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मोहब्बत सी हो गई है चुनौती के नाम से

कभी साइट पर निर्देश देतीं, कभी दफ्तर में ड्राइंग्स समझातीं और कभी कुछ नया क्रिएट करने के लिए अपने टैलेंट का प्रयोग करतीं महिलाएं आर्किटेक्ट या डिजाइनर्स भी हो सकती हैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 11 Jun 2016 11:57 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jun 2016 12:24 PM (IST)
मोहब्बत सी हो गई है चुनौती के नाम से

देखने वाला था वह नजारा जब जानी- मानी महिला आर्किटेक्ट्स और इंटीरियर डिजाइनर्स के साथ देश भर से आईं युवा महिला आर्किटेक्ट्स और डिजाइनर्स एक छत के नीचे एकत्रित थीं। वुमन आर्किटेक्ट्स एंड डिजाइनर्स अवाड्र्स में यूं लग रहा था जैसे महिलाओं ने हर बाड़े को तोड़कर जीत हासिल की है। इनकी सालों की मेहनत, साइट व घर के बीच के बैलेंस और दमदार क्रिएटिविटी ने इन्हें इस मुश्किल प्रोफेशन में कामयाब बनाया है। महिलाओं का आर्किटेक्चर के फील्ड में आना चुनौती भरा है। फिर भी वे इस फील्ड में कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं।

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दिल नहीं, दिमाग चाहिए 'महिला इंटीरियर डिजाइनर्स और आर्किटेक्ट्स पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में काम करती हैं। साइट पर कामगार पुरुष होते हैं। क्लाइंट्स पुरुष होते हैं। निर्माण स्थल पर पचहत्तर प्रतिशत पुरुष ही होते हैं। इन्हें लगता है कि एक महिला इतना कठिन काम शायद नहीं कर पाएगी। वह साइट के लिए ठीक नहीं रहेगी। ऐसे में खुद को साबित करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।' जानी-मानी इंटीरियर डिजाइनर लिपिका सूद चुनौतियों से जूझना जानती हैं और दिमाग से काम करने की सलाह देती हैं। वह कहती हैं, 'अगर महिलाएं इस प्रोफेशन में आना चाहती हैं। एंटरप्रोन्योर बनना चाहती हैं तो उन्हें दिल से तो काम करना ही है, दिमाग से सोचना भी जरूरी है। बिजनेस को बिजनेस की तरह ट्रीट करें।'

अचंभे में आ जाते हैं लोग

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में न्यूयॉर्क की येन हा कहती हैं कि मुझे हर दिन किसी को बताना होता है कि मैं आर्किटेक्ट हूं कोई आम डेकोरेटर नहीं। साइट पर पहले-पहल तो लोग यही समझते हैं कि मैं कोई असिस्टेंट,

डेकोरेटर या इंटर्न हूं। कई सारी मीटिंग्स होने के बाद ही अपनी आर्किटेक्चरल समस्याओं के लिए प्रोजेक्ट टीम मेरी ओर देखती है। आर्किटेक्ट एच. जे. किम भी कहती हैं कि लोग समझते हैं कि हम बिजली का बल्ब तक नहीं बदल सकते। हम केवल घर की सजावट कर सकते हैं, लेकिन जब मैं उन्हें आर्किटेक्चरल सॉल्यूशंस देती हूं तो वे अचंभे में आ जाते हैं।

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कुछ भी नहीं है असंभव

'महिलाएं अगर कुछ भी अलग करना चाहेंगी तो उन्हें खुद के दम पर ही खड़ा होना होगा। मुझे अपनी जिंदगी में जो भी चुनौती महसूस हुई, उसे मैंने करके दिखाया। अगर कोई मुझे कह दे कि मैं ऐसा नहीं कर सकती तो मैं उसे जरूर करके दिखाऊंगी। कोई कह दे कि यह असंभव है तो यह चुनौती ही मेरे लिए प्रेरणा बन जाती है और उसे मैं संभव करके ही मानती हूं।' आर्किटेक्ट व इंटीरियर डिजाइनर कृपा जुबिन को लगता है कि चुनौतियां कहां नहीं हैं, खुद के दम पर खड़ा होना होता है महिलाओं को।

