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    Mathura Clash: सत्याग्रहियों के मामले में आंख-कान मूंदे रही सरकार

    जवाहर बाग में दो अफसर शहीद होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसे बड़ी चूक बता रहे हैं। ठीकरा प्रशासन पर फोड़ा जा रहा है मगर मुख्यमंत्री की नाक के नीचे अधीनस्थ अफसरों के कार्यालय में उन पत्रों को रद्दी बनाना भी चूक है जो प्रशासन ने समय-समय पर भेजे।

    By Nawal MishraEdited By: Updated: Sat, 04 Jun 2016 07:50 PM (IST)

    लखनऊ। (जेएनएन) ऑपरेशन जवाहर बाग में दो जांबाज पुलिस अफसरों के शहीद होने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही बहुत बड़ी चूक बता रहे हैं। ठीकरा मथुरा प्रशासन पर फोड़ा जा रहा है, मगर मुख्यमंत्री की नाक के नीचे उनके ही अधीनस्थ अफसरों के कार्यालय में उन पत्रों के रद्दी बनाना बड़ी चूक है जो मथुरा प्रशासन द्वारा समय-समय पर भेजे जाते रहे। ताज्जुब इस बात का भी है कि इन पत्रों की प्रतियां मुख्य सचिव सहित सभी संबंधित अधिकारियों के कार्यालयों को भी भेजी गई थीं।

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    15 मार्च 2014 को जवाहर बाग में डेरा जमाने के बाद जब सत्याग्रहियों की हरकतें बेकाबू होने लगीं, तो प्रशासन के कान खड़े हो गए थे। तीन महीने बाद ही तत्कालीन जिलाधिकारी विशाल चौहान ने शासन को पत्र भेज सत्याग्रहियो की हरकतों की जानकारी दी थी। उद्यान विभाग के कार्यालय पर कब्जा, विभागीय कर्मियों से मारपीट आदि की घटनाओं पर तत्कालीन डीएम बी. चंद्रकला ने भी एक पत्र मुख्य सचिव सहित अन्य उच्चाधिकारियों को भेजा था। इसी दौरान अधिवक्ता विजय पाल सिंह तोमर ने प्रशासन को कठघरे में खड़ा करते हुए हाईकोर्ट में अपील की। 20 मई 2015 को हाईकोर्ट ने प्रशासन को जवाहरबाग खाली कराने के आदेश जारी किए, इससे प्रशासन में खलबली मच गई। पूर्व पत्रों के साथ ही हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए जिलाधिकारी राजेश कुमार ने सभी उच्चाधिकारियों को फिर पत्र भेजा। जनवरी 2016 तक कथित सत्याग्रहियों की हरकतें अराजकता की हर सीमा तोडऩे लगीं। जवाहरबाग में इनके इंतजामों, इरादों से प्रशासन बुरी तरह से घबरा गया था। सत्याग्रहियों की हरकतों से तहसील, कलक्ट्रेट का कार्य प्रभावित होने लगा। राजनीतिक दल भी आवाज उठाने लगे।

    मुख्यमंत्री सचिवालय खामोश रहा

    बाग खाली न होने पर याची के अनुरोध पर 22 जनवरी 2016 को हाईकोर्ट ने प्रशासन को अवमानना नोटिस जारी कर दिया, जिस पर प्रशासन ने अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया। साथ ही शासन को फिर भेजे पत्र में जवाहरबाग के हालात काफी स्पष्ट कर दिए थे। मुख्यमंत्री सचिवालय, मुख्य सचिव सहित सभी उच्चाधिकारियों को भेजे गए इस पत्र में कहा गया था कि कथित सत्याग्रहियों की गतिविधियां संदिग्ध हैं। खुफिया रिपोर्ट के आधार पर जवाहरबाग को खाली कराने के लिए सुरक्षा बल और अन्य संसाधनों की मांग भी की गई थी। प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि शासन स्तर से एक-दो पत्र ही प्रशासन को प्राप्त हुए, जिसमें मामला संज्ञान में लेने का जिक्र था, मगर सकारात्मक सक्रियता जैसी कोई कार्रवाई नहीं हुई। पांच अप्रैल को तहसील में कर्मचारियों पर कथित सत्याग्रहियों ने हमला कर दिया। विरोध में कर्मचारी कई दिनों तक हड़ताल पर रहे, तब शासन ने मामले का संज्ञान लिया। फिर ऑपरेशन जवाहरबाग की रूपरेखा बनाने के निर्देश दिए गए। समय-समय पर बैठकें भी हुईं। कार्रवाई की प्रगति जानी गई।

    कमिश्नर ने भेजा था पत्र

    प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि कमिश्नर प्रदीप भटनागर ने भी शासन को जवाहर बाग के संबंध में पत्र लिखा था। इसमें भी मथुरा में सत्याग्रहियों के कारण अराजक हालात का हवाला दिया गया था। लेखपाल संघ की हड़ताल, राजस्व कर्मियों के आंदोलन, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के धरने-प्रदर्शन के बाद जवाहरबाग खाली कराने को प्रशासन पर जनदबाव बढ़ता जा रहा था। 19 मई को आइजी पीएसी एसबी शिरोडकर और आगरा परिक्षेत्र के डीआइजी अजय मोहन शर्मा मथुरा आए थे। शिरोडकर यहां पर दो दिन रुके थे। इसी दौरान एक प्रशासनिक अधिकारी से काफी जानकारियां ली थीं। आइजी ने जवाहर बाग के आसपास का मुआयना करके अपनी रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को दी थी। इसके बाद ही ऑपरेशन जवाहरबाग को रफ्तार मिलना शुरू हुई थी।