हमारे प्राचीन वैज्ञानिक
पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और अध्यात्म के साथ-साथ विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया। पौराणिक ग्रंथों में इन वैज्ञानिक ऋषियों का वर्णन मिलता है: अश्विनीकुमार: मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाअ
पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और अध्यात्म के साथ-साथ विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया। पौराणिक ग्रंथों में इन वैज्ञानिक ऋषियों का वर्णन मिलता है:
अश्विनीकुमार: मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।
धन्वंतरि: इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।
महर्षि कपिल: सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना की शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
कणाद ऋषि: ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।
सुश्रुत: ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्यचिकित्सक कहा है।
जीवक: सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थी।
अग्निवेश: ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।
शालिहोत्र: इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।
व्याडि: ये रसायनशास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।
आर्यभट्ट: इन्होंने अंकगणित, रेखागणित, बीजगणित आदि विषयों में युगांतरकारी कार्य किए। इनसे ही विश्व को वर्ग, वर्गक्षेत्र, घन, घनफल, वर्गमूल, घनमूल, क्षेत्रफल आदि के फार्मूले जानने को मिले।
वराहमिहिर: मान्यता है कि वराहमिहिर ने ब्रह्मांड की रचना, उसके रूप, प्रतिष्ठा, आकर्षण शक्ति, पृथ्वी का अक्ष भ्रमण आदि का ज्ञान सैकड़ों वर्ष पूर्व दे दिया था। वराहमिहिर ने मुख्यत: पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जातक और लघुजातक नामक ग्रंथों की रचना की।
[साभार: देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार]
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