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    आप करेंगे आश्चर्य, पितर भी कर रहे चारधाम यात्रा

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 23 May 2017 05:03 AM (IST)

    आप आश्चर्य करेंगे कि आज भी सैकड़ों श्रद्धालु अपने पितरों के साथ चारधाम की यात्रा करते हैं। इसके लिए पितरों के नाम पर बस या ट्रेन में अलग से सीट बुक कराई जाती है।

    आप करेंगे आश्चर्य, पितर भी कर रहे चारधाम यात्रा

    ऋषिकेश, [दुर्गा नौटियाल]: देवभूमि में चारों धाम की यात्रा सिर्फ आस्था से ही नहीं जुड़ी है, बल्कि हजारों श्रद्धालुओं के लिए यह एक भावनात्मक यात्रा भी है। आप आश्चर्य करेंगे कि आज भी सैकड़ों श्रद्धालु अपने पितरों के साथ चारधाम की यात्रा करते हैं। इसके लिए पितरों के नाम पर बस या ट्रेन में अलग से सीट बुक कराई जाती है, जिसे बोलचाल की भाषा में 'तिन सीटिया' कहते हैं। इस सीट पर पितृों की निशानी को बड़े आदर के साथ रखा जाता है।

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    विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ व बदरीनाथ धाम की यात्रा अपने चरम पर है। देश के विभिन्न प्रांतों से पहुंचने वाले यात्रियों के साथ संस्कृति, आस्था और परंपरा के भी कई रूप देखने को मिल रहे हैं। बात अगर बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की करें तो इनमें से कई लोग आज भी सदियों पुरानी परंपरा के संवाहक नजर आते हैं। 

    इन प्रांतों से आने वाले कई यात्री अपने साथ अपने पितरों की निशानियों (लाठी, छड़ी, कंबल, गमछा, टोपी, धोती-कुर्ता आदि) को भी चारधाम यात्रा पर लाते हैं। यह निशानियां बाकायदा पितरों के नाम आरक्षित सीट पर विराजकर चारधाम पहुंचती हैं।

    ऋषिकेश पहुंचने के बाद ये लोग संयुक्त रोटेशन की बसों में चारधाम पहुंचते हैं। यात्रा के लिए वाहनों की बुकिंग के दौरान ट्रैवल एजेंट या बुकिंग क्लर्क को बाकायदा 'तिन सीटिया' के संबंध में जानकारी दी जाती है। तिन सीटिया का अर्थ ऐसी बुकिंग से है, जिसमें यात्री बस या ट्रेन में पितरों के लिए अतिरिक्त सीट आरक्षित कराता है।

    इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) के ग्राम काशी-कुरहोला निवासी सीताराम मिश्र पत्नी गुलाब कली के साथ अपने पिता स्व.लाल बिहारी मिश्र की यादें लेकर चारधाम यात्रा पर आए हैं। सीताराम बताते हैं कि यह परंपरा सदियों पुरानी है। उनके पिता भी इसी तरह अपने पितरों को चारधाम यात्रा पर लाए थे। 

    बताया कि यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बदरीनाथ धाम की यात्रा के बाद वह बदरीनाथ धाम में ब्रह्मकपाल में पितर मोक्ष को पिंडदान करेंगे। यात्रा के लिए उन्होंने तीन सीटें आरक्षित कराई हैं। ऋषिकेश में ट्रैवल एजेंसी संचालक सुनील उनियाल बताते हैं कि इस यात्राकाल में अब तक वे 50 से अधिक लोगों को यात्रा पर भेज चुके हैं।

    संयुक्त रोटेशन यात्रा व्यवस्था समिति के प्रभारी मदन कोठारी बताते हैं कि तीन सीटिया आस्था से जुड़ी एक अनूठी परंपरा है। संयुक्त रोटेशन ऐसे लोगों को सम्मान के साथ वाहन में अतिरिक्त सीट उपलब्ध कराता है।

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