मां राजराजेश्वरी अपने भक्तों को भर देती है धनधान्य से
पौड़ी गढ़वाल के देवलगढ़ में मां राजराजेश्वरी का पवित्र धाम स्थित है। मान्यता है कि मां अपने भक्तों को धनधान्य से भर देती है। ...और पढ़ें

देवलगढ़, पौड़ी गढ़वाल [जेएनएन]: गढ़ नरेशों की राजधानी देवलगढ़ में मां राजराजेश्वरी का पवित्र धाम स्थित है। मां राजराजेश्वरी का धाम भक्तों व श्रद्धालुओं के लिए वर्षभर खुला रहता है। यहां चैत्र व शारदीय नवरात्रों के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है। वहीं 14 अप्रैल को हर वर्ष (बैसाखी) विखोत मेले का आयोजन विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है। दस महाविद्याओं में तृतीय महाविद्या षोढषी को मां राजराजेश्वरी कहा जाता है। मां राजराजेश्वरी को महात्रिपुरा सुंदरी, कामेशी, ललिता, त्रिपुर भैरवी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। मां को वेदों और तंत्र शास्त्रों में योग, ऐश्वर्य व मोक्ष की देवी माना जाता है।
खुलने का समय
मां राजराजेश्वरी मंदिर देवलगढ़ भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए बारामास खुला रहता है। मां के मंदिर के कपाट देवी स्नान, आरती-पूजा अर्चना के साथ ब्रह्ममुहूर्त में ही श्रृद्धालुओं के लिए खुल जाते हैं। शाम साढ़े सात बजे विधि विधान से पूजा के साथ कपाट बंद कर दिए जाने हैं, लेकिन नवरात्रों में मंदिर में विशेष हवन किया जाता है।
इतिहास
14 वीं शताब्दी में देवलगढ़ के सिद्धपीठ मां राजराजेश्वरी की स्थापना 1512 में गढ़वाल नरेश राजा अजयपाल ने की थी। उन्होंने मां के मंदिर में उन्नत श्रीयंत्र स्थापित किया था। मां राजराजेश्वरी के तीन मंजिला मंदिर में राजा ने सबसे ऊपरी कक्ष में श्रीयंत्र, महिष मर्दिनी यंत्र, कामेश्वरी यंत्र, मूर्तियां व बरामदे में बटुक भैरव की स्थापना की है। साथ ही मंदिर में भगवान बदरीनाथ की डोली, केदारनाथ की डोली, दक्षिण काली की डोली, शिवलिंग भी स्थापित है।
महातम्य
केदार खंड में राजगढ़ी देवलगढ़ का उल्लेख है कि चित्रवती नदी व ऋषिगंगा के मध्य ऊंची चोटी पर देवताओं का गढ़ स्थित है। जिसे पुरातन काल तक द्यूलगढ़ के नाम से जाना जाता था। जो बाद में देवलगढ़ के नाम से प्रचलित हुआ। मंदिर में 10 सितंबर 1981 से यहां अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित है। औणी के उनियाल मां राजराजेश्वरी के उपासक हैं। मां के उपासक रहे डंगवालों ने 1948 के करीब मां की आराधना का पूजा जिम्मा उनियालों को सौंप दिया था।
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ऐसे पहुंचें
सिद्धपीठ देवलगढ़ पहुंचने के लिए सड़क मार्ग ही सबसे प्रचलित मार्ग है। देवलगढ़ मंडल मुख्यालय पौड़ी से 48 किमी. खिर्सू से 15 किमी. श्रीनगर गढ़वाल से 19 किमी. की दूरी पर स्थित है। भक्त व श्रद्धालु कोटद्वार-पौड़ी-खिर्सू होते हुए या ऋषिकेश-श्रीनगर गढ़वाल वाया चमधार होते हुए देवलगढ़ पहुंच सकते हैं। और नैनीताल- रानीखेत-गैरसैण-कर्णप्रयाग-रुद्रप्रयाग होते हुए भी मां के दर्शनों को पहुंचा जा सकता है।
नवरात्रों में होती विशेष पूजा-अर्चना
मां राजराजेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी कुंजिका प्रसाद उनियाल बताते हैं कि मां राजरोजश्वरी में भक्तों की बड़ी आस्था है। मां अपने भक्तों व श्रद्धालुओं को धनधान्य से भर देती है। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

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