आइएस के चंगुल से छूटे पत्रकार ने बयां किया अपना दर्द
आतंकी संगठन आइएसआइएस बर्बरता और क्रूरतापूर्ण कारनामें रोज सामने आ रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी सामने आई है जिसे सुनकर आप भी कांप उठेंगे। आइएसआइएस की चुंगल से छूटे तुर्की के फोटोजर्नलिस्ट बुन्यामिन अयगुन ने अपने ऊपर आतंकवादियों द्वारा किए गए जुल्म की कहानी सुनाई।
इस्तांबुल। आतंकी संगठन आइएसआइएस बर्बरता और क्रूरतापूर्ण कारनामें रोज सामने आ रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी सामने आई है जिसे सुनकर आप भी कांप उठेंगे। आइएसआइएस की चुंगल से छूटे तुर्की के फोटोजर्नलिस्ट बुन्यामिन अयगुन ने अपने ऊपर आतंकवादियों द्वारा किए गए जुल्म की कहानी सुनाई।
अयगुन ने बताया कि कैसे आइएस के चंगुल में फंसे, कैसे आतंकियों ने उनको रखा और कैसे वो रिहा हुए। आइएस की बर्बरता का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि 40 दिनों तक वो आतंकियों के कब्जे में रहे और ये 40 दिन उनको 40 वर्षों के समान लगे।
उन्होंने बताया कि उन 40 दिनों तक मैं रोज मर-मर कर जीता था। आतंकी रोज मुझसे कहते थे प्रार्थना कर लो और जिन्हें याद करना है याद कर लो, कल तुम्हारा आखिरी दिन होगा और तुम्हें हम तलवार से काटकर मौत के घाट उतार देंगे।
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आइएसआइएस के चंगुल में 40 दिन बिताने वाले अयगुन अपने अनुभवों पर '40 डेज एट द हैंड्स ऑफ आइएस' नाम की एक किताब लिख रहे हैं। किताब में उन्होंने लिखा है कि रोज मेरे सामने मेरा पूरा जीवन होता था और हर दिन मुझे मेरी जिंदगी का अाखिरी दिन लगता था। मैं जब भी आंखें बंद करता था तो मेरे सामने वो नजारा दिखाता था कि कैसे ये आतंकी मेरा सिर काट देंगे।
आपको बता दें कि अयगुन 'मिलियत डेली' के फोटो जर्नलिस्ट हैं और हमेशा अपने काम को लेकर चर्चा में रहते हैं। अवार्ड विजेता अयगुन को नवंबर 2013 में आइएस के आतंकियों ने अगवा किया था। 40 दिनों तक आतंकियों के कब्जे में रहने के बाद जब अयगुन वापस लौटे तो कई दिनों तक 'मिलियत डेली' में उनके बहादूरी के किस्से छापे गए थे। अयगुन एक बार फिर अपनी किताब को लेकर चर्चा में हैं और उनकी यह किताब जल्द ही बाजार में होगी।
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अपने अनुभवों को बताते हुए उन्होंने किताब में लिखा है कि मुझे तुर्की होने का फायदा मिला। तुर्की एजेंसियां लगातार मुझे बचाने का प्रयत्न कर रही थीं और अंत में मुझे बचा लिया गया। उन्होंने बताया कि जहां पर मुझे रखा गया था वहां विद्रोही गुट ने हमला कर दिया, जिस कारण आतंकियो को वहां से भागना पड़ा। जिससे मुझे छुड़ाने में तुकी एजेंसियों को मदद मिली।
किताब में उन्होंने इस बारे में ज्यादा विस्तार से नहीं लिखा है कि कैसे आतंकवादियों ने उन्हें प्रताड़ित किया गया, लेकिन उन्होंने यहा बताया है कि आतंकवादी ज्यादातर उनकी आंखों पर पट्टी और दोनों पैरों को रस्सी से बांधकर रखते थे।
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किताब में अयगुन ने बताया है कि 25 नवंबर 2013 को जब वो साल्किन टाउन में जिहादियों के एक समूह का इंटरव्यू लेने जा रहे थे उस दौरान आइएस आतंकियों ने अगवा किया था। आतंकियों के कब्जे में जाने के बाद मै इतना अकेला और शांत हो गया था कि मेरी जिंदा रहने की इच्छा खत्म हो गई थी और मुझे लग रहा था कि अब मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा।
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