रेत न सिर्फ बोलती है, बल्कि बयां करती जंगल का सच
राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क दुनियाभर के वन्य जीव विशेषज्ञों के लिए अध्ययन की पसंदीदा जगह है। रेत पर वन्य जीवों के पदचिह्न देख उनके पूरे कुनबे का पता चल जाता है।
हरिद्वार, [राहुल गिरि]: आपने कभी बेजान रेत को बात करते सुना है? नहीं ना। लेकिन, यकीन मानिए, रेत न सिर्फ बोलती है, बल्कि जंगल में हो रही गतिविधियों का सच भी बयां करती है। इसी रेत के माध्यम से विशेषज्ञ वन्य जीवों की गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क में बरसाती नदियों व ट्रेक पर पड़ी रेत वन एवं वन्य जीवों को लेकर किए जाने वाले अध्ययन में विशेषज्ञों की सबसे बड़ी मददगार साबित होती है।
राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क दुनियाभर के वन्य जीव विशेषज्ञों के लिए अध्ययन की पसंदीदा जगह है। वर्षभर विशेषज्ञ पार्क के अंदर वन्य जीवों के बारे में जानकारी जुटाने यहां आते हैं। वह देशी-विदेशी परिंदों को तो कैमरों में कैदकर उनके बारे में जानकारी जुटा लेते हैं, लेकिन संघर्ष में घायल हुए वन्य जीवों व उनके कुनबों की जानकारी उन्हें नहीं मिल पाती। ऐसे में विशेषज्ञों की मदद करती है जंगल की रेत। रेत पर वन्य जीवों के पदचिह्न देख उनके पूरे कुनबे का पता चल जाता है। कुनबे में बच्चे, बड़े, नर और मादा सभी की संख्या पदचिह्नों से ही पता चलती है। साथ ही अगर कोई जानवर घायल या चोटिल है तो उसका भी पता चल जाता है।
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वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. रितेश जोशी के अनुसार अगर जानवरों में संघर्ष होने की स्थिति में रेत पर बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं। इन्हीं गड्ढों से पदचिह्नों को कैमरे में कैद कर विशेषज्ञ अध्ययन को लिए जाते हैं। यह तकनीक हाथी, गुलदार, बाघ व भालू के साथ ही अन्य वन्य जीवों के संबंध में जानकारी लेने के लिए प्रमुख रूप से अपनाई जाती है।
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ऐसे होती है गतिविधियों की पहचान
-छोटे कदम के निशान शिशु के।
-घिसटते कदम के निशान पैर में दर्द।
-खून से सने तो चोट लगी है।
-बड़े गड्ढे के निशान तो संघर्ष हुआ।
-रेत पर बने गड्ढे में पानी है तो हाथी कुछ देर पहले गुजरा।
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रेत पर बने पदचिह्नों से सुलझे कुछ प्रमुख मामले
-वर्ष 2009 में मोतीचूर रेंज में ट्रेन की टक्कर से घायल हाथी का पता घिसटते पदचिह्नों से चला।
-वर्ष 2007 में श्यामपुर क्षेत्र के जंगल में लंगड़ाते हाथी का पता पदचिह्नों से चला।
-वर्ष 2010 में चंडीपुल के पास बीमार गुलदार जंगल में पदचिह्नों की मदद से मिला।
-वर्ष 2011 में हरिद्वार रेंज में गुलदार के शावकों का पता पदचिह्नों से चला।
-वर्ष 2013 में चीला रेंज में संघर्ष के दौरान घायल हुए हाथी का पता चला।
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