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    कश्मीर विवाद में शायद ही खुद को शामिल करें ट्रंप

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Sat, 03 Dec 2016 05:59 AM (IST)

    ट्रंप पहले ही भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने के संकेत दे चुके हैं। एक शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञ ने यह राय व्यक्त की है।

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    वाशिंगटन, प्रेट्र। कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शायद ही भारत और पाकिस्तान के बीच आएं। इसकी वजह यह है कि ट्रंप पहले ही भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने के संकेत दे चुके हैं। एक शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञ ने यह राय व्यक्त की है।

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    'द डेली सिग्नल' के ओपेड में प्रकाशित लेख में 'द हेरीटेज फाउंडेशन' की लीजा कर्टिस का कहना है, 'यह बेहद संशयपूर्ण है कि ट्रंप प्रशासन भारत-पाकिस्तान के बीच संवेदनशील विवाद में खुद को शामिल करने पर विचार करेगा। खासतौर पर तब जबकि ट्रंप भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने संबंधी अपनी प्राथमिकता के बारे में संकेत दे चुके हैं।

    परमाणु हथियार युक्त दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच तनाव कम करने में अगर अमेरिका कोई सार्थक भूमिका निभा सकता है तो यह कि वह पाकिस्तान पर इस बात का दबाव डाले कि वह अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूम रहे भारत विरोधी आतंकवादियों पर कार्रवाई करे।' अपने लेख में कर्टिस ने कहा है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ ट्रंप की फोन पर हुई बातचीत को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। इस संबंध में पाकिस्तान ने अपने बयान में कहा है कि फोन पर बातचीत में ट्रंप ने सभी लंबित मुद्दों के समाधान में पाकिस्तान की मदद के लिए 'कोई भी भूमिका' अदा करने का प्रस्ताव दिया है।

    पाकिस्तान का दावा है कि उनका संदर्भ कश्मीर मामले से था। जबकि, कर्टिस का कहना है कि इस तरह की टिप्पणियों को सिर्फ दोस्ताना परिहास के तौर पर ही देखा जाना चाहिए क्योंकि किसी भी विदेशी नेता के साथ ऐसी ही टिप्पणी की जाती है। कर्टिस लिखती हैं, 'यह बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं है कि गर्मजोशी भरी इस बातचीत के जरिये पाकिस्तानी नेता कश्मीर में संघर्ष का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का अपना एजेंडा ही आगे बढ़ाएंगे।'

    वह लिखती हैं कि अमेरिकी अधिकारियों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि वह मध्यस्थता के जाल में न फंसे और न ही इस भ्रम रहे कि सिर्फ अमेरिका ही इस 70 साल पुराने विवाद को सुलझा सकता है। भारतीय सैन्य शिविरों पर हमलों का जिक्र करते हुए कर्टिस कहती हैं, उड़ी हमले से साफ है कि कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह इसे गरमाए रखना चाहता है खासकर ऐसे समय पर जबकि क्षेत्र में नागरिक प्रदर्शन भी हो रहे हों। ऐसे में अमेरिका को यह दिखाना होगा कि पाकिस्तान की ऐसी हरकतें बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हैं और उसे इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

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