चार साल में दर्जनों बार आमने सामने आ चुके हैं अखिलेश-शिवपाल
ये कोई पहला मौका नहीं है जब शिवपाल और अखिलेश के बीच ऐसी अनबन देखने को मिली हो। इससे पहले दर्जनों मौके आ चुके हैं जब यादव परिवार की अंतर्कलह घर से निकल सार्वजनिक मंचों तक पहुंच गई।
लखनऊ (वेब डेस्क)। सपा में चल रहे घमासान को लेकर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव आमने-सामने आ गए हैं। मुलायम सिंह मामले को मैनेज करने की कोशिश कर रहे हैं। ये कोई पहला मौका नहीं है जब शिवपाल और अखिलेश के बीच ऐसी अनबन देखने को मिली हो। इससे पहले दर्जनों मौके आ चुके हैं जब यादव परिवार की अंतर्कलह घर से निकल सार्वजनिक मंचों तक पहुंच गई।
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1-कौमी एकता दल का विलय
शिवपाल यादव चाहते थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए। इसकी पूरी तैयारी भी हो गई, लेकिन ऐन मौके पर अखिलेश यादव ने इसका विरोध कर दिया। इतना ही नहीं, इसमें भूमिका निभाने वाले बलराम यादव तक को अखिलेश ने बर्खास्त कर दिया। हालांकि, शिवपाल बार-बार ये कहते रहे कि ये निर्णय मुलायम सिंह की अनुमति पर लिया गया है। इसके बाद भी अखिलेश नहीं माने और विलय रद्द हो गया।
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2-अमर सिंह की वापसी
रामगोपाल और आजम खान, अमर सिंह को पार्टी और राज्यसभा में भेजने के विरोध में थे। विरोध की वजह से अखिलेश भी इस पर सहमत नहीं थे, जबकि शिवपाल चाहते थे कि अमर सिंह की वापसी हो। इतना ही नहीं, जब शिवपाल के बेटे आदित्य की शादी हुई तो अमर सिंह ने बकायदा दिल्ली में रिसेप्शन भी दिया। अखिलेश के विरोध के बावजूद अमर सिंह को न केवल राज्यसभा भेजा गया, बल्कि पार्टी में भी उनकी वापसी हो गई।
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3- अखिलेश समर्थकों की बर्खास्तगी
अखिलेश के करीबी माने जाने वाले और 2012 में विकास यात्रा में अखिलेश के साथ रहे सुनील साजन और आनंद भदौरिया को शिवपाल ने बाहर का रास्ता दिखा दिया तो एक बार फिर शिवपाल-अखिलेश आमने-सामने हो गए। इस फैसले के बाद अखिलेश नाराज हो गए और वे सैफई महोत्सव के उद्घाटन कार्यक्रम में भी नहीं गए। हालांकि, उनकी नाराजगी को देखते हुए दोनों ही नेताओं का तीन दिन के अंदर निष्कासन रद्द कर दिया गया।
4- शिवपाल ने दी इस्तीफे की धमकी
शिवपाल कई बार खुद अखिलेश की सरकार को कठघरे में करते रहे हैं। उन्होने 14 अगस्त को मैनपुरी में एक कार्यक्रम में कहा कि अधिकारी उनकी बात नही सुन रहे है । पार्टी के नेता जमीन कब्जाने में लगे हुए है । ये कहकर एक तरह से उन्होने अखिलेश पर निशाना साधा था क्योकि जहां सरकार में सीएम अखिलेश है वही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी तब अखिलेश ही थे । उन्होने ये भी कहा कि अगर ऐसा ही रहा तो वो अपने पद से इस्तीफा दे देगें ।
5-मुख्य सचिव की तैनाती
आलोक रंजन के कार्यकाल खत्म होने के बाद अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनाया जाए, लेकिन शिवपाल के दबाव के चलते सिंघल को मुख्य सचिव बनाया गया। सिंघल पिछले 4 साल से शिवपाल के सिंचाई विभाग में प्रमुख सचिव थे। सिंघल के मुख्य सचिव बनने के बाद कई ऐसे मौके आए, जब सिंघल पर सीएम ने चुटकी ली। हालांकि, दो महीने भी नहीं और अखिलेश ने सिंघल को हटाकर राहुल भटनागर को मुख्य सचिव बना दिया।
6-डीपी यादव का टिकट कटना
2012 में चुनाव के समय प्रचार की कमान अखिलेश यादव के हाथ में थी। ऐसे में जब माफिया डीपी यादव को टिकट देने का मामला आया तो उन्होंने इसका विरोध किया। जबकि शिवपाल चाहते थे कि डीपी यादव को टिकट दिया जाए। बाद में अखिलेश के विरोध के चलते शिवपाल की नहीं चल पाई और यादव को टिकट नहीं दिया गया।
7- बिहार चुनाव में गठबंधन पर आमने-सामने
जब बिहार में चुनाव हो रहे थे, उस समय महागठबंधन में सपा के शामिल होने पर शिवपाल सहमत थे, लेकिन अखिलेश और रामगोपाल यादव इससे सहमत नहीं थे। बाद में सीटों के बंटवारे को लेकर सपा ने महागठबंधन से खुद को अलग कर लिया। वहीं, रामगोपाल को अखिलेश के पाले का और शिवपाल यादव का प्रतिद्वंदी माना जाता है।
8- फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष का मामला
फिल्म विकास परिषद के मामले में भी चाचा-भतीजे के बीच में 36 का आंकड़ा देखने को मिला। बताया जाता है कि शिवपाल के नजदीकी माने जाने वाले अमर सिंह चाहते थे कि जया प्रदा को फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया जाए। शिवपाल भी इस पर सहमत थे, लेकिन अखिलेश ने गोपाल दास नीरज को फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद अमर सिंह काफी आग बबूला भी हुए। फिर दबाव में आकर अखिलेश ने जया प्रदा को फिल्म विकास का वरिष्ठ उपाध्यक्ष बना दिया।
9-मथुरा का जवाहर कांड
मथुरा में हुए जवाहर कांड में भी शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच अनबन दिखाई दी। दरअसल, मीडिया में जिस तरह से खबरें सामने आईं कि शिवपाल कई बार रामवृक्ष से मुलाकात कर चुके हैं, उससे अखिलेश बिल्कुल खुश नहीं थे।
10- अखिलेश सरकार के खिलाफ मोर्चा
शिवपाल ने सरकार को कठघरे में खड़ा करके एक बार अखिलेश के लिए मुसीबत पैदा कर दी, जब उन्होने 6 अगस्त को सरकार के अफसरों के साथ भू-माफिया सपाईयों, शराब तस्करों और ठेकेदारों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अपना इस्तीफा दे डालने की धमकी दे डाली।