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जब इस दीवार ने रोक दी ट्रेन, तब जाकर पता चला इसका रोचक इतिहास

सवा सौ साल पुरानी 'चाइना-वॉल' के नाम से विख्‍यात एक दीवार एक जुलाई की रात दून रेलवे स्टेशन के समीप हावड़ा एक्सप्रेस के सामने गिरी। जांच आरंभ हुई तो दीवार का इतिहास भी सामने आया।

By sunil negiEdited By: Published: Sun, 03 Jul 2016 11:44 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2016 04:40 PM (IST)
जब इस दीवार ने रोक दी ट्रेन, तब जाकर पता चला इसका रोचक इतिहास

देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: राजधानी में 24 घंटे लगातार हुई तेज बरसात में सवा सौ साल पुरानी 'चाइना-वॉल' (चीन की दीवार) का एक हिस्सा ढहकर रेल के इंजन के सामने आ गिरा। हादसे में दर्जनों जिंदगियां बाल-बाल बच गई, मगर 1899 में निर्मित इस दीवार का वजूद खतरे में आ गया।

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यह कोई साधारण दीवार नहीं बल्कि वही विशाल दीवार है, जो एक जुलाई की रात दून रेलवे स्टेशन के समीप हावड़ा एक्सप्रेस के सामने गिरी। जांच आरंभ हुई तो दीवार का इतिहास भी सामने आया। शुरुआती जांच में पता चला कि दीवार में काफी समय से पानी भर रहा था। जिससे एक हिस्सा बेहद कमजोर हो गया था। रेलवे ने अब दीवार दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया है।

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देहरादून रेलवे स्टेशन पर दो सौ मीटर लंबी सुरक्षा दीवार को दुनिया के सात आश्चर्य में शामिल चीन की लगभग 64 सौ किलोमीटर लंबी दीवार की तर्ज पर साल 1899 में बनाया गया था। इसी साल दून रेलवे स्टेशन वजूद में आया था। पत्थर और गारे की इस दीवार का निर्माण अंग्रेजी शासनकाल के टेकनीशियन जूलियर हेनरी जेम्स की सलाह पर किया गया था। हेनरी ने ही लक्सर से देहरादून तक रेलवे लाइन लाने में अहम भूमिका निभाई थी। तभी से यह दस फीट ऊंची दीवार अडिग खड़ी थी। इसी अडिगता के कारण देहरादून के रेलवे अधिकारी-कर्मचारी इसे 'चीन की दीवार' कहते थे। रेलवे कर्मी एवं नार्दन रेलवे मैन्स यूनियन के सहायक मंडल सचिव उग्रसैन सिंह ने बताया कि प्लेटफार्म, रेलवे ट्रैक व रेलवे कॉलोनी की सुरक्षा के लिए ये दीवार काफी अहम मानी जाती है। उन्होंने दीवार का सामरिक महत्व कायम रखते हुए इसके ट्रीटमेंट की मांग रेलवे प्रबंधन से की है।
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चूहों ने खोखली की थी दीवार
दीवार की नींव कमजोर होने की एक वजह चूहे बताए जा रहे हैं। बताया गया कि जो हिस्सा गिरा, वहां नींव खोखली हो चुकी थी। यहां बड़ी संख्या में चूहों के बिल भी हैं।

इंजन को हुआ काफी नुकसान
दीवार गिरने के कारण हावड़ा के इंजन को काफी नुकसान पहुंचा है। चूंकि, बड़े पत्थर इंजन के ऊपर भी गिरे और काफी नीचे फंस गए थे, तो यह चलने लायक नहीं रहा। ट्रैक साफ कराने के बाद हावड़ा एक्सप्रेस में दूसरा इंजन लगाकर रवाना किया गया। क्षतिग्रस्त इंजन की मरम्मत के लिए मुरादाबाद मंडल से टीम आ रही है।
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तड़के साढ़े तीन बजे तक चला काम
दीवार गिरने से बाधित रेलवे ट्रैक गाडिय़ों के आवागमन के लिए भले ही रात्रि करीब साढ़े 11 बजे खोल दिया गया था, लेकिन ट्रैक पूरी तरह सुबह साढ़े तीन बजे ठीक हुआ। चूंकि, कई ट्रेनें व हजारों यात्री फंसे हुए थे। रात साढ़े 12 बजे ट्रैक पर गाड़ियों का संचालन फौरी तौर पर कराया गया। इसके बाद जेसीबी व करीब 100 मजदूर लगाकर ट्रैक पूरी तरह दुरुस्त किया गया।
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ट्रैक के आसपास हो रहे कब्जे
दून रेलवे स्टेशन से करीब दस किमी तक ट्रैक के दोनों ओर अवैध कब्जों की पिछले लंबे से शिकायतें मिल रही हैं। पिछले वर्ष भी रेलवे की जमीन पर कब्जे के प्रयास में भूमाफिया ट्रैक को क्षतिग्रस्त कर दिया था। सामान्य तौर पर रेलवे पटरी के दोनों ओर दस-दस फीट तक कोई निर्माण नहीं किया जा सकता, लेकिन यहां कई जगह यह फासला महज पांच फीट तक रह गया है। जो कभी भी बड़े हादसे की वजह बन सकता है।

'दीवार सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है और इसका समय-समय पर रखरखाव भी किया जाता है। जो हिस्सा गिरा है, वहां पानी भर रहा था। इसी वजह से तेज बरसात में यह हिस्सा ढह गया। इसके कारणों की पड़ताल की जा रही है। दीवार की मरम्मत शुरू कर दी गई है।'
पीके गुप्ता, सीनियर सेक्शन इंजीनियर, रेलपथ देहरादून

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