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    चरखारी के ऐतिहासिक महत्व को किया रेखांकित

    By Edited By: Updated: Sun, 02 Dec 2012 06:23 PM (IST)

    महोबा : चरखारी के एतिहासिक गोव‌र्द्धन नाथ जू मेले पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने चरखारी के ऐतिहासिक वैभव, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने एक स्वर से पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस नगरी को विकसित किए जाने की वकालत की।

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    रविवार को शहर के कटकुलवापुरा स्थित संत कबीर आश्रम में चरखारी मेले पर आयोजित संगोष्ठी में साहित्यकार लखनलाल चौरसिया ने कहा कि राजा मलखान सिंह ने वर्ष 1883 में चरखारी मेले की शुरूआत की थी। जो बुंदेलखंड की लोक संस्कृति को सहेजने का काम कर रहा है। पंडित मेवालाल तिवारी ने कहा कि चरखारी में विभिन्न लीलाओं के रूप में भगवान कृष्ण के 108 मंदिर वृंदावन का अहसास कराते हैं। महाविद्यालय के प्रवक्ता डा. एलसी अनुरागी ने कहा कि राजा अरिमर्दन सिंह सवा लाख रूपए में कलकत्ता की नाटक कंपनी अल्फ्रेड खरीदकर लाए थे। इस नाटक कंपनी में आगा हश्र कंपनी द्वारा लिखित बीस नाटकों का मंचन मेले में किया गया। इसमें यहूदी की लड़की और वनदेवी प्रमुख थे। कवि हरदयाल हरि अनुरागी ने कहा कि चरखारी का गौरवशाली इतिहास रहा है। धार्मिक, सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस मेले के स्वरूप को भव्य रूप प्रदान करने की आवश्यकता है। पूर्व सभासद बलवीर वैश्य ने मेले को राष्ट्रीय मेला घोषित किए जाने की वकालत की। गिरीश श्रीवास्तव, किशोर दादा, राजेंद्र अनुरागी, एमपी भदौरिया ने भी विचार व्यक्त किए।

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