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    केजरीवाल और सिद्धू के बीच पक रही खिचड़ी, 15 के बाद कर सकते हैं धमाका

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sun, 06 Nov 2016 09:50 PM (IST)

    नवजोत सिंह सिद्धू और अरविंद केजरीवाल के बीच फिर से राजनीतिक खिचड़ी पकने लगी है। दोनों नेता 15 नवंबर के बाद बड़ा राजनीतिक धमाका कर सकते हैं।

    चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। नवजोत सिंह सिद्धू की आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के बीच फिर से राजनीतिक खिचड़ी पकने लगी है आैर दोनों नेता 15 नवंबर के बाद पंजाब की राजनीति में बड़ा धमाका कर सकते हैं। वैसे तो आवाज-ए-पंजाब फ्रंट के साथ चल रही आम आदमी पार्टी की बात फिलहाल रुक गई है नलेकिन अंदरखाने सब कुछ तय होता लग रहा है।

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    केजरीवाल बनें पंजाब के सीएम तो सिद्धू डिप्टी सीएम बनने को तैयार

    सिद्धू ' आप' के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं और बताया जाता है कि उन्हें 'आप' सरकार बनने पर उपमुख्यमंत्री पद का आॅफर दिया गया है। लेकिन, सिद्धू चाहते हैं कि पंजाब में 'आप' की सरकार बनने पर अरविंद केजरीवाल ही पंजाब के मुख्यमंत्री बनें। इस स्थिति में सिद्धू डिप्टी सीएम बनने को राजी है। दूसरी ओर बताया जा रहा है कि सिद्धू व केजरीवाल 15 नवंबर के बाद तक बड़ा राजनीतिक धमाका कर सकते हैं।

    पढ़ें : नवजोत सिद्धू का कांग्रेस में हमेशा स्वागत, लेकिन सौदेबाजी नहीं होगी : भट्ठल

    पंजाब के आप नेताओं में किसी का भी कद सिद्धू के बराबर नहीं हैं। यही वजह है कि सिद्धू केजरीवाल से इस बारे में स्पष्ट वादा लेना चाहते हैं। केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने के लिए हां कह दें तो सिद्धू 'आप' के साथ गठबंधन कर सकते हैं। सूबे की सियासत में तीन महीनों से चर्चा का केंद्र बने सिद्धू कभी कांग्रेस तो कभी आप के पाले में खड़े दिखाई दे रहे हैं। सियासी बाजार में सिद्धू की कीमत बनाए रखने में ओलंपियन व विधायक परगट सिंह खासी भूमिका अदा कर रहे हैं।

    परगट सिंह ने ही धर्मवीर गांधी, सुच्चा सिंह छोटेपुर व लुधियाना के बैंस ब्रदर्स के साथ बैठकें कर सिद्धू की लीडरशिप में चौथा फ्रंट बनाने की कवायद की थी, लेकिन उनकी कोशिश सिरे नहीं चढ़ सकी। इसमें सबसे बड़ी समस्या धर्मवीर गांधी व छोटेपुर के एक मंच पर नहीं आने की है। दोनाें नेताओं के बीच पहले जो तल्खी रही है उस कारण उनका एक मंच पर आना असंभव सा है।

    पढ़ें : कैप्टन की मौजूदगी में 'आप' से जुड़े संगठन के नेता कांग्रेस में शामिल

    धर्मवीर गांधी के करीबियों का कहना है कि छोटेपुर जब आप के कन्वीनर थे तो गांधी को पार्टी से निलंबित करवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए धर्मवीर गांधी किसी हालत में छोटेपुर की सरदारी स्वीकार नहीं कर सकते और न ही छोटेपुर गांधी की सरदारी स्वीकार करेंगे। छोटेपुर ने भी सिद्धू के साथ हाथ मिलाने की कोशिश की थी। लेकिन, मौके की नजाकत को देखते हुए सिद्धू ने छोटेपुर का भाव नहीं दिया। इसी बीच बैंस ब्रदर्स ने सिद्धू को आवाज-ए-पंजाब के साथ खड़ा कर लिया।

    परगट का राजनीतिक करियर दांव पर

    अकाली दल से अलग होने के बाद परगट सिंह का भी सियासी करियर दांव पर लगा है। इसलिए जोड़तोड़ में परगट ने दिन रात एक कर दिया। परगट सिंह भी जानते हैं कि बिना किसी बड़े सियासी दल के समर्थन के उनके लिए चुनाव जीत पाना टेड़ी खीर है। यही वजह है कि 'आप' के साथ बातचीत के रास्ते बंद होने के बाद दोबारा परगट के प्रयासों से ही सिद्धू की फिर केजरीवाल से बातचीत शुरू हुई।

    बताया जाता है कि 'आवाज ए पंजाब' ने 30 सीटों पर आप के साथ गठबंधन करने की शर्त रखी थी। उसके एवज में 'आप' पांच से छह सीटें देने पर ही राजी थी। 'आप' ने सिद्धू को उपमुख्यमंत्री का पद भी देने का आॅफर दिया। इस बात पर दोनों में समझौते के आसार भी बन गए थे। परगट के करीबी बताते हैं कि पांच सीटों के साथ भी 'आप' से गठबंधन किया जा सकता था, लेकिन सवाल था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा।

    इस वजह से अड़े सिद्धू

    सिद्धू ने फिर चुप्पी साध ली है। 'आप' में सुखपाल सिंह खैहरा, कंवर संधू, एडवोकेट एचएस फूलका, गुरप्रीत सिंह वड़ैच व भगवंत मान सहित जितने भी चेहरे हैं, उनके नीचे काम करना सिद्धू को मंजूर नहीं है। सिद्धू ने सियासी सफर 2004 में शुरू किया और वह तीन बार लगातार सांसद चुने गए, जबकि इनमें से खैहरा विधायक रहे जबकि भगवंत मान 2014 में पहली सांसद चुने गए।

    एक साथ आ सकते हैं सिद्धू व केजरीवाल

    आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय कन्वीनर अरविंद केजरीवाल कुछ दिनों में बड़ा धमाका कर सकते हैं। सिद्धू के मामले को लेकर 15 नवंबर के बाद 'आप' बड़ा फैसला ले सकती है। चुनाव आचार संहिता लागू होने व टिकटों के वितरण का काम पूरा होने के बाद चुनाव में सिद्धू की एंट्री 'आप' करवा सकती है। उससे पहले कांग्रेस ने सिद्धू को अपने पाले में खड़ा कर लिया, तो 'आप' के हाथ से सिद्धू फिसल सकते हैं।