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    उत्‍तराखंड में वन्यजीवों को जंगल में रोकेंगे फलदार पौधे

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2016 12:23 PM (IST)

    उत्तराखंड में अब वन्यजीवों को जंगल में ही रोकने में फलदार पौधे मददगार होंगे। वन विभाग इस बरसात में 20 फीसद फल प्रजातियों के पौधे जंगल में लगाएगा।

    देहरादून [केदार दत्त]: काठी अमरूद, मेहल, आम, काफल, हिंसालू जैसे फल अब वन्यजीवों को जंगल में ही रोकने में मददगार होंगे। उत्तराखंड में लगातार गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामने के लिए वन महकमे ने निश्चय किया है कि इस वर्षाकाल में पौधरोपण के तहत 20 फीसद फल प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे। इससे जहां मुसीबत का सबब बने बंदर, लंगूर, हाथी जैसे जानवरों के लिए जंगल में ही भोजन की व्यवस्था होगी, वहीं पक्षियों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी। यही नहीं, सभी वन प्रभागों और पार्क व सेंचुरी प्रशासनों को निर्देश दिए गए हैं कि इसे गंभीरता से लें।

    असल में 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन्यजीव एक बड़ी आफत बनकर भी उभरे हैं। राज्य गठन से लेकर अब तक की ही स्थिति देखें तो 400 लोग वन्यजीवों के हमले में मारे गए। जबकि, एक हजार से अधिक घायल हुए हैं। सूअर, बंदर, हाथी जैसे जानवर आबादी वाले क्षेत्रों में घुसकर फसलों को तबाह कर रहे हैं, सो अलग। आलम यह है कि हर माह 20 हेक्टेयर खेत जंगली जानवर तबाह कर जा रहे हैं।

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    सूरतेहाल में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। इसमें मानव और वन्यजीव दोनों को कीमत चुकानी पड़ रही है। इसे देखते हुए वन महकमे ने अब वासस्थल विकास पर फोकस किया है। प्रमुख वन संरक्षक (नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन) जयराज के अनुसार इस संबंध में सभी वन प्रभाग, पार्क व सेंचुरियों के प्रशासन को निर्देश जारी किए गए हैं। बताया कि वर्षाकाल में वन्यजीवों के प्राकृतवास में सुधार के लिए उचित वृक्ष प्रजातियों का रोपण करने को कहा गया है। कुल पौधरोपण में 20 फीसद फल प्रजातियों के पौधों का रोपण होगा। वनाधिकारियों से यह भी कहा गया है कि वे अगले वर्ष के रोपण के लिए भी अपने पौधालयों में उपयुक्त प्रजातियों के पौधों को उगाने की व्यवस्था अभी से करवाने की पहल करें।

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    इन प्रजातियों पर होगा फोकस
    आम, अमरूद (काठी), जामुन, मेहल, पैंया, काफल, ङ्क्षहसालू, बेर, शहतूत, घिंघारू, बांस, फाइकस आदि।

    वन्यजीवों का भी उत्पीड़न
    बंदरों की बढ़ती समस्या को देखते हुए सूबे में इनके बंध्याकरण का कार्यक्रम शुरू किया गया है, जबकि सुअरों को पीड़क जंतु घोषित किया गया है। विभाग की ओर से इस कार्रवाई को आवश्यक समझा गया है, लेकिन देखा जाए तो इनमें ऐसे जानवरों का उत्पीड़न भी हो रहा है।

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