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इराक में आइएस पर अमेरिकी हमले शुरू

सीरिया से निकलकर इराक के कई शहरों में कब्जा करने के बाद खुद को इस्लामिक स्टेट (आइएस) में तब्दील करने वाले आतंकी संगठन आइएसआइएस के ठिकानों पर अमेरिकी सेना ने हवाई हमले शुरू कर दिए हैं। 2011 में इराक से लौटने के बाद अमेरिका का इस देश में पहला सैन्य हस्तक्षेप है।

By Edited By: Published: Fri, 08 Aug 2014 07:31 PM (IST)Updated: Sat, 09 Aug 2014 07:25 AM (IST)

वाशिंगटन। सीरिया से निकलकर इराक के कई शहरों में कब्जा करने के बाद खुद को इस्लामिक स्टेट (आइएस) में तब्दील करने वाले आतंकी संगठन आइएसआइएस के ठिकानों पर अमेरिकी सेना ने हवाई हमले शुरू कर दिए हैं। 2011 में इराक से लौटने के बाद अमेरिका का इस देश में पहला सैन्य हस्तक्षेप है।

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पेंटागन प्रवक्ता रियर एडमिरल जॉन कर्बी ने हमलों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इराक के स्वायत्तशासी क्षेत्र कुर्दिस्तान की राजधानी अरबिल की रक्षा कर रही कुर्दिश सेना पर हमले के बाद अमेरिकी सेना के दो एफए-18 विमानों ने आइएस के तोपखाने पर हमला किया। चरमपंथी सुन्नी मुसलमानों का संगठन आइएस इस तोपखाने का इस्तेमाल अरबिल की सुरक्षा कर रही कुर्द फौजों पर करने वाला था। अमेरिकी विमानों ने ढाई-ढाई सौ किलो के बम बरसाए। तत्काल यह पता नहीं चल सका कि इस हमले से आतंकियों को कितना नुकसान हुआ है? अमेरिकी विमानों ने सिंजर पर्वत पर फंसे लोगों के लिए पानी और भोजन के पैकेट भी गिराए।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी सेना को इन हमलों के लिए यह कहते हुए अनुमति प्रदान की कि पश्चिमोत्तर इराक में एक पर्वत चोटी पर फंसे हजारों धार्मिक अल्पसंख्यकों को संभावित नरसंहार से बचाने के लिए आइएस के खिलाफ सैन्य कार्रवाई जरूरी हो गई है। ओबामा ने गुरुवार देर रात प्रसारित संबोधन में कहा कि जब अमेरिका के पास इराकी अल्पसंख्यकों के नरसंहार को रोकने की क्षमता है तो फिर वह अपनी आंखें मूंदकर नहीं रह सकता। उन्होंने बिना भोजन और पानी के सिंजर पर्वत पर फंसे हुए हजारों इराकी नागरिकों की रक्षा के लिए मानवीय प्रयास करने को भी कहा था। अपने नौ मिनट के संबोधन में ओबामा ने अपने फैसले की वजहों को स्पष्ट किया, लेकिन यह भी दोहराया कि कोई अमेरिकी सैनिक वहां जमीन पर नहीं उतरेगा।

आइएस के आतंकी अरबिल से महज आधे घंटे की दूरी पर जा धमके हैं। यह क्षेत्र अमेरिकी तेल कंपनियों का भी गढ़ है और अमेरिका के सैकड़ों सैनिक भी यहां तैनात हैं। आइएस के लड़ाकों से बचकर भागने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय याजिदी के हजारों परिवार सिंजर पर्वत और आसपास बगैर भोजन और पानी के फंसे हुए हैं। अलकायदा से अलग हुए आइएस के आतंकियों द्वारा पहले ईसाई बहुल कराकोश और फिर याजिदी समुदाय के सबसे बड़े शहर सिंजर पर कब्जा कर लिए जाने के बाद इन दोनों शहरों से हजारों लोगों की भीड़ भाग निकली। इनसे कहा गया था कि या तो अपना धर्म छोड़ें या जजिया कर चुकाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें। आइएस आतंकी बंधक बनाए लोगों के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव कर रहे हैं। कितने ही बंधकों के सिर कलम कर दिए गए हैं या उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया है। दहशत फैलाने के लिए आतंकियों ने इनके वीडियो भी जारी किए हैं। इस बीच बगदाद में शीर्ष शिया धर्मगुरु अयातुल्ला अली अल-सिस्तानी ने प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी को पद छोड़ने को कहा है। उनकायह आदेश मलिकी की राजनीति से विदाई करा सकता है। मलिकी सरकार और उनकी सेना आइएस का मुकाबला करने में अक्षम साबित हो रही है। आइएस पहले बगदाद की ओर बढ़ रहा था, लेकिन कुछ दिनों से उसने कुर्द इलाकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है।

पचास हजार की जान जोखिम में:

पारसियों के करीब माने जाने वाले याजिदी समुदाय के करीब 50 हजार लोग सिंजर पर्वत पर फंसे हुए हैं। यह कुर्दो के इलाके में इसी नाम के शहर के निकट है। याजिदियों के साथ तमाम ईसाई भी हैं। ईसाई कराकोश शहर से जान बचाकर भागे हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी के अनुसार सिंजर पर्वत पर फंसे लोग बुरी हालत में हैं। पानी के अभाव में वे डायरिया के शिकार हो रहे हैं। वे कहीं भाग भी नहीं सकते, क्योंकि आइएस के हथियारबंद आतंकी उनकी घेरेबंदी किए हुए हैं।

'हफ्ते की शुरुआत में एक इराकी ने रोते हुए विश्व समुदाय से कहा था कि उसे बचाने के लिए कोई नहीं आ रहा.. ऐसा नहीं है। अमेरिका उन्हें बचाने आगे आया है।'

- बराक ओबामा, राष्ट्रपति, अमेरिका

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