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    झंडा मेला: शक्तिपुंज के आरोहण पर उमड़ा आस्था का सैलाब

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sat, 18 Mar 2017 05:07 AM (IST)

    द्रोणनगरी के ऐतिहासिक झंडा मेले में को लाखों श्रद्धालु झंडा आरोहण के अविस्मरणीय क्षण के गवाह बने। इस बार करनाल जिले के साबत गांव निवासी आशीष कुमार गोयल ने दर्शनी गिलाफ चढ़ाया।

    झंडा मेला: शक्तिपुंज के आरोहण पर उमड़ा आस्था का सैलाब

    देहरादून, [जेएनएन]: सूर्य रश्मियां तालाब के शीतल जल से टकराकर दरबार साहिब के गुंबद पर अद्भुत छटा बिखेर रही हैं। दरबार साहिब में आस्था का सैलाब उमड़ा है और परिसर गुरु महाराज के जयकारों से गुंजायमान है। श्रद्धालु झंडेजी के सम्मान में शीश नवाए खड़े हैं। हर कोई बेताब है झंडा साहिब के समक्ष मत्था टेकने व गुरु महाराज के दर्शनों को। शुक्रवार को कुछ ऐसा ही विहंगम दृश्य साकार हुआ दरबार साहिब में, जहां देश-विदेश से पहुंचे हजारों श्रद्धालु ऐतिहासिक झंडा आरोहण के गवाह बने। 
    सुबह धुंधलका छंटने से पहले ही दरबार साहिब संगतों से पैक हो चुका था। सुबह आठ बजे झंडेजी को उतारने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके बाद 90 फीट ऊंचे नए ध्वजदंड को पंचामृत से स्नान कराया गया और फिर सादे व शनील के गिलाफ चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हुई। दोपहर करीब पौने दो बजे कुरुक्षेत्र (हरियाणा) निवासी आशीष कुमार गोयल परिजनों के साथ दर्शनी गिलाफ को फूलों की टोकरी में सजाकर पहुंचे तो हर कोई इसे छूने को लालायित हो उठा। 
    दर्शनी गिलाफ चढ़ने के बाद नए मखमली वस्त्रों और सुनहरे गोटों से सुसज्जित झंडेजी के आरोहण की प्रक्रिया शुरू हुई। दरबार साहिब के श्रीमहंत देवेंद्र दास महाराज के दिशा-निर्देशन में झंडेजी धीरे-धीरे खड़े होने लगे। शाम ठीक 4.05 बजे आस्था एवं विश्वास के प्रकाशपुंज झंडेजी जैसे ही अपने स्थान पर खड़े हुए, पूरा परिसर गुरु महाराज के जयकारों से गूंज उठा। इसी दरमियान बाज ने भी दरबार साहिब की परिक्रमा की। 19 मार्च की सुबह दरबार साहिब से नगर परिक्रमा शुरू होगी।
    मूलरूप से दून निवासी हैं आशीष 
    दर्शनी गिलाफ चढ़ाने वाले आशीष गोयल मूलरूप से देहरादून के रहने वाले हैं। आशीष के दादा रामस्वरूप गोयल ने 29 साल पहले उनके नाम से दर्शनी गिलाफ की बुकिंग कराई थी। आशीष ने बताया कि दादा के बाद पिता प्रेमचंद गोयल का भी स्वर्गवास हो गया। बताया कि माजरा में उनका घर था, लेकिन 28 साल पहले वह कुरुक्षेत्र में शिफ्ट हो गए थे। वहां उनका व्यवसाय है।
    औरंगजेब ने भी माना था गुरु महाराज का लोहा
    मुगल शासक औरंगजेब को भी श्री गुरु राम राय महाराज के चमत्कारिक व्यक्तित्व को मानना पड़ा था। औरंगजेब ने सन् 1661 में श्री गुरु राम राय को दिल्ली बुलाया था। कहते हैं कि वहां गुरु महाराज ने मृत बकरे को जीवित कर औरंगजेब को अचंभित कर दिया। इसके बाद औरंगजेब ने परीक्षा लेने के लिए विषयुक्त वस्त्र भिजवाए, लेकिन गुरु महाराज के अंग लगते ही वस्त्रों से विष का प्रभाव खत्म हो गया।
     ऐसी कई परीक्षाएं लेने के बाद औरंगजेब भी उनका मुरीद हो गया था। जब श्री गुरु राम राय ने देहरादून में डेरा डाला तो इसकी सूचना औरंगजेब को मिली। औरंगजेब ने गढ़वाल के तत्कालीन राजा फतेहशाह को उनकी हरसंभव मदद करने के लिए कहा था। राजा ने खुड़बुड़ा, राजपुर और चामासारी गांव गुरु महाराज को दान में दे दिए थे। 

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