उत्तराखंडः हाईकोर्ट ने केंद्र से 12 अप्रैल तक मांगा जवाब, बागियों की सुनवाई आज
उत्तराखंड में अनुच्छेद 356 का प्रयोग करने और केंद्र सरकार के लेखानुदान अध्यादेश लाए जाने को हाई कोर्ट में चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई फिर टल गई है। अब 18 अप्रैल को इस मसले पर हाई कोर्ट सुनवाई करेगा।
नैनीताल। उत्तराखंड में अनुच्छेद 356 का प्रयोग करने और केंद्र सरकार के लेखानुदान अध्यादेश लाए जाने को हाई कोर्ट में चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई फिर टल गई है। अब 18 अप्रैल को इस मसले पर हाई कोर्ट सुनवाई करेगा। हाई कोर्ट ने स्पीकर के जवाब पर केंद्र सरकार को काउंटर जमा करने के लिए 12 अप्रैल तक का समय दिया है। 12 तक ही दोनों पक्ष दस्तावेजों का आदान-प्रदान करने के साथ ही शपथ पत्र-प्रतिशपथ पत्र दाखिल करेंगे, जबकि बागियों के मामले में अाज सुनवाई जारी रखी जाएगी।
इस बीच आज मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कोर्ट में एक और अर्जी लगाते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाए जाने की सूरत में सबसे बड़ा दल होने के नाते कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बुलाए जाने की मांग भी रखी। इसके जवाब में अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से साफ किया है कि यदि केंद्र राष्ट्रपति शासन हटाने के संबंध में कोई फैसला करेगा तो इससे पहले कोर्ट को सूचना देगा।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोजफ व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने 19 अप्रैल तक एकल पीठ के 31 मार्च को शक्ति परीक्षण करने के आदेश को स्थगित कर दिया है। इससे पहले केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने स्पीकर की ओर से दायर जवाब के अध्ययन व उसके बाद काउंटर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा तो नितर्वमान सीएम के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जानबूझकर मामले को लंबा खींचना चाहती है।
स्पीकर के फैसले का रिव्यू नहीं हो सकता
निर्वतमान सीएम रावत की ओर से प्रसिद्ध अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि 18 मार्च को विनियोग विधेयक राज्य विधान सभा में पारित हुआ। उसी दिन शाम को 27 भाजपा व नौ बागी विधायक गवर्नर से मिले और उन्होंने विनियोग विधेयक पारित नहीं होना बताते हुए सरकार गिरने की जानकारी दी। 19 को राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री हरीश रावत को 28 मार्च तक सदन में बहुमत साबित करने को कहा। इसी बीच 27 को केंद्र ने असंवैधानिक तरीके से राज्य में धारा-356 का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। उन्होंने कहा कि यदि विधेयक पारित होने के दौरान कोई गलती हुई है तो स्पीकर के फैसले की समीक्षा नहीं हो सकती। सरकार का निर्णय फ्लोर टेस्ट से होना चाहिए था।
सिंघवी ने कहा कि केंद्र ने हाई कोर्ट में दाखिल जवाब में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राज्यपाल द्वारा भेजे गए आठ पत्रों को आधार बनाया है, जबकि इन पत्रों में से किसी में यह उल्लेख नहीं है कि राज्य में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है, जबकि अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए यह जरूरी है। बिहार के रामेश्वर प्रसाद व कर्नाटक के एसआर बोम्मई केस समेत अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ नजीर दे चुकी है कि विपरीत हालातों में ही इसका प्रयोग किया जाएगा। उन्होंने राष्ट्रपति शासन लागू करने के आधारों में से एक स्टिंग को बनाने का भी विरोध करते हुए कहा कि स्टिंग की आनन फानन में जांच करना यह साबित करता है कि केंद्र ने राजनीतिक संकट दिखाने के लिए इसका सहारा लिया। सिंघवी कोर्ट से बाहर निकले तो मीडिया से भी यही बात कही।
कांग्रेस को है भाजपा सरकार बनने का भय
हाई कोर्ट के समक्ष सिंघवी ने उन मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट द्वारा सरकार बनाने का दावा किया गया था। उन्होंने कोर्ट से यह आदेश पारित करने की मांग की, कि यदि केंद्र राष्ट्रपति शासन हटाता है तो राज्यपाल सबसे पहले निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करे।
18 को गिर गई थी सरकार
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि 18 मार्च को विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग की गई थी, लेकिन स्पीकर ने संवैधानिक बाध्यता के बावजूद मत विभाजन की मांग ठुकरा दी। स्पीकर ने सदन में गिर चुके विनियोग विधेयक को ध्वनि मत से पास बता दिया। बागी नौ विधायकों को अयोग्य घोषित करने के बाद विनियोग विधेयक राज्यपाल को भेजा गया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया अरुणाचल मामले में दी गई व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल को नोटिस नहीं दिया जा सकता। बीजेपी इस मामले में पक्षकार नहीं है, इसलिए उसे कोई निर्देश नहीं दिए जा सकते।

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