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    हत्या करने के बाद प्रयाश्चित के लिए दोषी कर रहे पीड़ित परिवार की मदद

    By Amal ChowdhuryEdited By:
    Updated: Sun, 24 Sep 2017 01:29 PM (IST)

    इस जेल में गंगा-यमुना नाम की एक बैरक है, इसमें जब कोई कैदी हत्या की सजा काटने के लिए आता है तब डेढ़ साल तक उसे विशेष बैरक में रखा जाता है।

    हत्या करने के बाद प्रयाश्चित के लिए दोषी कर रहे पीड़ित परिवार की मदद

    लखनऊ (सौरभ शुक्ला)। हत्या कर जिंदगी जेल में गुजार देने से क्या हत्या का पाप कम हो जाता है। एक नहीं बल्कि दो-दो परिवार इसकी सजा भुगतते हैं। हत्या करने वाला तो फिर भी अपने परिजनों से मिल-जुल लेता है, लेकिन जिसे उसने मार डाला, उसके परिवार पर तो मानो कहर ही टूट पड़ता है।

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    उसे जीवनभर एक यातना ङोलनी पड़ती है। पीड़ित परिवार की सेवा करने से ही यह पाप कट सकता है। यह कहना है हत्या की सजा काट रहे 52 वर्षीय एक कैदी राधेश्याम पांडेय का। आदर्श कारागार लखनऊ में ऐसे अनेक कैदी हैं। ये सभी अपने पाप का प्रायश्चित करने में लगे हुए हैं।

    हत्या के मामले में 24 साल से सजा काट रहे गोंडा माधवपुर निवासी राधेश्याम पांडेय (52) को टी-स्टाल चलाने की अनुमति मिली है। वह हर माह की आमदनी का 15 फीसद पीड़ित परिवार के नाम जमा कराते हैं। ऐसे ही एक कैदी जालौन के मालपुर गांव निवासी गगन सिंह (45) हैं। इनके मुताबिक रंजिश के चलते आवेश में उन्होंने 1999 में गांव के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी।

    बाद में उन्हें बड़ा पछतावा हुआ। लेकिन सजा के साथ-साथ जीवन भर प्रायश्चित करने का संकल्प लेकर उन्होंने इस पाप से मुक्ति की राह पा ली। गगन जनरल स्टोर चला रहे हैं। पड़ोसी की हत्या के मामले में सजा काट रहे उन्नाव के लालखेड़ा निवासी राजकुमार (65) पान की दुकान चलाते हैं। इस कमाई से वे अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इसका 15 फीसद हिस्सा पीड़ित परिवार को भी भेजते हैं।

    इस जेल में गंगा-यमुना नाम की एक बैरक है। इसमें जब कोई कैदी हत्या की सजा काटने के लिए आता है, तब डेढ़ साल तक उसे विशेष बैरक में रखा जाता है। इस दौरान चाल-चलन ठीक पाए जाने पर उसे सहज वातावरण वाली गंगा-यमुना बैरक में स्थानांतरित कर दिया जाता है। यहां ऐसे कैदी होते हैं, जिन्हें अपने गुनाह पर पछतावा होता है और वे इसका प्रायश्चित करने का प्रयास कर रहे होते हैं।

    इस बैरक में छह माह गुजारने के बाद यहां के 10 वरिष्ठ बंदियों की पंचायत में फैसला लिया जाता है कि उक्त बंदी को भी प्रायश्चित का मौका दिया जाए। सब कुछ सुनिश्चित हो जाने पर कैदी को सुबह आठ से शाम चार बजे तक मजदूरी अथवा व्यवसाय करने के लिए जेल से बाहर जाने की छूट दे दी जाती है।

    क्या कहते हैं अधिकारी: डीआईजी जेल, वीके जैन कहते हैं, बंदियों की मासिक आय की 15 प्रतिशत राशि पीड़ित प्रतिकर कोष में जमा की जाती है। यह संबंधित जिले के डीएम के जरिए पीड़ित परिवार को भेज दी जाती है। कुछ परिवार इसे लेने से मना भी कर देते हैं। तब उस राशि को वापस बंदी के खाते में जमा करा दिया जाता है।

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    पीड़ित परिवार को भेजते हैं कमाई के 15 फीसद: यहां सजा काट रहे कैदी मेहनत-मजदूरी कर पैसा कमाते हैं। इस कमाई का 15 फीसद हिस्सा पीड़ित परिवार को भेजकर वे इस रूप में अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां कुल 425 कैदी हैं। इनमें से 100 रोजाना गन्ना संस्थान में मजदूरी करते हैं। वहीं कुछ कारागार के बाहर पान, चाय और खाने की दुकान चला रहे हैं।

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