Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सत्य अक्षय है

    By Edited By:
    Updated: Wed, 21 Nov 2012 12:29 PM (IST)

    माना जाता है कि अक्षय नवमी को श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा कर कंस के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को जगाया था और अगले दिन कंस का वध कर साबित कर दिया कि सत्य अक्षय होता है। कल अक्षय नवमी है, इस अवसर पर गोपाल चतुर्वेदी का आलेख..

    माना जाता है कि अक्षय नवमी को श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा कर कंस के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को जगाया था और अगले दिन कंस का वध कर साबित कर दिया कि सत्य अक्षय होता है। कल अक्षय नवमी है, इस अवसर पर गोपाल चतुर्वेदी का आलेख..

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। पुराणों के मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का भी विधान है। अक्षय का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। मान्यता है कि इस दिन किए गए सद्कार्र्यो का अक्षय फल प्राप्त होता है।

    अक्षय नवमी के दिन मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करने को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन में अपने ग्वाल-सखाओं के साथ घूम-घूम कर कंस के आतंक के विरुद्ध जन-जागरण किया था और वहां के निवासियों से मिलकर उनका पक्ष जाना था। इसका ही परिणाम था कि अगले दिन दशमी को श्रीकृष्ण ने अत्याचारी शासक कंस का अंत कर दिया था। इस तरह यह जन-जागरण का भी पर्व है। यह पर्व यह संदेश देता है कि जीत हमेशा सत्य की ही होती है। असत्य, आतंक और छल भले ही कितने भी शक्तिशाली हों, उनकी उम्र ज्यादा नहीं होती। सत्य अक्षय है। अत: सर्वदा सत्य के मार्ग का ही वरण करना चाहिए। आज भी आम लोग इस दिन मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा को पूरा करते हैं। यह परिक्रमा मथुरा के विश्राम घाट पर यमुना जल के आचमन को लेकर शुरू होती है और यहीं पर आकर समाप्त होती है। परिक्रमा मार्ग में अनेक मंदिर हैं, जिनके लोग दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं।

    पौराणिक ग्रंथों में अक्षय नवमी के संबंध में एक रोचक कथा भी है। दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन के इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गए। तभी उनकी नजर एक सुंदरी पर पड़ी। वे उस पर मोहित हो गए। युवती का नाम किशोरी था और वह इसी राज्य के व्यापारी कनकाधिप की पुत्री थी। मुकुंद देव ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। इस पर युवती रोने लगी। उसने कहा कि मेरे भाग्य में पति का सुख लिखा ही नहीं है। राज ज्योतिषी ने कहा है कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरने से मेरे वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी।

    मुकुंद देव को अपने प्रस्ताव पर अडिग देख किशोरी भगवान शंकर की आराधना में लीन हो गई और मुकुंद देव अपने आराध्य सूर्य की आराधना में। कई माह बाद भगवान शंकर ने युवती से सूर्य की आराधना करने को कहा। दोनों सूर्य की आराधना कर रहे थे, इसी बीच विलोपी नामक दैत्य की नजर किशोरी पर पड़ी। वह उस पर झपटा। सूर्य देव ने अपने तेज से उसे तत्क्षण भस्म कर दिया और युवती से कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो। किशोरी और मुकुंद देव ने मिलकर मंडप बनाया। अकस्मात घनघोर घटाएं घिर आई और बिजली चमकने लगी। भांवरें पड़ गई, तो आकाश से बिजली विवाह मंडप की ओर गिरने लगी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया।

    इस पौराणिक कथा के कारण आंवले के वृक्ष को पूजनीय माना जाने लगा। हालांकि आंवले का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। पौराणिक ग्रंथों से लेकर नए शोधों तक में इसके अनेक गुण बताए गए हैं। इसलिए इसकी पूजा का तात्पर्य इस अत्यंत लाभकारी वनस्पति को बचाये रखने का संकल्प लेना भी है, ताकि हम स्वस्थ रह सकें।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर