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    आरटीआई को हथियार बना बदला सिस्टम

    By Edited By: Updated: Mon, 23 Jan 2012 01:59 AM (IST)

    राजेश योगी, जालंधर

    कहने को तो वह एडवोकेट हैं, मगर उनका नाम वकील के तौर पर कम आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर ज्यादा जाना जाता है। एडवोकेट राजिंदर भाटिया एक ऐसे शक्स हैं, जिन्होंने राइट टू इंफार्मेशन एक्ट को लेकर सूबे में नए आयाम स्थापित करने की कोशिश की।

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    एजुकेशन सिस्टम हो या जेलों में अव्यवस्था, जिमखाना जैसा क्लब हो या एपीजे जैसी संस्था आरटीआई के दायरे में लाकर उन्हें सिस्टम बदलने को मजबूर कर दिया। भाटिया के साथ साल 2005 में ऐसा वाक्या हुआ कि उन्होंने आरटीआई को हथियार बनाया व फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इस दौरान 2010 दिसंबर में पब्लिक रिसर्च फाउंडेशन दिल्ली की ओर से उप राष्ट्रपति हमीद अंसारी ने उन्हें अवार्ड आफ एप्रीसिएशन से नवाजा। एडवोकेट राजिंदर भाटिया का मानना है कि देश चाहे 1947 में आजाद हुआ था, मगर तब आम आदमी के हाथ कुछ नहीं था। 2005 में आरटीआई एक्ट के रूप में जनता के हाथ ऐसी ताकत लगी है, जो लोकतंत्र की असली पहचान बनी है।

    इसी कड़ी में उन्होंने एनेराइजिंग इंडिया नामक एक स्वयंसेवी संस्था भी गठित की, जो आरटीआई एक्ट की जागरूकता के साथ लोगों को कानूनी सहायता भी उपलब्ध करवाने में सहायता प्रदान करती है। डाकखाने में 20 हजार से ज्यादा की पेमेंट उनकी बिना मर्जी के एजेंट ने विद ड्रा करवा ली थी। इस मामले में भाटिया ने आरटीआई एक्ट का सहारा लिया। इसके बाद एपीजे कालेज, जिमखाना क्लब, नगर निगम, जेलों, किन्नरों के वेलफेयर, नेशनल सिक्योरिटी, आटो में बच्चों को ले जाने के मापदंडों के अलावा 1400 से ज्यादा आरटीआई एप्लीकेशन लगाई। इसी आरटीआई के तहत जहां इनकम टैक्स रिकवरी में कुछ फेरबदल किए गए, वहीं डाक विभाग में 12 लोगों को चार्जशीट भी करवाया गया। जेल में कैदियों की हालात को लेकर किए गए काम के चलते ही नई जेल का निर्माण हो सका। भाटिया ने सिविल अस्पताल में पब्लिक रिलेशन आफिसर लगवाने से लेकर पुडा में अपीलिंग अथारिटी लगवाने की भी कोशिश की।

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