इलाहाबाद हाईकोर्ट का बुलंदशहर गैंगरेप में सीबीआई जांच का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली डबल बेंच ने इस मामले में बेहद गंभीर रुख अपनाया। बुलंदशहर गैंगरेप मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए है।
''14 साल की नाबालिग लड़की से दुराचार हुआ। उसकी जिंदगी तबाह हो गई। आखिर कोई तो इसके लिए जवाबदेह होना चाहिए। -इलाहाबाद हाईकोर्ट''
इलाहाबाद (जेएनएन)। बुलंदशहर राष्ट्रीय राजमार्ग-91 पर मां बेटी से सामूहिक बलात्कार की घटना की जांच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआइ के हवाले कर दी है। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को यह जताने की भरसक कोशिश की गई की पुलिस की जांच सही दिशा में है लेकिन कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुई और सीबीआइ को तत्काल जांच शुरू करने का आदेश दिया। कोर्ट ने माना कि इस घटना में विवेचना नियमानुसार नहीं हुई है। अन्य घटनाओं की सुनवाई जारी है। अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी।
हाईकोर्ट ने मांगा साल भर की बलात्कार, लूट, डकैती की घटनाओं का ब्योरा
बुलंदशहर में 29 जुलाई की रात हाईवे पर एक मां और उसकी नाबालिग बेटी से दुराचार की घटना ने पूरे प्रदेश के हिला दिया था। हाईकोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका कायम की थी। प्रकरण की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि घटनाओं पर पुलिस कार्यवाही से कोर्ट खुश नहीं है। कई दिन से सुनवाई चल रही है किंतु अधिकारियों ने पीडि़ता का बयान तक पेश नहीं किया। इससे पता चलता कि पुलिस ने अपना काम सही तरीके से किया या नहीं। विवेचना ठीक से हो रही है या नहीं।
बुलंदशहर गैंगरेप की सीबीआई जांच कराने के मूड में हाईकोर्ट, 10 को सुनवाई
कोर्ट ने बुलंदशहर की कई अन्य घटनाओं के बारे में भी जानकारी मांगी थी। अपर महाधिवक्ता इमरानुल्लाह ने बताया कि 7 और 12 मई को लूट की घटनाएं हुईं। 9 जुलाई को हुई घटना में लिव इन रिलेशन सामने आया है। कोर्ट इस बात से खफा थी कि घटनाओं में प्राथमिकी क्यों विलंब से दर्ज की गई। लूट की घटनाओं में गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई। कोर्ट ने पूछा कि घटना की प्राथमिकी न दर्ज करने वाले पुलिस कर्मियों पर सरकार कार्रवाई क्यों नहीं करती। आखिर क्यों पहले घटना की रिपोर्ट कमजोर धाराओं में दर्ज की जाती है और बाद में गंभीर धाराएं बढ़ाई जाती हैं। कोर्ट आरोपियों को रिमांड पर न लिए जाने से भी नाराज थी और कहा कि महाराष्ट्र में पुलिस कस्टडी में ले लेती है।
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एसपी नहीं जानते रिपोर्ट का मतलब
कोर्ट ने बुलंदशहर के एसपी की रिपोर्ट पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें रिपोर्ट का मतलब ही नहीं मालूम या फिर समझ ही नहीं है। उनसे मीडिया ने रिपोर्ट नहीं मांगी है, कोर्ट ने मांगी है। इसे दस्तावेजों के साथ दाखिल किया जाना चाहिए था। इससे पहले गुरुवार को कोर्ट ने बुलंदशहर की घटना के परिप्रेक्ष्य में टिप्पणी की थी कि प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।
चार दिन बाद भी सरकार के पास दस्तावेज नहीं
राज्य सरकार हाईकोर्ट में चार दिन बाद भी घटना के पूरे दस्तावेज नहीं पेश कर सकी, जिससे कोर्ट और खफा हुई। कहा कि आरोपियों के सामाजिक व राजनैतिक कनेक्शन की जानकारी मांगी गई थी थी जिसे नहीं दिया गया। एफआईआर की कापी कहां है, लड़की का 164 का बयान कहां है। आरोपियों का मेडिकल क्यों नहीं कराया गया।
'विल' और 'शैल' में बड़ा अंतर
हाईकोर्ट ने नौ जुलाई की घटना में एक माह बाद अखबारों में खबर प्रकाशित होने के बाद प्राथमिकी दर्ज किए जाने को गंभीरता से लिया और कहा कि लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। सरकार की ओर से कहा गया कि 'वी विल टेक एक्शन'। चीफ जस्टिस ने कहा कि 'विल' और 'शैल' में बड़ा अंतर है। सरकारी वकील सकपका गए तो कोर्ट ने कहा कि कुसूर आपका नहीं, आपके पीछे खड़े वर्दीधारियों का है।
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