Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लोक के रंग में आस्था का प्रवाह

    नंदा प्रकृति है और संस्कृति भी। वह जीवन के हर रंग में समाई हुई है। उसका ससुराल से मायके आना और फिर मायके से ससुराल के लिए विदाई आम पहाड़ी के लिए एक सामान्य घटना है। लेकिन, विदाई के इस उत्सव (जात) में जब लोक के रंगों का समावेश होता है तो यह अलौकिक घटना बन जाती है। जात रूपी

    By Edited By: Updated: Wed, 13 Aug 2014 03:35 PM (IST)

    देहरादून, जागरण संवाददाता। नंदा प्रकृति है और संस्कृति भी। वह जीवन के हर रंग में समाई हुई है। उसका ससुराल से मायके आना और फिर मायके से ससुराल के लिए विदाई आम पहाड़ी के लिए एक सामान्य घटना है। लेकिन, विदाई के इस उत्सव (जात) में जब लोक के रंगों का समावेश होता है तो यह अलौकिक घटना बन जाती है। जात रूपी इस सौंदर्य पथ में जहां हिमशिखरों एवं जलधाराओं की विराटता है, वहीं सरसता में लोक संस्कृति एवं आस्था का प्रवाह। इस यात्रा से यात्री को एक ऐसी ऊर्जा मिलती है, जो केवल आध्यात्मिक शांति ही नहीं, बल्कि रोमांच के साथ जीवन में नई स्फूर्ति भी प्रदान करती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जात, जात्राएं या यात्राएं सनातनी परंपरा के ऐसे तत्व रहे हैं, जो लोगों को जोड़ने और उन्हें एक-दूसरे के निकट आकर जानने-समझने के अवसर प्रदान करते हैं। नंदा उत्सव या नंदा राजजात इनमें से एक है, जिसे देवभूमि में हम सामूहिकता व परस्पर मिलन के अनुष्ठान के रूप में देखते हैं। साहित्यकार डॉ. प्रकाश थपलियाल के अनुसार शक्ति के रुद्र रूप की तरह नंदा भी कुमाऊं हिमालय की सबसे ज्यादा लोकप्रिय देवी है। यही कारण है कि इस प्रांत की सबसे ऊंची चोटी का नाम नंदा देवी रखा गया। गढ़वाल में मल्ली दशोली में कुरुड़ की नंदा और परगना तल्ली दशोली में हिंडोली व मनोड़ा की नंदा का विशेषतौर पर जिक्र होता है। यहां के लोगों ने तो उस नदी का नाम ही नंदाकिनी रखा है, जो नंदादेवी के साथी तीन चोटियों वाले पर्वत त्रिशूली से निकलती है और स्रोत के आसपास के क्षेत्र का नाम नंदाक रख छोड़ा है। इसके पीछे प्रकृति के संरक्षण का भाव भी छिपा हुआ है।

    असल में जब हम नंदा राजजात का हिस्सा बनते हैं तो नंदा पथ में बिखरे प्रकृति के अनमोल खजाने से सीधे-सीधे हमारा साक्षात्कार होता है। विशाल जनसमूह हिमालय के दुर्लभ नजारों से अभिभूत हो उठता है। यह पथ हमेशा आस्था, आध्यात्म, रोमांच, सौंदर्यता के कारण प्रकृति की विराटता के करीब आने आमंत्रण देता रहा है और वर्तमान में भी दे रहा है। ट्रैवलर हैंड बुक 'नंदा पथ आस्था पथ' में सर्वेश उनियाल व हरीश भट्ट लिखते हैं कि जनसैलाब के साथ प्रत्येक प्रतिभागी को कुछ कर्तव्यों के निर्वहन की सदैव आवश्यकता रहेगी।

    वेदांत सोसाइटी के अधिष्ठाता स्वामी पवित्रानंद ने लिखा है, 'हिमालय और गंगा को हटा दीजिए, भारतीय धार्मिक इतिहास महत्वहीन हो जाता है।' वास्तव में 'नंदा देवी शिखर' हिमवंत का वास्तविक प्रतिनिधि है और नंदा भगवती उस पर विराजमान शाश्वत शक्ति का प्रतीक। श्री नंदा देवी राजजात इस संपूर्ण संकल्पना का लोक में रचा-बसा मूर्तिमान स्वरूप है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि नंदा राजजात गढ़वाल की एक बेटी की आशाओं, आकांक्षाओं, कठिनाइयों आदि के साथ ही पितृपक्ष की उसके प्रति सहज स्नेहाभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व भी करती है।

    पढ़े: कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति की जात

    कश्मीरी पंडितों की पवित्र कौसरनाग झील पर बनाई मस्जिद, अता की नमाज!