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बदरीनाथ में श्रद्धा का केंद्र बना पंचमुखी देवदार

बदरीनाथ में पांच शाखाओं वाला देवदार का वृक्ष श्रद्धा का केंद्र बन गया है। यही वजह है कि वृक्ष के दीदार को रोजाना बड़ी तादाद में यात्री पहुंच रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 30 Oct 2017 07:10 PM (IST)Updated: Tue, 31 Oct 2017 05:09 AM (IST)
बदरीनाथ में श्रद्धा का केंद्र बना पंचमुखी देवदार
बदरीनाथ में श्रद्धा का केंद्र बना पंचमुखी देवदार

गोपेश्वर (चमोली), [जेएनएन]: वृक्षविहीन बदरीनाथ धाम में पांच शाखाओं वाला देवदार का वृक्ष श्रद्धा का केंद्र बन गया है। इस वृक्ष को पांडवों के इतिहास से जोड़ने के श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के प्रयास रंग लाने लगे हैं। यही वजह है कि वृक्ष के दीदार को रोजाना बड़ी तादाद में यात्री पहुंच रहे हैं।

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बदरीनाथ धाम में बस स्टैंड के पास नर पर्वत पर वर्षों से एक देवदार का वृक्ष खड़ा है। इस वर्ष बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने इस वृक्ष की पौराणिकता को सामने लाने का प्रयास किया। इस वृक्ष की खासियत यह है कि जमीन से इसकी सिर्फ एक ही शाखा है। जबकि दो फीट के बाद दो शाखाएं निकली हुई हैं। इनमें से एक शाखा से तीन और दूसरी से दो शाखाएं फूटकर इसे विलक्षण स्वरूप प्रदान कर रही हैं।

आमतौर पर देवदार के वृक्ष एक मुख्य शाखा में ही आगे बढ़ते हैं, लेकिन इस वृक्ष की पांच शाखाएं इसे अलग स्वरूप प्रदान कर रही हैं। मंदिर समिति ने इसके पंचमुखी स्वरूप को ही प्रचारित किया। यही कारण है कि अब बदरीनाथ धाम आने वाले यात्री इस वृक्ष को देखे बिना वापस नहीं लौट रहे। बता दें कि द्वापर युग के अंत में पांडव इसी रास्ते से होकर स्वर्गारोहिणी यात्रा पर गए थे। इसका उल्लेख शास्त्रों में भी मिलता है।

पांडव वंश का प्रतीक पंचमुखी देवदार

मंदिर समिति के अनुसार उसने धर्माधिकारी के सानिध्य में शास्त्रों का अध्ययन किया। तब पता चला कि देवदार के वृक्ष ऐसा आकार नहीं लेते। समिति का तर्क है कि वृक्ष की मुख्य शाखा महाराजा पांडु को दर्शती है। जबकि, दो शाखाएं कुंती और माद्री की प्रतीक हैं। कुंती वाली शाखा से युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन के रूप में तीन और माद्री वाली शाखा से नकुल व सहदेव के रूप में दो शाखाएं फूट रही हैं। 

स्वर्गारोहिणी यात्रा से जुड़े स्थल

मान्यता है कि स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान हनुमानचट्टी में हनुमान ने भीम का घमंड तोड़ा था। कथा है कि पांडवों को रास्ते में एक वृद्ध बंदर मिला। बंदर की पूंछ रास्ते को अवरुद्ध कर रही थी, सो महाबली भीम ने बंदर से पूंछ हटाने को कहा, लेकिन बंदर ने बीमार होने की बात कहकर असमर्थता जताते हुए भीम से उसे खुद हटाने को कहा। भीम ने तमाम जतन किए, लेकिन पूंछ हटाना तो दूर, वह उसे हिला भी नहीं पाए। तब धर्मराज युधिष्ठिर के निवेदन पर हनुमान जी प्रकट हुए और कहा कि अंतिम यात्रा पर बल का घंमड त्याग देना चाहिए। 

  • भीम पुल: देश के अंतिम गांव माणा में सरस्वती नदी पर विशालकाय शिला से बने भीम पुल को लेकर मान्यता है कि इस शिला से भीम ने पांडवों को सरस्वती नदी पार कराई थी। शिला पर पैर के निशान मौजूद हैं। इन्हें भीम के पैर के निशान माना जाता है।
  • सतोपंथ झील-स्वर्गारोहणी: बदरीनाथ से सतोपंथ-स्वर्गारोहिणी मार्ग पर पांडवों की यात्रा को लेकर कई बातें शास्त्रों में वर्णित हैं। सतोपंथ झील में आज भी कीड़े नजर आते हैं। मान्यता है कि स्वर्गारोहिणी यात्रा पर अपने सब धर्मराज युधिष्ठिर का साथ छोड़ गए और सिर्फ एक श्वान ही उनके साथ रह गया। उसके पैरों पर पड़े कीड़ों को युधिष्ठिर ने यहां साफ किया था। स्वर्गारोहिणी पर्वत पर आज भी सीढ़ीनुमा आकृति विद्यमान है। कहते हैं कि इसी रास्ते युधिष्ठिर ने सशरीर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। 

बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह का कहना है कि मैंने भी फॉरेस्ट में सेवा की, लेकिन अपने सेवाकाल में देवदार के ऐसे वृक्ष देखने को नहीं मिले। नि:संदेह यह देव वृक्ष का प्रतीक है। मंदिर समिति इस वृक्ष को पांडवों के इतिहास से जोड़कर इसके महत्व से आम श्रद्धालुओं को रूबरू करा रही है।

 

श्री बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल का कहना है कि यह वृक्ष पांडवों के इतिहास को दर्शाता है। शास्त्रों में भी देवदार को देववृक्ष माना गया है। श्रद्धालु भी इस वृक्ष के दर्शनों से आल्हादित हैं। बदरीनाथ धाम में वृक्ष ना के बराबर हैं, ऐसे में देववृक्ष सभी के लिए आश्चर्य का विषय है।

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