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स्वावलंबन

वैसे तो जीवन जीने की अनेक विधियां हैं, लेकिन उन्हीं के लिए इन विधियों का महत्व है, जो सचमुच जीवन को सफलतापूर्वक जीना चाहते हैं। जिन लोगों को जीवन से कोई मोह नहीं होता, उनके लिए किसी विधि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके जीवन में कोई उद्देश्य नहीं होता। उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए कुछ और भी महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिनका पालन हमें करना च

By Edited By: Published: Tue, 19 Aug 2014 12:39 PM (IST)Updated: Tue, 19 Aug 2014 12:51 PM (IST)
स्वावलंबन
स्वावलंबन

वैसे तो जीवन जीने की अनेक विधियां हैं, लेकिन उन्हीं के लिए इन विधियों का महत्व है, जो सचमुच जीवन को सफलतापूर्वक जीना चाहते हैं। जिन लोगों को जीवन से कोई मोह नहीं होता, उनके लिए किसी विधि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके जीवन में कोई उद्देश्य नहीं होता। उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए कुछ और भी महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिनका पालन हमें करना चाहिए। स्वावलंबन का अर्थ है, स्वयं पर विश्वास करके जीना। कई लोग अपना जीवन स्वयं नहीं जीते, उनका जीवन कोई दूसरा जीता है। वे पराश्रित हो जाते हैं। सड़क किनारे पेड़ों पर पीली-सी लता फैली रहती है, जिसकी अपनी जड़ नहीं होती, यह लता पेड़ से रस लेकर अपना पोषण करती है।
कुछ मनुष्य भी पराश्रित होते हैं, वे स्वयं कुछ नहीं कर पाते। दूसरे के द्वारा अर्जित धन का गलत ढंग से उपभोग करते हैं। इसीलिए वे धन का उपयोग नहीं जानते, क्योंकि वे दूसरों की कमाई खाते हैं। अगर छोटे बच्चे बचपन से स्वावलंबी बनें, अपना काम स्वयं करें, तो वे आत्मनिर्भर बन जाएंगे। जो माता-पिता अपने बच्चों को छोटे-छोटे काम भी नहीं करने देते, वे अपने बच्चों के साथ न्याय नहीं करते। आखिर कब तक कोई माता-पिता अपने बच्चों को पराश्रित रहने देंगे। इसलिए प्रत्येक विवेकशील माता-पिता अपने बच्चों को स्वयं के पांव पर खड़ा होने का प्रशिक्षण देते हैं ताकि भविष्य में अगर उन्हें अपने जीवन में कोई संघर्ष करना पड़े, तो वे बहादुरी से उसका मुकाबला कर सकें। स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता, अपना काम स्वयं करना, ये बहुत ही उत्तम बातें हैं। अपने घरों में भी अपने सामान की देखभाल अपना प्रत्येक काम स्वयं करने का प्रयास करना चाहिए। कहा जाता है- 'जो व्यक्ति स्वयं अपना काम कर सकता है, वही दूसरों की सहायता कर सकता है।' स्वावलंबी व्यक्ति को ही सुख, शांति और धन-वैभव प्राप्त होता है। इसलिए माता-पिता का दायित्व है कि वे बच्चों को उनका काम स्वयं करने दें। अपने सामान की देखभाल अपने अन्य दूसरे काम, अपनी पढ़ाई, होमवर्क, अपनी स्कूल ड्रेस, जूते, पेन-पेंसिल और किताबें आदि वे स्वयं सहेज कर रखें, तभी वे स्वावलंबी बन सकेंगे। आजकल प्यार और दुलार के कारण अनेक माता-पिता अपने बच्चों का सारा काम स्वयं करने लगे हैं। यह तौर-तरीका आगे चलकर बच्चों को बहुत नुकसान करता है।
[आचार्य सुदर्शन महाराज]


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