यूपी में मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के खिलाफ मुखर
सहारनपुर और बिजनौर की आतिया, रेशमा, अरीबा और शगुप्ता ने भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से न केवल गुहार लगाई है, बल्कि आतिया कोर्ट की दहलीज तक भी पहुंच चुकी हैं।
लखनऊ (जेएनएन)। राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी के मंझपुरवा गांव की तीन तलाक से पीडि़त महिला आलिया की आत्महत्या के बाद हर कोई आहत है। ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसे लेकर हुंकार भरी है। अब बोर्ड की बैठक इस मुद्दे पर दो अप्रैल को लखनऊ में होगी। उसके बाद उनका एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलेगा।
मुस्लिम महिलाएं एक झटके में दिए गए तीन तलाक को गलत मानती हैं। दूसरी ओर सहारनपुर और बिजनौर की आतिया, रेशमा, अरीबा और शगुप्ता ने भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से न केवल गुहार लगाई है, बल्कि आतिया कोर्ट की दहलीज तक भी पहुंच चुकी हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य अधिवक्ता कुरैशा खातून ने कहा कि आलिया ने तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली पर अन्य पीडि़ताओं को न्याय दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी पैरवी की जाएगी।
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अधिवक्ता सिकंदरजहां कादरी ने कहा कि एक झटके में तीन तलाक देने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता शाइस्ता अख्तर ने कहा कि मुस्लिम वर्ग की युवतियां तीन तलाक देने वालों से निकाह कतई न करें। वरिष्ठ अधिवक्ता जुबेर अहमद अंसारी, अधिवक्ता आकिल इरशाद राजा, जिला बार एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री हिसाल बारी किदवई ने भी तीन तलाक का किया है।
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सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी पैरवी करने की तैयारी
दूसरी ओर तीन तलाक की शिकार बिजनौर की अरीबा ने प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखकर न्याय दिलाने की गुहार लगाई है। उसका निकाह 11 अप्रैल 2012 में नहटौर निवासी महमूद इशहाक के साथ हुआ था। नौ अप्रैल 2015 को महमूद ने कतर से फोन पर ही उसे तलाक दे दिया। तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली सहारनपुर की आतिया साबरी का कहना है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलेगा, वो लड़ती रहेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कुप्रथा को खत्म कराने का वायदा किया था, जिसे उन्हें पूरा करना चाहिए। दूसरी ओर सहारनपुर की ही रेशमा व शगुफ्ता को भी तीन तलाक का दंश झेलना पड़ रहा है। उनका कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। यदि जरूरत पड़ी तो कोर्ट से गुहार लगाएंगीं।
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एकमत नहीं मुस्लिम
सहारनपुर। तीन तलाक का मुद्दा भले ही सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के हवाले कर दिया हो, पर कोर्ट के बाहर खुद मुस्लिम समुदाय में ही इसे लेकर कम चर्चाएं नहीं हो रही हैं। 70 फीसद से भी ज्यादा पुरुष शरीयत कानून को सही मानते हैं, जबकि बाकी लोगों का मानना है कि तीन तलाक कुप्रथा है। इसे खत्म किया जाना चाहिए। दारुल उलूम के मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी, मोहतमिम का कहना है कि मसले में मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड समेत ङ्क्षहदुस्तान के बड़े मुस्लिम संगठनों ने न्यायालय में अपने-अपने हलफनामे दाखिल किए हुए हैं। न्यायालय या संविधान पीठ के मामले में कोई राय नहीं दी जा सकती है।
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