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    लघुकथा- ओछी मानसिकता

    By Babita kashyapEdited By:
    Updated: Fri, 12 Aug 2016 01:04 PM (IST)

    दीपावली में वैसे ही मुझे घर के काम से फुर्सत नहीं है और ऊपर से ये ढेर सारे दीये उठा लाए। अपनी इस ओछी मानसिकता को त्याग दो

    ढेर सारे माटी के दीयों को देखते ही सावित्री पति पर बरस पड़ी, 'दीपावली में वैसे ही मुझे घर के काम से फुर्सत नहीं है और ऊपर से ये ढेर सारे दीये उठा लाए। अपनी इस ओछी मानसिकता को त्याग दो कि ज्यादा दीपक जलाने से ज्यादा लक्ष्मी आएगी। अरे, जितना किस्मत में होगा उतना ही मिलेगा। मैं आखिर कब तक खटती फिरूं?'

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    इस पर पति ने शांत लहजे में उत्तर देते हुए कहा, ''अरी भाग्यवान! बेवजह क्यों चीख रही हो। तुम्हारी जितनी इच्छा हो उतने ही दीपक लगाना। मैं तो इसलिए खरीद लाया कि दीपक बेचने वाले के घर में आज के दिन ज्यादा नहीं तो कम से कम दो दीपक तो जलें।'

    पति के मुख से निकले शब्दों को सुन सावित्री को लगा कि उसके द्वारा अभी-अभी पति के लिए प्रयुक्त 'ओछी मानसिकता' शब्द अनायास ही 'व्यापक मानसिकता' में तब्दील हो गया है। वह गुस्सा भूल कर उन माटी के दीयों को सहेजकर सुरक्षित स्थान पर रखने लगी।

    -मीरा जैन

    (साभार: भारत-दर्शन संकलन)

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