टीचर की नौकरी छोड़ जला रहा लोगों के घरों के चूल्हे
मातृभूमि की सेवा का जज्बा जब जगा तो टीचर की नौकरी छोड़कर यह युवक अपने गांव आ गया। इसके बाद सीमित संसाधनों से स्वरोजगार का काम शुरू किया। अब इससे पंद्रह घरों के चूल्हे जल रहे हैं।
कोटद्वार, [अजय खंतवाल]: देश के बड़े विश्वविद्यालयों में शुमार लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवक्ता पद पर तैनात एक युवक ने सिर्फ इसलिए सेवा से त्यागपत्र दे दिया, क्योंकि वह पद पर रहते हुए अपनी मातृभूमि की सेवा नहीं कर पा रहा था।
इस युवक ने नौकरी छोड़कर घर में मौजूद संसाधनों से ही नमकीन बनाने का कार्य शुरू किया। परिजनों का सहयोग मिला तो धीरे-धीरे मुहिम रंग लाने लगी और आज इस युवक के तैयार किए उत्पादों के कद्रदान देश ही नहीं, विदेशों में भी हैं। साथ ही इस युवक की बदौलत 15 घरों के भी चूल्हे जल रहे हैं। अब उनका ध्येय कारोबार बढ़ाने के साथ ज्यादा से ज्यादा युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ना है।
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बात हो रही है कुमाऊं मंडल के ग्राम लंगारी (पिथौरागढ़) निवासी डॉ. अमित जोशी की, जिन्होंने अपनों को संबल देने के लिए ऐशोआराम की नौकरी को तिलांजलि दे दी।
अमित के इस प्रयास को सार्थक बनाने में उनके पिता ओपी जोशी व मां देवकी देवी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। चार भाइयों में सबसे बड़े अमित ने शुरुआती दौर में माता-पिता व भाइयों की मदद से सामान्य नमकीन का कारोबार शुरू किया।
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माता-पिता घर में नमकीन बनाते और चारों भाई इसे घर-घर बेचकर आते। लोगों को उत्पाद पसंद आया तो उन्होंने स्टाल लगाकर नमकीन की बिक्री शुरू कर दी। बिक्री बढ़ने लगी तो स्थानीय युवाओं के लिए भी रोजगार के दरवाजे खुलने लगे।
वर्तमान में 'कुमाऊं नमकीन' के नाम से इस नमकीन की ऑनलाइन बिक्री हो रही है। अमित मंडुवा, भट्ट, सोयाबीन, गहथ, झंगोरा, मेथी व लहसुन की नमकीन बना रहे हैं। वर्तमान में उनके तीनों भाई अपनी-अपनी नौकरियों में हैं, सो कारोबार पिता ही देख रहे हैं।
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40 वर्षीय डॉ. अमित बताते हैं कि आज उनके पास इजराइल, जर्मनी, साउथ अफ्रीका सहित कई अन्य देशों से नमकीन की डिमांड आ रही है। लेकिन, पर्याप्त संसाधन न होने के कारण वे इस डिमांड को पूरा नहीं कर पा रहे।
नहीं मिल रहा मंडुवा, झंगोरा भी दुर्लभ
सरकार भले ही मंडुवा, झंगोरा, भट्ट जैसे उत्पादों को बढ़ावा देने के दावे कर रही हो, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। अमित की मानें तो कुमाऊं में मंडुवा व झंगोरा नहीं मिल पाने के कारण वे इन उत्पादों के लिए गढ़वाल मंडल में आते हैं।
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वर्तमान में प्रतिवर्ष 300 क्विंटल से अधिक मंडुवा व झंगोरे की नमकीन बन रही है। जिस तरह लगातार डिमांड बढ़ रही है, यह मात्रा भी कम पड़ती जा रही है। बताया कि दालों के लिए भी उन्हें यहां-वहां भटकना पड़ता है।
मेहनत का मिल रहा फल
अमित व उनके परिवार की ओर से पहाड़ में पलायन रोकने के लिए की जा रही इस छोटी सी कोशिश के परिणाम काफी सकारात्मक रहे। वर्ष 2004 में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर 'नेशनल माइक्रो इंटरप्रेन्योर अवार्ड', वर्ष 2007 तीलू रौतेली पुरस्कार, वर्ष 2008 में नेशनल प्रोडेक्टविटी अवार्ड, वर्ष 2010 में राज्य लघु उद्योग पुरस्कार व वर्ष 2016 में उत्तराखंड विभूषण सम्मान मिल चुके हैं।
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