मां की सुनती तो रेसलर नहीं होती कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक
साक्षी मलिक की रियो में कामयाबी के बाद देश को फक्र है। लेकिन उनकी मां उन्हें पहलवान की जगह एथलीट बनाना चाहती थीं।
नई दिल्ली। 23 वर्षीय साक्षी हरियाणा के रोहतक जिले के मोखरा गांव की रहने वाली हैं। साक्षी ने ओलंपिक के 12वें दिन फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य पदक जीता है। साक्षी ने 12 साल की उम्र में कुश्ती में दिलचस्पी जाहिर की थी। लेकिन उनकी मां ने कहा कि वो कुश्ती के बजाय एथलीट बनने पर ध्यान दे। उनका मानना था कि कुश्ती पुरुषों के प्रभुत्व वाला खेल है। महिला एवं बाल विकास विभाग में सुपरवाइजर मां सुदेश बताती हैं कि गर्मियों की छुटि्टयों में वो चाहती थीं कि साक्षी कुछ फिजिकल एक्टिविटी करे।
वह बताती हैं कि साक्षी को लेकर छोटू राम स्टेडियम गईं, वहां साक्षी से कहा कि वह एथलीट बनें। मगर, मुझे चौंकाते हुए साक्षी ने कुश्ती को चुना। हमारे परिवार में कोई भी लड़की कुश्ती में नहीं गई थी, इसलिए मैंने उसकी बात को नजरअंदाज किया।
मैंने उसे समझाने की कोशिश की थी कि कठिन खेल होने के कारण इससे उसकी पढ़ाई का नुकसान होगा। मगर, साक्षी तो कुश्ती करने का फैसला कर चुकी थी। आखिर में मुझे उसकी इच्छा के आगे झुकना पड़ा। मैंने उसे वही करने देने का फैसला किया, जो वह करना चाहती थी और आज हम सब उस गर्व के पल के गवाह हैं, जो उसने मेडल जीत कर हमें दिया है।
सुदेश बताती हैं कि साक्षी ने पढ़ाई और खेल के बीच सामंजस्य बनाए रखा। उसने फिजिकल एजुकेशन में मास्टर्स किया है। उसने बोर्ड परीक्षाओं में 70 फीसद अंक हासिल किए और ग्रेजुएशन व मास्टर्स फर्स्ट डिवीजन में पास की। उन्होंने बताया कि बुधवार की रात को टेंशन के कारण हम सो नहीं पा रहे थे।
पूरा परिवार उसकी कुश्ती देखने के लिए जग रहा था। जब उसे कांस्य पदक मिला, तो हमें चैन आया। उसके लौटने पर पूरे रोहतक को सजाकर साक्षी का स्वागत करूंगी। मैं उसके यहां आने का इंतजार कर रही हूं।
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