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    बगीचा लगा खुद तो हुए आत्‍मनिर्भर और को भी किया प्रेरित

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Wed, 31 May 2017 06:00 AM (IST)

    टिहरी के फैगुल गांव निवासी नरेंद्र ने स्वप्रयासों से करीब एक एकड़ जमीन पर बगीचा खड़ा किया है। खुद तो आत्मनिर्भर बने ही, अन्य लोगों अपना उद्यम लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

    बगीचा लगा खुद तो हुए आत्‍मनिर्भर और को भी किया प्रेरित

    नई टिहरी, [मधुसूदन बहुगुणा]: एक ओर लोग जहां खेती से विमुख होकर शहरों की राह पकड़ रहे हैं, वहीं नरेंद्र धनोला ने बागवानी को बढ़ावा देकर खुद तो आत्मनिर्भर बने ही, अन्य लोगों अपना उद्यम लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। टिहरी जिले के फैगुल गांव निवासी 45 वर्षीय नरेंद्र ने स्वप्रयासों से करीब एक एकड़ जमीन पर बगीचा खड़ा किया है। जो आज उनके जीवन में भी मिठास घोल रहा है। अब तो उनका अधिकांश वक्त बागवानी ही बीतता है।

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    जिले में शायद ही किसी काश्तकार ने इतना बड़ा बागीचा तैयार किया हो। नरेंद्र ने बागीचे में आम की दशहरी,  लंगड़ा, चौंसा, कलमी प्रजाति के 250, जबकि लीची के 30, आडू़ के 50, पुलम के 45 और खुमानी के 25 पेड़ हैं। इसके अलावा कागजी नींबू, संतरा व कटहल का भी नरेंद्र उत्पादन करते हैं। फलों से वह सालाना करीब ढाई लाख रुपये कमा देते है। जिले में अन्य स्थानों पर जहां लीची का उत्पादन नहीं होता, वहीं उनके बाग में लीची के पेड़ फलों से लकदक हैं।

    बागवानी के माध्यम से नरेंद्र पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दे रहे हैं। उनकी देखादेखी अन्य लोग भी अब बागवानी के लिए प्रेरित हो रहे हैं। कई लोग उनसे बागवानी के लिए सलाह भी लेते हैं। नरेंद्र कहते हैं कि उनका उद्देश्य लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करना है। इसमें वह सफल भी हो रहे हैं।

    फलों की खुद करते हैं पैकिंग

    नरेंद्र ने बागीचे में पास स्टोर भी बना रखा है, जहां वे फलों को स्टोर करते हैं। इसके बाद वह खुद ही प्लास्टिक की क्रेट या पेटी में फलों की पैकिंग कर उन्हें चंबा मंडी पहुंचाते हैं। जबकि, कई लोग फलों को खरीदने फैगुल पहुंच जाते हैं। नरेंद्र का कहना है कि उनके उत्पाद की चंबा में ही खपत हो जाती है। 

    वहीं, ग्राम फैगुल निवासी रघुवीर धनोला का कहना है कि आज उनके बागीचे में पेड़ फलों से लकदक हैं। उनसे प्रेरणा लेकर अन्य लोग भी बागवानी की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

    वहीं, ग्राम फैगुल निवासी अमरदत्त बडोनी का कहना है कि नरेंद्र ने अन्य युवाओं को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि इच्छाशक्ति से वे घर बैठे भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं। नरेंद्र आज जो है, अपनी मेहनत की बदौलत है।

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