इस एप की मदद से बिना ऑप्टिशियन के पास जाएं कर सकते हैं आंखें टेस्ट
लंदन: सुदूर क्षेत्रों में अंधेपन का एक बड़ा कारण है हेल्थकेयर तक पहुंच की कमी है, लेकिन अब एक नया स्मार्टफोन एप इन हालातों को बदल देगा। एक ब्रिटिश मूल के आंखों के विशेषज्ञ द्वारा विकसित, पोर्टेबल आइ एग्जामिनेशन किट (पीक) एप संभवत उन लोगों की जिंदगी बदल दें, जिनकी आइ-साइट
लंदन: सुदूर क्षेत्रों में अंधेपन का एक बड़ा कारण है हेल्थकेयर तक पहुंच की कमी है, लेकिन अब एक नया स्मार्टफोन एप इन हालातों को बदल देगा।
एक ब्रिटिश मूल के आंखों के विशेषज्ञ द्वारा विकसित, पोर्टेबल आइ एग्जामिनेशन किट (पीक) एप संभवत उन लोगों की जिंदगी बदल दें, जिनकी आइ-साइट सुदूर क्षेत्रों तक हेल्थकेयर के न पहुंच पाने के कारण खराब है।
पीक एप 3डी प्रिंटेड अडैप्टर के साथ स्मार्टफोन के कैमरा का इस्तेमाल करता है और यह आंखों का चैकअप करने के लिए एक तीक्ष्ण एप है।
बीबीसी ने बताया कि लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसन की टीम द्वारा केन्या में 233 लोगों पर हुए क्लिनिकल ट्रायल में साबित हुआ कि यह एप उतना ही प्रभावकारी है, जितना कि आंखों के परंपरागत चार्ट होते थे, जिन्हें नेत्र विशेषज्ञ प्रयोग करते थे।
बीबीसी के अनुसार प्रोजेक्ट लीडर एंड्रू ने बताया कि “ ज्यादातर लोगों द्वारा आंखों का इलाज न करवा पाने का कारण है कि सेवाओं तक उनकी पहुंच नही हैं और ऐसा इसलिए है कि यह सेवाएं उनसे बहुत दूर हैं या अनअफोर्डेबल है। यदि हम अंधेपन के शिकार लोगों की पहचान समय से पहले कर लें, तो हमारे पास उन्हें जागरुक करने और फिर उचित इलाज मुहैया करवाने के बहुत मौके होंगे।“
आंकड़ों के चार्ट की जगह यह एप स्मार्टफोन की स्क्रीन पर श्रिंगकिंग लैटर दिखाता है। पीक एप रेटिना की जांच करने के लिए कैमरा के फ्लैश और ऑटो-फोकस फंक्शन का इस्तेमाल करता है। सुदूर क्षेत्रों मे तैनात हेल्थकेयर वर्कर्स को आसानी से पीक के इस्तेमाल के लिए ट्रेन किया जा सकता है।
वैसे टेक्नोलॉजी एक प्रभावकारी उपकरण बन सकती है, इसका मतलब है कि कुछ डॉलर का स्मार्टफोन, हजार डॉलर्स के टूल और उपकरण में बदल सकता है।
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