खुद को भाग्यशाली मानता हूं : आशुतोष राणा
नकारात्मक किरदारों को भी सकारात्मक अंदाज में दर्शकों के सामने लाने वाले आशुतोष राणा फिल्म 'जीना इसी का नाम है' में निभाए अपने किरदार और फिल्मी कॅरियर को लेकर लेकर बयां कर रहे हैं दिलचस्प बातें...
आशुतोष राणा ने अपने अभिनय से हिंदी सिनेमा में खास मुकाम बनाया। उन्होंने अपने कॅरियर में च्यादातर नकारात्मक किरदार निभाए। 'जख्म', 'दुश्मन' और 'संघर्ष' जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया। सकारात्मक किरदारों को भी बेहद शिद्दत से उन्होंने निभाया। अपनी अगली फिल्म 'जीना इसी का नाम है' में वह एक बार फिर खलनायक की भूमिका में दिखेंगे।
जीवन का द्वंद है फिल्म
आशुतोष बताते हैं, 'फिल्म का शीर्षक जिंदगी के उस हिस्से से है, जहां हम प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं। रास्ते के रोड़ों को हटाते हुए अपना मार्ग सुगम बना लेते हैं। इन परिस्थितियों से जब आप खुद को उबार लेते हैं तब लोग आपकी जिंदगी के बारे में कहते हैं जीना इसी का नाम है। फिल्म भी जीवन के द्वंद को दर्शाती है।
जुडऩे की वजह
मेरे फिल्म से जुडऩे की वजह उसकी उम्दा कहानी रही। सभी किरदार बेहद रोचक हैं। मेरे किरदार के पक्ष में टाइगर से लड़ाई है। मुझे लगता है हर कलाकार उसे करना चाहता है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में टाइगर फाइट महज चार अभिनेताओं के हिस्से आई है। वे अभिनेता हैं धर्मेद्र, अमिताभ बच्चन, अजय देवगन और अब मैं। यह मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है। लात-मुक्के वाली लड़ाई तो पर्दे पर आम है। मेरा किरदार कुंवर विक्रम प्रताप सिंह का है जो एक रियासत का राजा है। जबकि शेर जंगल का राजा होता है। दो राजाओं की भिड़ंत इसकी यूएसपी है। बहरहाल, यह राजा अय्याश नहीं है। वह प्रतिपल अपनी मौत का सामना करने को तैयार रहता है। उसे समझना आसान नहीं है। वह भयरहित शख्स है। ऐसा किरदार अभी तक मैंने निभाया नहीं है।
एनएसडी में की थी एक्सरसाइज
मेरा मानना है कि अभिनय की आधी पढ़ाई जानवरों को आब्जर्व करने में हो जाती है। शेर को आब्जर्व करने के लिए वैसा ही जिगर रखना पड़ता है। हालांकि उससे ज्यादा अहिंसक जानवर नहीं होता। वजह यह है कि भूख लगने पर ही वह आतंक मचाते हैं। अन्यथा वह शांत रहते हैं। यहां तक कि शेर अपने मुंह से मक्खी हटाने का प्रयास भी नहीं करता। वह बेहद सहिष्णु है। यही वजह है कि वह जंगल का राजा है। एक बात और शेर भूख लगने पर फोकस्ड हो जाते हैं। शिकार करते समय उनके कदमों की आहट नहीं आती है। शिकार से पहले उनकी बॉडी लैंग्वेज भी बदल जाती है। टाइगर फाइट का सीक्वेंस करते समय नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की यादें ताजा हो गईं। दरअसल, हमें वहां पर एनिमल एक्सरसाइज कराई जाती थी। मुझे याद है कि मैंने अपनी पहली एनिमल एक्सरसाइज शेर पर की थी। उसके तहत हमें खुद को बिना मेकअप एक जानवर बनाना पड़ता है। हमें आतंरिक रूप से उसकी फिलासफी पर काम करना होता था। हमारे समक्ष चुनौती होती थी कि बिना बताए लोग जानवर को समझ जाएं। उसमें हमारा देखना, उठना-बैठना सब शामिल होता था। तब सोचा नहीं था कि वह एक्सरसाइज 'जीना इसी का नाम है' में फलित होगी।
खुद को मानता हूं खुशकिस्मत
मुझे अपने शुरुआती कॅरियर में फिल्म 'संघर्ष' और 'दुश्मन' में विलक्षण किरदार निभाने का मौका मिला। वे लोगों के दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ गए। लिहाजा मैं खुद को भाग्यशाली अभिनेता मानता हूं। यहां कई लोग इंडस्ट्री में दो दशक गुजार देते हैं। उनका कोई काम याद नहीं रहता। जबकि मेरे कुछ किरदार लोगों की स्मृतियों में बस गए हैं। ऐसी स्थिति होती है तो आगे चलकर पूर्व में निभाए किरदारों से अलग करने का विशेष ध्यान रखना होता है। वैसे अलग और बड़े किरदारों के लिए धैर्यपूर्वक प्रतिक्षा भी करनी पड़ती है। उस प्रतिक्षा के लिए खुद में साहस चाहिए होता है। जीविकोपार्जन के लिए धन की आवश्यकता होती है। आप उसे कहां से लाएंगे। अगर आपकी आवश्यकताएं सीमित हैं तो आपकी प्रतिक्षा फलित होती है। यह मेरे साथ घटित होता रहता है।
किरदार को निगेटिव नहीं माना
बचपन में आशुतोष रामलीला में रावण की ही भूमिका निभाते थे। वह कहते हैं, 'अभिनय करते हुए लगा था कि जीवन ब्लैक एंड व्हाइट में नहीं चलता है। उसमें कहीं न कहीं ग्रे शेड होता है। हर व्यक्ति में अर्थ और व्यर्थ होता है। नकारात्मक किरदार नट की कला की भांति होते हैं। नट रस्सी पर चलता है। रस्सी पर संतुलन बिगडऩे पर आप गिर सकते हैं। ठीक उसी प्रकार कलाकार को संतुलन कायम रखने के लिए सतर्क, सजग और जागरूक रहना पड़ता है। मुझे हमेशा से ग्रे शेड किरदार लुभाते थे। कह सकते हैं कि मैंने नकारात्मक किरदारों को सकारात्मक अंदाज में जिया। निगेटिव रोल को मैंने कभी निगेटिव मानकर नहीं किया। मैंने हमेशा यह माना कि वह खुद में पॉजिटिव शख्स है। जैसे ही हमें वह निगेटिव लगता है हम अपने नकारात्मक पक्ष को नष्ट कर देते हैं। मगर हां, किसी व्यक्ति विशेष के लिए नकारात्मक हो सकते हैं। यह अलग बात है कि उनके परिणाम नकारात्मक होते हैं।
प्रस्तुति- स्मिता श्रीवास्तव
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