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    अजब-गजब: 10 दिन में कैसे बन गए 991 शौचालय

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Sun, 12 Jun 2016 03:49 PM (IST)

    सरकारी विभाग जो न करें, वही कम। विभाग की ओर से दस दिन में 991 शौचालयों के निर्माण का दावा किया जा रहा है।

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    हरिद्वार, [विनोद श्रीवास्तव]: सरकारी विभाग जो न करें, वही कम। ताजा मामला जिले में स्वजल के माध्यम से बन रहे शौचालयों के निर्माण से जुड़ा है। विभाग की ओर से दस दिन में 991 शौचालयों के निर्माण का दावा किया जा रहा है। यह नाममुकिन काम इतने कम दिन में कैसे हो गया आगे जानते हैं।
    2 अक्टूबर 2014 को केंद्र सरकार ने नमामि गंगे योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए जिले के तीन ब्लॉकों लक्सर, बहादराबाद और खानपुर की चौदह ग्राम पंचायतों में 5910 शौचालयों का निर्माण होना था।

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    कार्यदायी संस्था स्वजल बीस माह तक विभाग लक्ष्य के सापेक्ष आधे शौचालयों का निर्माण भी नहीं करा सका। दो जून को सीडीओ ने नमामि गंगे योजना की प्रगति की समीक्षा की तो पता चला कि सिर्फ 2790 शौचालय का निर्माण ही पूरा हुआ है।
    इसके अलावा 1714 निर्माणाधीन हैं और 1406 शौचालय बनने अभी बाकी थे। इस पर मुख्य विकास अधिकारी ने जिम्मेदारों को सख्त चेतावनी देते हुए तीस जून तक निर्माण पूरा करने के निर्देश दिए।
    हालांकि स्वजल ने इसके बाद ऐसी तेजी दिखाई कि दस दिन में ही 991 शौचालयों का और निर्माण पूरा होने का दावा कर दिया। अब इसी तेजी को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। मुख्य विकास अधिकारी सोनिका का कहना है कि शौचालय निर्माण का स्थलीय निरीक्षण किया जायेगा।

    लाभार्थी से अधिक प्रधान दिखा रहे दिलचस्पी
    स्वजल की ओर से नमामि गंगे योजना के तहत शौचालय निर्माण पूर्ण होने पर सीधे लाभार्थी के खाते में 12000 रुपये जाते हैं। लाभार्थी के निर्माण से मना करने पर ग्राम प्रधान को ग्राम पंचायत निधि के माध्यम से निर्माण कराना होता है। ग्राम प्रधान की ओर से निर्माण कराने की स्थिति में ग्राम निधि में आधी रकम यानि छह हजार रुपये भेजे जाते हैं। निर्माण कार्य पूरा होने का प्रमाणपत्र देने के बाद ही विभाग छह हजार रुपये की आधी रकम ग्राम निधि में भेजता है। इस बीच, दो साल तक निर्माण में दिलचस्पी न दिखाने वाले प्रधान भी अचानक सक्रिय हो गये हैं।

    प्रधानों को किया जा रहा जागरूक
    स्वजल परियोजना के प्रबंधक सोमनाथ सिंह कहते हैं कि यह सही है कि पूर्व में ग्राम प्रधानों ने इसमें अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन जब बैठकों में उन्हें योजना के महत्व और खुद उनसे लोगों के घरों में शौचालय का निर्माण कराने से उनकी लोकप्रियता बढऩे की बात समझायी गई तो ग्राम प्रधानों की रुचि बढ़ गई।
    उन्होंने बताया कि इसके लिए एडवांस में ग्राम निधि में पचास प्रतिशत रकम भेज दी जाती है। शेष पचास प्रतिशत निर्माण की रिपोर्ट मिलने पर दी जाती है। नये ग्राम प्रधानों को जब इसके राजनीतिक लाभ की बात समझ में आयी तो सभी ने इसमें सहयोग करना शुरू कर दिया है।