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झारखंड का अनूठा बौद्ध मंदिर

झारखंड के प्राचीन स्मारक हमेशा से यहां के निवासियों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं । चाहे वो धार्मिक प्रकार के स्मारक हों या नागरिक भवन हों, सभी यहां के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। रामगढ-बोकारो मार्ग पर गोला के समीप सड़क की दक्षिण दिशा में एक विशालकाय शिखरयुक्त मंदिर सदियों से खड़ा झारखंड का इतिहास कहने को आत

By Edited By: Published: Fri, 24 May 2013 12:44 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2013 01:02 PM (IST)
झारखंड का अनूठा बौद्ध मंदिर

झारखंड के प्राचीन स्मारक हमेशा से यहां के निवासियों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं । चाहे वो धार्मिक प्रकार के स्मारक हों या नागरिक भवन हों, सभी यहां के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। रामगढ-बोकारो मार्ग पर गोला के समीप सड़क की दक्षिण दिशा में एक विशालकाय शिखरयुक्त मंदिर सदियों से खड़ा झारखंड का इतिहास कहने को आतुर-सा दिखता है। स्थानीय लोगों में खीरी मठ के नाम से प्रसिद्ध यह भव्य संरचना वस्तुत: एक बौद्ध मंदिर है। लगभग अस्सी फीट ऊंचा यह मंदिर सप्तरत योजना के अनुरूप बनाया गया है तथा इसे देखने पर एकदम से अहसास होता है कि यह बोध गया के विश्व प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिकृति है। इस मंदिर का निर्माण सीधे सीधे समतल जमीन पर किया गया है तथा भूमि पर इसका आकार लगभग चालीस फीट वर्गाकार है । इसमें पूरब और पश्चिम दिशा में श्रद्धालुओं के मंदिर में सहज प्रवेश के लिये लगभग पांच फीट उंचाई के दो द्वार बने हुये हैं। शिखर के समीप दा खिडकियों जैसी संरचनायें भी बनाई गई हैं जिससे सूरज की रौशनी मंदिर के अंदर लगातार आती रहती है और अंधेरा नहीं होता । अंदर गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं दिखती और अब यह मंदिर अत्यंत उपेक्षित अवस्था में जीवन के संभवत: अंतिम दिन गिन रहा है। पूर्वी प्रवेश द्वार के ठीक उपर लगभग चालीस फीट की उंचाई पर पत्थर के एक पैनल में बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठी मूर्ति लगाई ग‌र्इ्र है और पास में ही दो मछलियों की आकृतियां भी उकेरी गई हैं। पश्चिम द्वार के उपर सिर्फ मछलियों की आकृतियां ही दिखती हैं। इसका निर्माण ईंट और पत्थर से मिश्रित रूप में किया गया है। शिखर के अंतिम छोर पर बौद्ध स्थापत्य के अनुरूप तीन स्तर की छत्रवली भी बनाई गई है। यह मंदिर तथा पास ही में बौद्ध धर्म की छिन्न मस्तिका परम्परा के मंदिर की उपस्थिति यह आभास देती है कि यह पूरा क्षेत्र एक समय बौद्ध धर्म के प्रभाव में अवश्य था। हजारीबाग क्षेत्र में भी गांव गांव में बौद्ध धर्म से संबंधित असंख्य प्राचीन मूर्तिया देखने को मिल जाती हैं। स्थापत्य शैली के आधार पर इसे लगभग 17वीं-18वीं शताब्दी का माना जा सकता है। आप जब भी इधर से गुजरें, रूक कर इसके दर्शन अवश्य कर लें ,क्योंकि सरकार की अनवरत उपेक्षा डोलता हुआ स्थापत्य का यह अद्भुत नमूना ज्यादा दिन चल सके, ऐसा नहीं प्रतीत होता। झारखंड के प्राचीन स्मारक हमेशा से यहां के निवासियों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं । चाहे वो धार्मिक प्रकार के स्मारक हों या नागरिक भवन हों, सभी यहां के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। रामगढ-बोकारो मार्ग पर गोला के समीप सड़क की दक्षिण दिशा में एक विशालकाय शिखरयुक्त मंदिर सदियों से खड़ा झारखंड का इतिहास कहने को आतुर-सा दिखता है। स्थानीय लोगों में खीरी मठ के नाम से प्रसिद्ध यह भव्य संरचना वस्तुत: एक बौद्ध मंदिर है। लगभग अस्सी फीट ऊंचा यह मंदिर सप्तरत योजना के अनुरूप बनाया गया है तथा इसे देखने पर एकदम से अहसास होता है कि यह बोध गया के विश्व प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिकृति है। इस मंदिर का निर्माण सीधे सीधे समतल जमीन पर किया गया है तथा भूमि पर इसका आकार लगभग चालीस फीट वर्गाकार है । इसमें पूरब और पश्चिम दिशा में श्रद्धालुओं के मंदिर में सहज प्रवेश के लिये लगभग पांच फीट उंचाई के दो द्वार बने हुये हैं। शिखर के समीप दा खिड़कियों जैसी संरचनायें भी बनाई गई हैं जिससे सूरज की रौशनी मंदिर के अंदर लगातार आती रहती है और अंधेरा नहीं होता । अंदर गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं दिखती और अब यह मंदिर अत्यंत उपेक्षित अवस्था में जीवन के संभवत: अंतिम दिन गिन रहा है। पूर्वी प्रवेश द्वार के ठीक उपर लगभग चालीस फीट की उंचाई पर पत्थर के एक पैनल में बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठी मूर्ति लगाई ग‌र्इ्र है और पास में ही दो मछलियों की आकृतियां भी उकेरी गई हैं। पश्चिम द्वार के उपर सिर्फ मछलियों की आकृतियां ही दिखती हैं। इसका निर्माण ईंट और पत्थर से मिश्रित रूप में किया गया है। शिखर के अंतिम छोर पर बौद्ध स्थापत्य के अनुरूप तीन स्तर की छत्रवली भी बनाई गई है। यह मेंिदर तथा पास ही में बौद्ध धर्म की छिन्न मस्तिका परम्परा के मंदिर की उपस्थिति यह आभास देती है कि यह पूरा क्षेत्र एक समय बौद्ध धर्म के प्रभाव में अवश्य था। हजारीबाग क्षेत्र में भी गांव गांव में बौद्ध धर्म से संबंधित असंख्य प्राचीन मूर्तिया देखने को मिल जाती हैं। स्थापत्य शैली के आधार पर इसे लगभग 17वीं-18वीं शताब्दी का माना जा सकता है। आप जब भी इधर से गुजरें, रूक कर इसके दर्शन अवश्य कर लें ,क्योंकि सरकार की अनवरत उपेक्षा डोलता हुआ स्थापत्य का यह अद्भुत नमूना ज्यादा दिन चल सके, ऐसा नहीं प्रतीत होता।

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