प्रो. रसाल सिंह। आम चुनावों में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल अपने वादों और घोषणा पत्रों के माध्यम से जनता को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को ‘संकल्प पत्र’ नाम दिया है, वहीं कांग्रेस ने इसे ‘न्याय पत्र’ कहा है। इसके अलावा भी कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों के घोषणा पत्र आए हैं। विपक्षी मोर्चे आइएनडीआइए के घटक दलों में कांग्रेस, द्रमुक, सपा, आप, राजद, माकपा और भाकपा के घोषणा पत्रों में कई समानताएं तो हैं, लेकिन उनमें वैचारिक या राजनीतिक स्तर पर अनेक असमानताएं भी हैं।

प्रश्न है कि यदि आइएनडीआइए सत्ता में आता है तो क्या उसके घटक दल उन विषयों पर कोई कानून ला पाएंगे, जिन पर उनमें आपसी मतभेद, अंतर्विरोध और असहमति है? यदि आइएनडीआइए सत्ता में आता है, तो क्या उसकी सरकार पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को पुनर्जीवित करेगी? क्या नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) को रद करेगी?

क्या निजी क्षेत्र में नौकरियों के लिए आरक्षण लाएगी? क्या राज्यपाल का पद समाप्त करेगी या उसकी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव करेगी? क्या अनुच्छेद-356 को खत्म करेगी? क्या जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करेगी? इन सवालों का जवाब इस पर निर्भर करेगा कि आप किस पार्टी का घोषणा पत्र पढ़ रहे हैं।

कांग्रेस ने अपने ‘न्याय पत्र’ में जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी को पूर्ण राज्य एवं आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का वादा तो किया है, लेकिन दिल्ली को लेकर चुप्पी साध रखी है। वहीं आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को तो पूर्ण राज्य बनाने की बात की है, लेकिन अन्य राज्यों को लेकर मौन है। कांग्रेस और द्रमुक ओपीएस की बहाली पर चुप हैं, जबकि सपा, राजद, माकपा और भाकपा ने उसकी बहाली का वादा किया है। कांग्रेस, सपा और राजद जहां सीएए पर चुप हैं, वहीं द्रमुक, माकपा और भाकपा ने इसे खत्म करने का वादा किया है।

आइएनडीआइए के घटक दलों के घोषणा पत्र कई मुद्दों पर एकमत भी हैं, जिनमें राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराना, अग्निपथ योजना को खत्म करना, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को अपनाना शामिल है। कांग्रेस, सपा और माकपा ने एमएसपी को कानूनी गारंटी देने, शहरी रोजगार गारंटी कानून बनाने और मनरेगा के तहत मजदूरी बढ़ाने का वादा किया है।

कांग्रेस ने जहां केंद्र सरकार में विभिन्न स्तरों पर 30 लाख पदों पर भर्तियों का वादा किया है, वहीं राजद ने एक करोड़ सरकारी नौकरियों का वादा किया है। बिना कोई आंकड़ा दिए सपा के घोषणा पत्र में खाली पदों को भरने और राष्ट्रीय रोजगार नीति बनाने की बात कही गई है, लेकिन किसी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे इतनी सरकारी नौकरियों कहां से देंगे तथा इसके लिए धन कहां से लाएंगे? घोषणा पत्रों में रोजगार का मतलब केवल सरकारी नौकरियां प्रतीत होता है।

यह तो सरकार पर लोगों की निर्भरता बढ़ाने के साथ-साथ देश पर आर्थिक बोझ में बढ़ोतरी का सौदा होगा। निजी क्षेत्र में आरक्षण पर भी आइएनडीआइए के दल एकमत हैं। कांग्रेस ने कहा है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी को निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने के लिए एक कानून बनाएगी। सपा ने निजी क्षेत्र में सभी वर्गों के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का वादा किया है। द्रमुक ने कहा है कि निजी क्षेत्र में सकारात्मक नीतियों को लागू करने के लिए निर्णायक कार्रवाई की जाएगी। वामपंथी दलों ने एससी, एसटी, ओबीसी और दिव्यांगों के लिए निजी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का वादा किया है।

वामपंथी दलों माकपा और भाकपा ने ‘परमाणु, रासायनिक और जैविक आदि हथियारों का पूर्ण रूप से उन्मूलन करने की बात कही है। माकपा भारत-अमेरिका रक्षा फ्रेमवर्क समझौते, क्वाड और आइटूयूटू से बाहर निकलने की पक्षधर है। इस विषय पर अन्य घटक चुप हैं। राज्यपाल को लेकर भी आइएनडीआइए के घटक दलों ने कई वादे किए हैं, जिसमें राज्यपाल की नियुक्ति प्रक्रिया में संशोधन करने तथा उसकी शक्तियों को कम करना भी शामिल है।

द्रमुक ने वादा किया है कि नई सरकार राज्य के मुख्यमंत्रियों के परामर्श से राज्यपालों की नियुक्ति के लिए कार्रवाई करेगी। संविधान की धारा 361 को हटाएगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि राज्यपाल भी कानूनी कार्रवाई के अधीन हो। भाकपा ने कहा है कि वह सुनिश्चित करेगी कि राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्यमंत्री द्वारा सुझाए गए तीन प्रतिष्ठित व्यक्तियों के पैनल से की जाए। भाकपा, माकपा और द्रमुक अनुच्छेद-356 को हटाने के पक्ष में हैं, वहीं अन्य सहयोगी दल इस पर चुप हैं।

स्पष्ट है कि आइएनडीआइए के घटक दलों के पास न तो कोई एकसमान नजरिया है और न ही एक जैसी रणनीति। उनके घोषणा पत्रों में मौलिक सोच का अभाव दिखता है, जिसमें न तो रोजगार बढ़ाने, बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी कम करने को लेकर कोई ठोस योजना है और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को मजबूत करने का कोई विजन है। आखिर ऐसे विरोधाभास के बीच यदि आइएनडीआइए सत्ता में आ भी जाता है तो वह सत्ता में देर तक कैसे टिक सकेगा?

इसका भी वही हश्र हो सकता है, जो जनता पार्टी के मोरारजी देसाई और राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा के वीपी सिंह और राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा की देवेगौड़ा और गुजराल सरकार का हुआ था। इस पर हैरानी नहीं कि मतदान के दो चरण बीत जाने के बाद भी आइएनडीआइए अपनी एकजुटता का प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। इसका कारण यही है कि विपक्षी गठबंधन में एकजुटता कायम करने के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं हुए।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कालेज में प्रोफेसर हैं)