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    चमोली जिले में बारिश से 15 हजार की आबादी पर खतरा

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sat, 25 Jun 2016 03:22 PM (IST)

    चमोली जिले के 163 गांवों की 15 हजार की आबादी खतरे में है। डेढ़ दशक के लंबे अंतराल के बाद भी शासन-प्रशासन हजारों की इस आबादी की सुरक्षा को ठोस कदम नहीं उठा पाया है।

    गोपेश्वर, [जेएनएन]: चमोली जिले के 163 गांवों की 15 हजार की आबादी खतरे में है। डेढ़ दशक के लंबे अंतराल के बाद भी शासन-प्रशासन हजारों की इस आबादी की सुरक्षा को ठोस कदम नहीं उठा पाया है। अब मानसून की दस्तक के साथ ही ग्रामीण घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए विवश हैं। वहीं, कुछ ग्रामीण रतजगा कर बरसात के मौसम के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।
    भारत-तिब्बत सीमा से लगा चमोली जिला आपदा के लिहाज से अतिसंवेदनशील है। या यूं कहें कि चमोली जिले और आपदा का चोली दामन का साथ है। यही वजह है कि इस जनपद को जोन-पांच में शामिल किया गया है।

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    यह जिला भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ जैसी त्रासदी को कई बार देख चुका है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड के अन्य जिलों की तरह चमोली जिले में भी व्यापक नुकसान पहुंचा। 2013 से पहले भी इस जिले ने कई आपदाएं झेली। तकरीबन डेढ़ दशक पहले जिले के 79 गांवों में आपदा का कहर बरपा था।
    अधिकतर गांवों में भूस्खलन से कई भवनों को नुकसान पहुंचा तो कई भवन खतरे की जद में आए। इन 79 गांवों के प्रभावित सरकार से डेढ़ दशक पूर्व से गांवों के विस्थापन की मांग कर रहे हैं। परंतु सरकार मात्र गैरसैंण विकासखंड के फरकंडे गांव को ही सुरक्षित भूमि पर विस्थापित कर पाई है। 78 गांवों का विस्थापन अभी तक लटका हुआ है। इन गांवों के विस्थापन को लेकर प्रशासन भी पत्राचार तक ही सीमित दिख रहा है।
    प्रभावितों को भी नहीं मिला आशियाना
    वर्ष 2013 में आई आपदा से चमोली जिले में भी व्यापक नुकसान हुआ। 2013 में आपदा से चमोली जिले के 84 गांव प्रभावित हुए थे। इन गांवों में 581 भवन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे। अभी तक सरकार 2013 की आपदा प्रभावितों के भवनों का निर्माण तक पूरा नहीं कर पाई है। प्रशासन का दावा है कि पूर्ण क्षतिग्रस्त 584 में से 507 भवनों का निर्माण विश्व बैंक की मदद से पूरा किया जा चुका है। 77 भवनों का प्रशासन तीन वर्ष बाद भी निर्माण पूरा नहीं करा पाया है। प्रभावित लोग अभी भी किराए के भवनों पर या फिर नाते रिश्तेदारों के घर पर शरण लिए हुए हैं।
    सर्वेक्षण तक नहीं हुआ पूरा
    चमोली जिले में डेढ़ दशक से विस्थापन का इंतजार कर रहे 78 गांवों का मामला कई बार उठाया गया। प्रभावित लोग लंबे समय से आंदोलन भी कर रहे हैं। ग्रामीणों के आंदोलन के बाद सरकार ने इन गांवों के सर्वेक्षण की बात कही थी। इसकी जिम्मेदारी प्रशासन को सौंपी गई।

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    परंतु प्रशासन अभी तक प्रभावित गांवों का सर्वेक्षण नहीं कर सका है। जिला प्रशासन की मानें तो 78 में से अभी तक मात्र आठ ही गांवों का सर्वेक्षण हो पाया है। गांवों के सर्वेक्षण के मामले तहसील स्तर पर लटके हुए हैं।
    संकटग्रस्त गांवों का विस्थापन जरूरी
    विस्थापन संघर्ष समिति चमोली के अध्यक्ष राकेश लाल खनेड़ा के मुताबिक चमोली जिले के सैकड़ों गांव आपदा से प्रभावित हैं। इन गांवों का विस्थापन जरूरी है। हम पिछले डेढ़ दशक से आपदा प्रभावित गांवों के विस्थापन की मांग कर रहे हैं। परंतु शासन-प्रशासन इन गांवों का विस्थापन तो दूर सर्वेक्षण तक पूरा नहीं कर पाया है। अब बारिश के दौरान क्षतिग्रस्त घरों के अंदर रहना आपदा प्रभावितों की मजबूरी है। कुछ आपदा प्रभावित जान सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षित स्थानों वाले गांवों में नाते रिश्तेदारों के यहां शरण ले चुके हैं।
    गांवों का हो रहा सर्वेक्षण
    चमोली के आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदकिशोर जोशी के मुताबिक चमोली जिले में 78 गांव ऐसे हैं, जिनकी लंबे समय से विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। सरकार के निर्देशों पर इन गांवों के सर्वेक्षण का कार्य चल रहा है। जिन नये गांवों की विस्थापन की मांग रखी गई है, उनके लिए भी शासन से पत्राचार किया जा रहा है।

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