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उन्‍होंने उसे प्यार की भाषा सिखा दी थी...

गोविंद भी अब करीब 12 साल का हो चुका था और खेती के काम में उमाकांत की बहुत मदद करता।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2016 12:16 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jun 2016 12:27 PM (IST)
उन्‍होंने उसे प्यार की भाषा सिखा दी थी...

एक किसान के लिए उसकी गाय और बैल जानवर नहीं परिवार के सदस्य की तरह होते हैं। उसे कोई आईआईटियन समझता कैसे...?

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उस ‘बेजुबान’ गोविंद का जन्म उमाकांत के घर पर ही हुआ था। वो उमाकांत को देखते ही उसकी तरफ दौड़ पड़ता, उमाकांत की जान भी मानो उसी में बसती थी। गोविंद भी अब करीब 12 साल का हो चुका था और खेती के काम में उमाकांत की बहुत मदद करता।

उमाकांत व पद्मा का एक बेटा था, जिसका नाम पारस था। पारस भी पढ़ाई में होशियार था और कड़ी मेहनत व आर्थिक तंगी के बीच उसने आईआईटी दिल्ली से बीटेक किया था और अब बढ़िया नौकरी कर रहा था। इधर गांव में पद्मा और उमाकांत ‘बेजुबान’ गोविंद के साथ खेती- गृहस्थी में मशगूल रहते थे।

सब ठीक ही चल रहा होता अगर उस रात उमाकांत आंगन में फिसलकर गिरे नहीं होते। बहुत जोर से चोट लगी थी। बेजुबान गोविंद के पास आवाज नहीं थी, लेकिन अगर किसी ने उमाकांत के लिए ईश्वर से सबसे ज्यादा प्रार्थना की होगी तो वो गोविंद ही होगा। सुबह होते ही उमाकांत को पास के शहर के अस्पताल ले जाया गया।

डॉक्टर ने उमानाथ के पैर पर प्लास्टर चढ़ाया और रॉड लगाने के लिए ऑपरेशन करने की जरूरत बताई। पारस उमाकांत को ट्रेन से दिल्ली ले आया।

जिंदगी में पहली बार उमाकांत अपने बेटे के घर दिल्ली आए थे वो भी इस हालत में। उन्हें अब अपने पैर से ज्यादा चिंता गांव में अकेले गोविंद की हो रही थी। उधर, चार दिन बीत जाने के बाद भी उमाकांत और पद्मा को न देखकर गोविंद का दिल बैठा जा रहा था। उमाकांत ने पास में रहने वाले अरविंद को गोविंद के खाने का इंतजाम करने को कह दिया था, लेकिन खाना गोविंद के गले के पार ही नहीं हो रहा था। उमाकांत भी समझ रहे थे कि गोविंद की क्या हालत होगी, लेकिन वे लाचार थे। उमाकांत ने पद्मा को गांव लौटने को कहा, लेकिन वह भला अपने बीमार पति को छोड़कर कैसे गांव जाती? इस बीच उमाकांत के पैर का ऑपरेशन हो गया। पारस को गोविंद

की कोई खास चिंता नहीं थी पर उमाकांत परेशान थे और शीघ्र गोविंद के पास जाना चाहते थे। पारस अपने मां-बाप के साथ रहना चाहता था और उसकी नौकरी इसकी इजाजत नहीं देती थी कि गांव में जाकर रह

सके।

पारस की इस सोच की सबसे बड़ी बाधा और कोई नहीं बल्कि गोविंद था, क्योंकि उसके पिता उमाकांत गोविंद को छोड़कर रहने को तैयार नहीं थे। पारस की आंखों में अब गोविंद खटकने लगा था। पारस ने सबसे पहले अपनी मां पद्मा से इस बात का जिक्र किया। पारस ने मां से कहा कि क्यों न गोविंद को किसी और को दे दें, यह सुनकर पद्मा भी भावुक हो उठीं और इसके लिए साफ इंकार कर दिया। लेकिन बेटे की मजबूरी और ममता के आगे बेबस होकर

हामी भर दी। दोनों ने तय किया कि इस बात की खबर उमाकांत को नहीं होने देंगे। पारस ने गांव में गोविंद की देखभाल कर रहे अरविंद को फोन लगाया और गोविंद को किसी और को बेच देने को कह दिया, साथ में यह हिदायत भी दी कि वे इस बात का जिक्र फिलहाल उसके पिता उमाकांत से न करें। गांव में अरविंद गोविंद के

लिए रोज नए ग्राहक ढूंढ़कर ला रहा था।

गोविंद को तो गांव में ही कोई और व्यक्ति ले लेता, लेकिन अरविंद को पारस ने साफ कहा था कि उसे कहीं दूर बेचना है ताकि उमाकांत उसे फिर ढूंढ न पाएं। इधर, काफी दिन बीत जाने के बाद भी उमाकांत और पद्मा को अपने पास न पाकर गोविंद ने खाना और कम कर दिया था। अरविंद को लगा कि अगर गोविंद ने दो-चार दिन तक खाना छोड़ दिया तो फिर अच्छे दाम नहीं मिलेंगे। अरविंद ने अगली सुबह शनिवार को गोविंद को शहर के हाट में ले जाने का फैसला किया। वहां मौजूद किसान गोविंद के लिए करीब 7,000 रुपए का भाव बता रहे थे, सौदा पक्का भी होने वाला था कि तभी एक गोरा चिट्टा जवान आया और अरविंद के हाथ में 11,000 रुपए थमाकर गोविंद की रस्सी अपने हाथों में थाम ली। गोविंद भले ही बैल था, लेकिन उसने अभी तक कभी भी उमाकांत के अलावा किसी की नहीं सुनी थी। गोविंद ने अपना शरीर दूसरी दिशा में खींचना शुरू किया, लेकिन तभी उस जवान के साथ मौजूद दो लोगों ने गोविंद के शरीर में एक इंजेक्शन दिया और गोविंद थोड़ी ही

