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सेवा को समर्पित जीवन

सिखों के आठवें गुरु थे श्री हरि किशन जी। उन्हें बालगुरु कहा गया, क्योंकि सातवें गुरु और पिता श्री हरि राय जी ने ज्योति-जोत समाते समय मात्र पांच वर्ष की आयु में हरि किशन जी को गुरुगद्दी की जिम्मेदारी सौंप दी थी। छोटी सी उम्र में ही गुरु जी के अंदर गरीबों, लाचारों और बीमारों के प्रति अपार संवेदना थी। दिल्ली में जब चेचक की जानलेवा म

By Edited By: Published: Wed, 23 Jul 2014 06:50 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jul 2014 07:22 PM (IST)
सेवा को समर्पित जीवन

सिखों के आठवें गुरु थे श्री हरि किशन जी। उन्हें बालगुरु कहा गया, क्योंकि सातवें गुरु और पिता श्री हरि राय जी ने ज्योति-जोत समाते समय मात्र पांच वर्ष की आयु में हरि किशन जी को गुरुगद्दी की जिम्मेदारी सौंप दी थी। छोटी सी उम्र में ही गुरु जी के अंदर गरीबों, लाचारों और बीमारों के प्रति अपार संवेदना थी। दिल्ली में जब चेचक की जानलेवा महामारी फैली तो गुरु जी बीमारों की सेवा में लग गए और उसी बीमारी से ग्रस्त होकर मात्र आठ वर्ष की उम्र में ज्योति ज्योत समा गए। उनका छोटा-सा जीवन भी उनके विराट व्यक्तित्व की अद्भुत झांकी दिखा जाता है। गुरु जी अत्यंत गंभीर, सहनशील एवं विशिष्ट आध्यात्मिक साम‌र्थ्य से ओतप्रोत थे। विनम्रता एवं सेवा गुरु जी के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण गुण थे।

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बालगुरु के अद्भुत व्यक्तित्व से प्रभावित होकर औरंगजेब गुरु जी को दिल्ली बुलाना चाहता था, परंतु गुरु जी बादशाह की धार्मिक कट्टरता से अत्यंत क्षुब्ध थे। अंबर नरेश राजा जय सिंह के आग्रह पर गुरु जी दिल्ली तो आए, परंतु उन्होंने औरंगजेब के दरबार में जाना स्वीकार नहीं किया। गुरु जी के दिल्ली-प्रवास के दौरान ही दिल्ली में चेचक की महामारी फैल गई। चेचक ग्रस्त लोगों की दयनीय दशा देखकर बाल-गुरु का कोमल एवं स्नेहशील हृदय विदीर्ण हो उठा। वे चेचक के रोगियों की देखभाल और सेवा करने में जुट गए। इतनी छोटी उम्र में लोक के कष्ट एवं पीड़ा के प्रति उनके अंदर इतनी सहानुभूति थी।

गुरु जी द्वारा दी गई औषधि एवं की गई सेवा द्वारा अनेक रोगी भले-चंगे हो गए। इस सेवा से गुरु जी की महिमा दसों दिशाओं में फैल गई। यह देखकर औरंगजेब ने स्वयं गुरु जी के दर्शनों की अभिलाषा व्यक्त की, परंतु गुरु जी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वे चेचक रोगियों की सेवा में व्यस्त रहे।

अंतत: गुरु जी भी चेचक की गिरफ्त में आ गए। जीवन-काल की पूर्णता निकट अनुभव कर गुरु जी ने 'बाबा बकाले' कहकर अगले गुरु श्री तेग बहादुर जी की ओर संकेत किया और वे ज्योति-जोत समा गए।

[डॉ. राजेंद्र साहिल]

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