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    उत्तर प्रदेश में अंधे बाप और बहरे लोकतंत्र की बुग्गी खींचतीं बेटियां

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Sat, 30 Sep 2017 07:00 PM (IST)

    बुग्गी पर बैठा लाचार अंधा पिता, बारी-बारी से बुग्गी खींचतीं बेटियां उस कथित लोकतंत्र को खींच रही हैं जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचने की कसम 70 वर्ष से खा रहा है।

    उत्तर प्रदेश में अंधे बाप और बहरे लोकतंत्र की बुग्गी खींचतीं बेटियां

    शामली [अनुज सैनी]। देश भले ही आज बुराई पर अच्छाई की जीत माने जाने वाले पर्व दशहरा का जश्न मना रहा है, लेकिन शामली में बेटियां अपने पिता को लेकर भ्रष्टाचार से जंग लडऩे में लगी है। बुग्गी पर बैठा लाचार अंधा पिता और बारी-बारी से बुग्गी खींचतीं उनकी बेटियां हिंदुस्तान के उस कथित लोकतंत्र को खींच रही हैं जो अंत्योदय व समाज के अंतिम व्यक्ति तक हर विकास की किरण पहुंच जाने की कसम बीते 70 वर्ष से खा रहा है।

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    शामली के मुख्य मार्ग पर यह नजारा भीड़ के लिए कौतूहल और तात्कालिक सहानुभूति से ज्यादा कुछ नहीं था। जो कुछ पता चला वह समाज व व्यवस्था को शर्मिंदा करने वाला था। 

    बागपत के निवाड़ा गांव के रहने वाले सलमू दिव्यांग (नेत्रहीन) हैं। परिवार तंगहाली में जैसे-तैसे जी रहा था। बीती कांवड़ यात्रा के दौरान सलमू की छोटी-बेटी कांवड़ मेले से लापता हो गई। पुलिस से शिकायत की गई, लेकिन संज्ञान ही नहीं लिया गया। क्योंकि न तो कोई सिफारिश थी और न पुलिस को किसी हंगामे-बवाल का खतरा था। 

    दो वक्त की रोटी जैसे-तैसे जुटाने वाला परिवार इससे आगे के कानूनी दांव-पेच जानता भी नहीं था। काफी दिनों बाद कहीं से सूचना मिली कि लापता बेटी हरिद्वार में है। इतने पैसे नहीं थे कि हरिद्वार जाकर उसे ढूंढ़ा जाए। एक गरीब की बेटी की गुमशुदगी का कानून-व्यवस्था पर जरा भी असर नहीं पड़ता था। पुलिस से कोई उम्मीद नहीं थी। 

    बेटी के लापता हो जाने का दर्द सलमू को ही नहीं, उनकी दो अन्य बेटियों को भी था। कुछ न सूझा तो घर में मौजूद खच्चर और बुग्गी लेकर सलमू और उनकी बेटियां मीना और मोटी बहन को ढूंढऩे निकल पड़ीं। साथ में छोटा भाई भी है। खाने-पीने का सामान साथ में। खानाबदोश जिंदगी और बहन की तलाश। 

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    हरिद्वार में जिसने जहां बताया, वहां पता किया, लेकिन कुछ न पता चला। लेकिन नियति को शायद इससे भी कठिन परीक्षा लेनी थी। घोड़ा-बुग्गी का खच्चर हरिद्वार में चोरी हो गया। गांठ में जो पैसे थे वो भी जाते रहे। थक हार कर परिवार ने लौटने का फैसला किया। घर वापस कैसे जाएं? सलमू की बेटियों ने खुद ही बुग्गी को खींचने का फैसला किया। सलमू की बेटी मीना को किसी से कोई उम्मीद नहीं है। 

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    हरिद्वार से शामली तक 110 किलोमीटर की दूरी दोनों बहनों ने बारी-बारी बुग्गी खींचकर सात दिन में पूरी की। रास्ते में कुछ लोगों ने वजह तो पूछी, लेकिन कोई हाथ मदद के लिए नहीं बढ़ा। मीना को आगे के 70 किलोमीटर की चिंता है। 

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    सलमू नेत्रहीन हैं, लाचार हैं। पूछा गया कि बेटी को खोजने के लिए पुलिस-प्रशासन की मदद क्यों नहीं ली। सलमू बोले-पुलिस से शिकायत की थी। कुछ नहीं हुआ तो फिर जो समझ में आया वो किया।

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    राशन कार्ड, पेंशन कुछ भी सलमू को नसीब नहीं है। वह तो भर्राई आवाज में कहते हैं कि...बेटी मिल जाए यही बहुत है।...मुझे और कुछ नहीं चाहिए...जब आज तक न मिला तो अब क्या मिलेगा।