देर में बेहोश हो गया।

गोविंद को एक ट्रक में लादकर वे लोग कोलकाता जाने वाले हाइवे पर चल दिए। उस ट्रक पर पहले से भी कुछ

जानवर लदे हुए थे। जब उसे होश आया उसने खुद को अपने जैसे कुछ गायों व बैलों के बीच में पाया। उस ट्रक पर खड़े होने की भी जगह नहीं थी और ट्रक का पिछला हिस्सा पूरी तरह से कपड़े से ढंका हुआ था।

पता नहीं क्यों, पर उस रात उमाकांत को नींद नहीं आई। उमाकांत ने सुबह होते ही दूसरे दिन की ट्रेन में टिकट देखने के लिए पारस को कहा। गाड़ी का टिकट हो चुका था। पारस नहीं जा रहा था। उमाकांत और पद्मा जा रहे थे।

उमाकांत ट्रेन में ही थे कि उनके गांव के ही बचपन के मित्र सरयू का फोन आ गया।

सरयू ने शिकायती अंदाज में उमाकांत से पूछा कि अगर गोविंद को बेचना ही था तो उन्हें क्यों नहीं बेचा या पूछा क्यों नहीं। उमाकांत के कानों में मानो किसी ने शीशा पिघलाकर डाल दिया था। गांव पहुंचने पर अरविंद ने उन्हें सारी बात बता दी। उमाकांत को अपनी पत्नी और बेटे पर बहुत तेज गुस्सा आ रहा था, लेकिन इस वक्त उन्हें

सबसे पहले गोविंद का पता लगाना था।

उमाकांत मवेशियों की खरीद बिक्री करने वाले एक व्यक्ति के पास पहुंचे तो पता चला कि शनिवार को कोलकाता से कुछ व्यापारी आए थे और एक ट्रक में भरकर जानवर कोलकाता लेकर गए थे, शायद गोविंद भी उसी में था। यह सुनकर उमाकांत का दिल बैठा जा रहा था, उन्हें पता था कि आम तौर पर छोटी जगहों से पशुओं को खरीदकर इस तरह से ट्रक में भरकर बड़े शहर ले जाने का काम कसाई ही करते हैं। पारस ने कोलकाता में रहने वाले अपने एक आईपीएस मित्र सुधीर को फोन लगाया। सुधीर ने करीब आधे घंटे बाद पारस को बताया कि उसी दिन सुबह झारखंड से कोलकाता आ रहा एक ऐसा ही ट्रक पुरुलिया के पास जब्त हुआ है, जिस पर जानवर लदे हुए हैं। जो पारस गोविंद से नफरत करता था, वही पारस उसी वक्त, बिना समय गंवाए, दिल्ली एयरपोर्ट के लिए निकल पड़ा। उसे अगले तीन-चार घंटे में कोलकाता पहुंचना था। वहां से वो अपने आईपीएस मित्र के साथ पुरुलिया जाने वाला था। निराश उमाकांत ने अन्न-जल का त्याग कर दिया। वे गुहाल में एक चारपाई पर वहीं लेटे हुए थे, जहां गोविंद रहता था। उमाकांत की आत्मा विचलित होती जा रही थी। उधर, सुधीर के साथ पारस पुरुलिया पहुंच चुका था। थाने में खड़े ट्रक की ओर जैसे-जैसे पारस के कदम बढ़ रहे थे, पारस की सांसें तेज हो रहीं थीं। उसने अपने किसान पिता को पहचानने में भूल की थी। एक किसान के लिए गाय और बैल जानवर नहीं बल्कि उसके घर के सदस्य की तरह होते हैं।

पारस ने बस एक बार पुकारा गोविंद..... ट्रक के अंदर से जो आवाज आई, उसने पारस की आंखों में चमक भर दी। यह आवाज किसी और की नहीं बल्कि गोविंद की थी।

ट्रक अब वापस उमाकांत के गांव की ओर दौड़ा चला जा रहा था। उमाकांत को अब तक खबर मिल चुकी थी, लेकिन उमाकांत को किसी के कहे पर भरोसा नहीं था, पद्मा के कहे पर भी नहीं। शाम के करीब 5 बजे जैसे ही चारपाई पर पड़े उमाकांत के कानों में ट्रक की आवाज आई, उमाकांत बिजली की सी तेजी से दरवाजे की ओर लपके। दरवाजे पर ट्रक खड़ा था।

उमाकांत ने बड़े प्यार से आवाज लगाई ‘गोविंद...गोविंद..’। ट्रक के अंदर से गोविंद ने चिर-परिचित अंदाज में अपनी आवाज में उमाकांत को जवाब दिया। जैसे ही ट्रक के पिछले हिस्से में मौजूद बैरियरनुमा सरिया हटी, दूसरे जानवरों को लगभग लांघते हुए गोविंद उमाकांत की ओर दौड़ा। यह मिलन सारे गांववालों के लिए अद्वितीय था। आज जानवर और इंसान का भेद लोगों ने मिटते हुए देखा था। बेजुबान गोविंद ने आईआईटियन पारस को

प्यार की भाषा सिखा दी थी।


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