दादा को कांवड़ पर बैठाकर तीर्थ यात्रा करा रहा पवन
सीतापुर (उप्र) जिले के चांदपुर गांव का एक श्रवण कुमार (पवन कुमार) कांवड़ पर अपने 103 वर्षीय दादा को लेकर तीर्थ कराने निकला है। वह जिधर से गुजर रहा, वहीं लोगों की भीड़ भी लग रही।
हरिद्वार, [राहुल शर्मा]: आज के दौर में जहां बच्चों के पास बड़े-बूढ़ों से बात करने को भी फुर्सत नहीं, वहीं सीतापुर (उप्र) जिले के चांदपुर गांव का एक श्रवण कुमार (पवन कुमार) कांवड़ पर अपने 103 वर्षीय दादा को लेकर तीर्थ कराने निकला है।
पांच सौ किलोमीटर की दूरी नंगे पांव तय कर धर्मनगरी हरिद्वार पहुंचे पवन ने बताया कि उसका ध्येय दादा को गंगा स्नान कराने के साथ डेढ़ दशक पूर्व दिवंगत हुई दादी की अस्थियों को विसर्जित करना भी है। यह श्रवण कुमार जिधर से भी गुजरता है, लोगों की भीड़ उसके दीदार को उमड़ पड़ती है।
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पवन ने कांवड़ के एक पलड़े पर दिवंगत दादी की अस्थियों के साथ दादा के वजन के बराबर मिट्टी रखी है और दूसरे पलड़े पर उसके दादा विराजमान हैं। बकौल पवन, परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण दादा आज तक किसी भी तीर्थ के दर्शन नहीं कर पाए।
दादा ने यह बात जब मुझे बताई तो मैंने मन में ठान लिया कि उन्हें किसी तीर्थ के दर्शन अवश्य कराऊंगा। लेकिन, इसी बीच दादी दिवंगत हो गईं और यह सपना पूरा नहीं हो पाया।
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पवन कुमार बताते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व उन्हें लगा कि अब विलंब नहीं करना चाहिए, सो छह माह पूर्व नौकरी छोड़ निकल पड़ा दादा को मां गंगा के दर्शन कराने। बताते हैं कि पल्लू में पैसे नहीं थे, इसलिए दादा को कांवड़ में बैठाकर यात्रा कराने की ठानी और पितरों के आशीर्वाद से मां गंगा के दर्शन भी हो गए।
पवन के साथ इस यात्रा में उनके पिता, ताऊ और चाचा भी शामिल हैं। आज वह हरकी पैड़ी स्थित घाट पर दादी की अस्थियां विसर्जित कर दादा को गंगा स्नान कराएंगे।
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छह माह से कर रहे यात्रा
पवन बीते छह माह से लगातार पैदल चल रहे हैं। रोजाना छह से सात किमी की दूरी वह तय कर पाते हैं और जहां भी आसरा मिलता है, वहीं रात्रि विश्राम कर लेते हैं।
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पवन के अनुसार रास्तेभर लोग उनकी भरपूर मदद कर रहे हैं। अब वे दादा को गोला मिश्रिख और नैमिशारण्य धाम के दर्शन कराकर गांव लौटेंगे।
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संकल्प पूरा करने को छोड़ी नौकरी
पवन के पिता खेती से परिवार की गुजर करते हैं। मां भी खेती में हाथ बंटाती हैं। पवन से छोटे दो भाई और हैं, जो पढ़ाई कर रहे हैं। 26 वर्षीय पवन स्वयं 12वीं तक पढ़े हैं और जल निगम दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में कार्य करते थे। लेकिन, दादा को तीर्थ कराने के संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
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