वह कहती हैं, 'आर्किटेक्ट होने के लिए क्वालीफाइड और तकनीकी रूप से मजबूत होना जरूरी है।Ó छोटी शुरुआत, बड़ी कवायद एक छोटी सी गैराज, जिसमें कहीं से भी हवा आने का रास्ता नहीं। पारा 44 डिग्री के पार, केवल एक टेबल फैन और आर्किटेक्ट सोनाली भगवती डूबी थीं अपनी प्रोफेशनल लाइफ का पहला प्रोजेक्ट बनाने

में। इस बारे में वह कहती हैं, 'हम गीले रूमाल टेबल फैन पर लगाते और ठंडी हवा लेने की कोशिश करते, लेकिन हमें कभी खराब नहीं लगा। शुरुआत में मैंने और मेरी दो दोस्तों ने मिलकर मध्य प्रदेश में एक प्रोजेक्ट किया था। बाद में दिल्ली में एक बरसाती में अपना ऑफिस बनाया और अपने काम को आगे बढ़ाया।' छोटी सी शुरुआत के बाद अब सोनाली की गिनती देश की लीडिंग आर्किटेक्ट्स में की जाती है।

हम प्रोफेशनल हैं

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सोनाली भगवती, आर्किटेक्ट

मैं आर्किटेक्ट हूं। मैं जेंडर न्यूट्रल हूं। मैं किससे बात कर रही हूं? कहां पर हूं? किस समय पर हूं? मेरे लिए कभी मैटर नहीं रहा। हम प्रोफेशनल हैं और हमें प्रोफेशनल के तरीके से ही काम करना होगा। इंटीरियर आर्किटेक्ट और इंटीरियर डेकोरेटर में अंतर है। डेकोरेटर सजाने का काम करते हैं जबकि इंटीरियर आर्किटेक्ट स्पेस, वॉल्यूम और रिलेशनशिप क्रिएट करते हैं। हम कॉरपोरेट डिजाइन करते हैं तो कम से कम 60 ड्रॉइंग्स बनाते हैं। यह प्रोफेशनल जॉब है और इसमें हम महिलाएं सफल हैं। किसी भी काम को मुश्किल कह देना दिमाग की सोच है। हर फील्ड

में मुश्किलें हैं। अगर हम इन्हें मुश्किल कहेंगे तो ये मुश्किल ही लगेंगी और नहीं कहेंगे तो नहीं।

गंभीर प्रोफेशन है इंटीरियर डिजाइनिंग

लिपिका सूद, एंटरप्रेन्योर

व्यावसायिक परियोजनाओं को डिजाइन करने के लिए जहां तकनीकी जानकारी की जरूरत होती है वहीं अनुभव भी मायने रखता है। इनके लिए अलग एजेंसीज के साथ मिलकर काम करना पड़ता है, उनकी ड्रॉइंग्स को पढऩा पड़ता है। अगर आप इन्हें नहीं जान पाएंगे तो आप अपनी इंटीरियर डिजाइनिंग नहीं कर पाएंगे। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि दो सोफे लगाकर एक पेंटिंग टांग दी और पर्दे लगा दिए तो इंटीरियर डिजाइनिंग हो गई। जबकि इंटीरियर डिजाइनिंग डॉक्टर, इंजीनियर जैसा ही गंभीर प्रोफेशन है। अनुभव, समर्पण, फोकस और काम के प्रति ईमानदारी का रुख ही आपको सफलता की ओर ले जाता है।

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काम से करनी होगी मोहब्बत

कृपा जुबिन, आर्किटेक्ट

डिजाइन जिंदगी को बदल सकती है। यह जिंदगी को बहुत अंदर तक छू जाती है। मेरे लिए डिजाइन स्प्रिचुअल

है। आर्किटेक्ट होना काफी चैलेंजिंग है। अगर किसी के पास पैशन है तो उसके लिए कोई मुश्किल नहीं है। ऐसे में आप प्रोफेशन को एंजॉय करेंगे। मुझे तो लगता है जैसे मैं रोज हॉलीडे पर हूं। हमारा काम काफी क्रिएटिव है।

ऑफिस आती हूं रोज नया बनाती हूं तो ऐसा लगता ही नहीं है कि इतना काम कर रही हूं। अगर आपको इस प्रोफेशन से मोहब्बत नहीं तो करना मुश्किल होगा। क्लाइंट्स विश्वास पर पैसा लगाते हैं और हमें उनके काम के साथ न्याय करना है। हम महिला होने या फिर वर्क लाइफ बैलेंस की बातें नहीं कर सकते।

यशा माथुर


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