुद्दा सामने आया, एआई के जरिए जिस तरह से छेड़छाड़ की जा रही है, वह बहुत ही घातक है। फेक और रियल में बहुत बारीक अंतर है जिसे सामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता है। आज यह भी जरूरी है कि विश्वविद्यालयों में चुनाव प्रबंधन पर नए कोर्स चलाए जाएं। इससे युवाओं को रोजगार के साथ देश को पढ़े-लिखे नेता मिलेंगे। साफ-सुथरे लोग आएंगे, तो देश तरक्की करेगा। लोकतंत्र का मतलब ही उम्मीद है!’
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