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पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य सहायता पर संकट के बादल

पाकिस्तान को केरी-लूगर-बर्मन विधेयक के तहत मिलने वाली वित्तीय सहायता पर संकट के बादल घिर गए हैं। क्योंकि इस बात की संभावना कम है कि ओबामा प्रशासन इसका नवीनीकरण करेगा। विधेयक की समयावधि आगामी अक्टूबर में समाप्त हो रही है। हालांकि असैन्य सहायता के जारी रहने की उम्मीद है।

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 04:42 PM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 04:52 PM (IST)
पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य सहायता पर संकट के बादल

वाशिंगटन। पाकिस्तान को केरी-लूगर-बर्मन विधेयक के तहत मिलने वाली वित्तीय सहायता पर संकट के बादल घिर गए हैं। क्योंकि इस बात की संभावना कम है कि ओबामा प्रशासन इसका नवीनीकरण करेगा। विधेयक की समयावधि आगामी अक्टूबर में समाप्त हो रही है। हालांकि असैन्य सहायता के जारी रहने की उम्मीद है।

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पीटीआइ द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कांग्रेस से पारित विधेयक पर अक्टूबर 2009 में हस्ताक्षर किए थे। जिसके बाद यह कानून बन गया। इसे 'इंहेन्स्ट पार्टनरशिप विद पाकिस्तान एक्ट' के तौर पर भी जाना जाता है। इसकी अवधि 2009-2014 तक है।

इस दौरान पाकिस्तान को सालाना 150 करोड़ डॉलर यानी पांच साल की अवधि में 750 करोड़ डॉलर [करीब 45847 करोड़ रुपये] मिलेंगे। वास्तव में इस अधिनियम के तहत पाकिस्तान को अब तक नागरिक सहायता के रूप में 410 करोड़ डॉलर [करीब 25 हजार करोड़ रुपये] की सहायता उपलब्ध करा दी गई है।

हालांकि विधेयक के भविष्य को लेकर अमेरिकी सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर अभी तक कुछ भी नहीं कहा गया है। जबकि इस साल अक्टूबर में इसकी समय सीमा पूरी हो रही है। इन सबसे इसके नवीनीकरण नहीं किए जाने के संकेत मिल रहे हैं। पांच साल पहले जब यह विधेयक पारित हुआ तो उस समय इसे ऐतिहासिक और पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी सहयोग की प्रतिबद्धताओं का प्रतिबिंब बताया गया था। तर्क दिया गया था कि इससे दोनों देशों के बीच दीर्घकालीन सहयोग के लिए मंच तैयार होगा। दरअसल इस बदलाव के पीछे कई कारण हो सकते हैं। इनमें से एक पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार बार बार कहती आ रही है कि उनका देश व्यापार चाहता है न कि सहायता जो एक वजह हो सकती है। इसके अलावा अमेरिकी बजट पर बढ़ता दबाव भी है।

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