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UP Politics : ...और लड़खड़ाया बसपा का मिशन-2017

बसपा के अधिकतर विधायक को अपने साथ में बता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने जल्द बड़े सियासी धमाके के संकेत से बसपा की बेचैनी बढ़ी है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 23 Jun 2016 10:44 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jun 2016 02:54 PM (IST)
UP Politics : ...और लड़खड़ाया बसपा का मिशन-2017

लखनऊ (जेएनएन)। बहुजन समाज पार्टी से बगावत कर पार्टी के मिशन 2017 की तैयारी को झटका देने वाले नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य के अगले कदम पर सब की निगाहें हैं। बसपा के अधिकतर विधायक को अपने साथ में बता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने जल्द बड़े सियासी धमाके के संकेत से बसपा की बेचैनी बढ़ी है। स्वामी प्रसाद का कहना है कि अपने सियासी भविष्य का फैसला जल्द ही सहयोगियों के साथ बैठक में लेंगे।

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बसपा नेतृत्व को अपने महासचिव मौर्य की गतिविधियों पर संदेह जरूर था परन्तु चुनावी साल में अचानक इस तरह बगावत की उम्मीद न थी। स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिस तेवर के साथ मायावती पर हमले किए हैं, उससे यह लड़ाई यहीं पर थमती नहीं दिखती।

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दो वर्ष पहले हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद से बसपा से बाहर जाने का शुरू हुआ सिलसिला और बगावत अभी और बढ़ेगी क्योंकि आंतरिक असंतोष कुछ कम नहीं दिख रहा है।

सूत्र बताते हैं बसपा सुप्रीमो के रवैये से टिकट कट जाने को आशंकित विधायकों की संख्या भी अच्छी-खासी है। राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव के दौरान भी असंतोष साफ दिखा था। 19 जून को आहूत बैठक में मायावती ने भले ही टिकट नहीं कटने की बात कही हो परन्तु इसको स्वीकारने को कोई राजी नहीं है।

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दो-तीन दिनों में ही कई टिकट कटे हैं। मौर्य की बगावत से असंतुष्टों के हौसले बढ़ेंगे। मौर्य सूत्रधार बनेंगे तो बसपा के लिए आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ेंगी।

तलाशना होगा पिछड़ा चेहरा

अब सत्ता हासिल करने के लिए विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी बसपा के लिए अब पिछड़े वर्ग का चेहरा तैयार करने की चुनौती होगी। यूं भी स्वामी प्रसाद के कद का बसपा में कोई पिछड़ा वर्ग से नेता नहीं दिखता। पूर्व सांसद एसपी बघेल व बाबू सिंह कुशवाहा के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य का बसपा छोड़ जाना अन्य पिछड़ा वर्ग की वोटों का भारी नुकसान माना जा रहा है।

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पूर्व विधायक हरपाल सैनी का दावा है कि शाक्य, कुशवाहा, सैनी व मौर्य जैसी बिरादरियां अब वजूद की लड़ाई लड़ेगी।

अंबेडकरवादियों को एकजुट करेंगे

मायावती से खफा स्वामी प्रसाद मौर्य अंबेडकरवादियों को एकजुट करके साझा मंच तैयार करने की राह पर भी बढ़ सकते हैं। मौर्य ने इस्तीफा देने से पत्र में मायावती को अपनी राजनीति से बर्खास्त करने का ऐलान करते हुए बाबा साहब व कांशीराम के विचारों पर चलते हुए बहुजन समाज के मान सम्मान को संघर्ष करने का एलान भी किया।

भाजपा से फासले के संकेत

स्वामी प्रसाद ने जिस प्रकार पत्रकार वार्ता में भाजपा को लेकर कटाक्ष किए उससे उनकी भाजपा में शामिल होने की संभावना का कमजोर करता है। मौर्य ने मायावती पर निशाना साधते हुए भाजपा की मदद का आरोप लगाया। भाजपा से फासला बनाए रखने की एक अहम वजह उनके देवी देवताओं के विरुद्ध दिए बयान भी है। यूं भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर केशव प्रसाद मौर्य की नियुक्ति भी आड़े आती है।

सपा से नजदीकियां भी

मौर्य भले ही अपनी रणनीति उजागर न करें परन्तु उनकी समाजवादी पार्टी से नजदीकी किसी से छिपी नहीं है। इस्तीफा देने की घोषणा के बाद विधानभवन के गलियारे में सपा के प्रदेश प्रभारी शिवपाल यादव और आजम खां से स्वामी प्रसाद मौर्य की मुलाकात से भी अटकलों को बल मिला है।

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मौर्य को सरकार में कैबिनेट मंत्री पद से नवाजा जा सकता है। इसी अंदाज में अकाली दल के नेता बलवंत सिंह रामूवालिया ने भी सपा का दामन थामा था। दल बदल कानून की चपेट से बचते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य बिना विधायक रहे भी छह माह मंत्री बने रह सकते हैं।


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