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    मर्यादित जीवन सर्वोपरि

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    Updated: Wed, 30 Jul 2014 07:19 PM (IST)

    भक्त-कवि गोस्वामी तुलसीदास के पास मानव चिंता से बढ़कर कोई अन्य चिंता नहीं रही। वाल्मीकि, वेद व्यास के बाद उनकी सामाजिक चिंता की दृष्टि सर्वोपरि है। मानव के भीतरी पक्षों पर उनसे अधिक चिंतित मध्ययुगीन कोई दूसरा संत-भक्त दिखाई नहीं पड़ता। रामकथा में उन्होंने न सिर्फ आने वाले सुखद समाज की कल्पना की, बल्ि

    तुलसी जयंती [3 अगस्त पर विशेष]

    भक्त-कवि गोस्वामी तुलसीदास के पास मानव चिंता से बढ़कर कोई अन्य चिंता नहीं रही। वाल्मीकि, वेद व्यास के बाद उनकी सामाजिक चिंता की दृष्टि सर्वोपरि है। मानव के भीतरी पक्षों पर उनसे अधिक चिंतित मध्ययुगीन कोई दूसरा संत-भक्त दिखाई नहीं पड़ता। रामकथा में उन्होंने न सिर्फ आने वाले सुखद समाज की कल्पना की, बल्कि उन्होंने आदर्श जीवन जीने का मार्ग भी सुझाया है। उन्होंने आचरण की गंगा को करुणा, सत्य, प्रेम और मनुष्यता की धाराओं में वर्गीकृत किया, जिनमें अवगाहन कर कोई भी व्यक्ति अपने आचरण को गंगा की तरह पवित्र कर सकता है।

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    संघर्ष करके बनाई गई पहचान अनूठी होती है। विपरीत परिस्थिति या कष्ट सहना ही तप है। तुलसी का जीवन भी विपरीत स्थितियों व कष्टों में तपकर कुंदन बना। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का सामना किया, तभी कर्म को सकारात्मक और भाग्य को नकारात्मक मानते हुए उन्होंने पाखंड, असत्य और ढोंग में डूबे समाज को जाग्रत किया। यही कारण है कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने तुलसी कृत रामचरित मानस को गृहस्थ जीवन का महाकाव्य कहा, तो महात्मा गांधी ने तुलसी को मानव संस्कृति का शिखर मनीषी कहा था।

    तुलसी का कार्य केवल रामकथा को लोकभाषा में कहना मात्र नहीं था, बल्कि उनकी चिंता थी कि राम के आदर्श जनमानस तक पहुंचें। लोगों में त्याग, करुणा, दया और वीरता के भाव पैदा हों। इसलिए तुलसी ने मेधा भगत के साथ काशी में राम लीला का मंचन भी किया था। वास्तव में तुलसी सद्गुणों को तरजीह देते हैं। उनके अनुसार- अपने गुणों के कारण चंदन देवताओं के शीश पर चढ़ाया जाता है, वह संसार को प्रिय है। अपने दुर्गुणों के कारण कुल्हाड़ी के मुख को अग्नि में जलाकर घन से पीटा जाता है।

    इसी प्रकार, तुलसी के शब्द, उनकी चौपाइयां समाज में व्यावहारिक सूक्तियां बन गई। तुलसी के जन्म के समय सोहर नहीं गाये गए, पर उनकी कृति का विश्व ने मंगल गान किया। उन्होंने न सिर्फ लोक हृदय के पारखी बनकर जीवन में छिपे मर्म को खोला, बल्कि उत्तरकांड में मध्य कालीन भारत का यथार्थ वर्णन भी किया। विषम समस्याओं का समाधान करने में सार्वकालिक और सार्वभौमिक मूल्यों की स्थापना करके तुलसी ने राम को लोकभूमि पर उतारा।

    [डॉ. हरिप्रसाद दुबे]

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