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आत्मविश्वास

जीवनकाल में अनेक असफलताओं का सामना करने वाला व्यक्ति अगर अपना आत्मविश्वास बनाए रखता है तो एक न एक दिन उसे इच्छित सफलता अवश्य मिलती है। वहीं विडंबना यह है कि सामान्य जीवनयापन करते हुए व्यक्ति आत्म-चिंतन नहीं करता। उसका वैचारिक मंथन केवल दैनिक जरूरतों की वस्तुओं और उनके उपभोग की व्यवस्था करने तक सीमित रहता है। जहां जीवन में कठि

By Edited By: Published: Wed, 20 Aug 2014 12:05 PM (IST)Updated: Wed, 20 Aug 2014 12:55 PM (IST)
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास

जीवनकाल में अनेक असफलताओं का सामना करने वाला व्यक्ति अगर अपना आत्मविश्वास बनाए रखता है तो एक न एक दिन उसे इच्छित सफलता अवश्य मिलती है। वहीं विडंबना यह है कि सामान्य जीवनयापन करते हुए व्यक्ति आत्म-चिंतन नहीं करता। उसका वैचारिक मंथन केवल दैनिक जरूरतों की वस्तुओं और उनके उपभोग की व्यवस्था करने तक सीमित रहता है। जहां जीवन में कठिनाई आई नहीं कि भविष्य की चिंता में सोच-सोचकर मनुष्य तन-मन से कमजोर होता जाता है। संकट के समय में व्यक्ति जीवन संबंधी श्रेष्ठता का विचार करने लगता है। उसमें हर स्थिति का बहुकोणीय विश्लेषण करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। जीवन के प्रत्येक घटनाक्रम पर आत्ममंथन प्रारंभ हो जाता है। संकट के समय में व्यक्ति केवल वैचारिक स्तर पर श्रेष्ठ बने रहकर जीवन नहीं चला सकता। उसे खानपान, वस्त्र, आवास आदि आवश्यक भौतिक वस्तुओं के लिए शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है। सामान्य जीवन में अचानक आई विपदा से कमजोर पड़ा व्यक्ति नए सिरे से जीवन संभालने के प्रति भावनात्मक रूप से तो आशावान रहता है, परंतु व्यावहारिक रूप से वह निराशा से घिरा होता है।
यदि व्यक्ति की युवावस्था निकल गई हो तो उसे और ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति का आत्मविश्वास ही उसका सबसे बड़ा साथी होता है। किसी नए व जटिल लगने वाले कार्य को करने के लिए विचार, नीति और क्रियान्वयन की आवश्यकता तो होती ही है, पर कार्य की सफलता करने वाले के सतत् आत्मविश्वास पर ही टिकी होती है। कोई भी काम व्यावहारिक स्वरूप में आने से पहले एक विचारमात्र होता है। कर्ता का आत्मविश्वास ही कार्य की परिणति निर्धारित करता है। मृत्यु के निकट पहुंचा व्यक्ति भी जीवन के प्रति समुत्पन्न आत्मविश्वास के सहारे वापस जीवनमार्ग पर चलने लगता है। विचार का प्रभावमंडल विचारशक्ति के बजाय उसके लिए गठित आत्मविश्वास से अधिक बढ़ता है। इसी प्रकार कार्य में शत-प्रतिशत सफलता कार्यबल से ज्यादा उसके प्रति सच्ची निष्ठा से निर्धारित होती है। निष्ठा व लगन आत्मविश्वास से ही संभव हो पाती है। विचारवान बनने के बाद व्यक्ति जीवन में हर कार्य कर सकता है और इस संदर्भ में ऊर्जा का जो सबसे प्रभावशाली संसाधन है, वह आत्मविश्वास ही है।
[विकेश कुमार]

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