ब्रिटेन में सिख दंपती को श्वेत बच्चा गोद देने से इन्कार
ब्रिटेन में पैदा हुए संदीप और रीना मांदर तमाम कोशिशों के बावजूद माता-पिता नहीं बन पा रहे हैं।
लंदन, प्रेट्र। ब्रिटेन में धर्म और नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं करने के दावे में दरारें पड़ने लगी हैं। भारतीय मूल के ब्रिटिश सिख दंपती को श्वेत बच्चा गोद देने से रोकने के मामले ने इस धारणा को मजबूत किया है। यह मामला प्रधानमंत्री टेरीजा मे के संसदीय क्षेत्र मैडनहेड (बर्कशायर) का है। उन्होंने खुद इस पर संज्ञान भी लिया है।
ब्रिटेन में पैदा हुए संदीप और रीना मांदर तमाम कोशिशों के बावजूद माता-पिता नहीं बन पा रहे हैं। दंपती ने आइवीएफ (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) तकनीक का भी सहारा लिया, लेकिन संतान सुख नहीं मिल सका। ऐसे में दोनों ने बच्चा गोद लेने का फैसला किया। 'द टाइम्स' समाचारपत्र के अनुसार, बच्चा गोद देने वाली एजेंसी ने ब्रिटिश या यूरोपीय अभिभावकों को श्वेत बच्चा गोद देने में प्राथमिकता देने का हवाला देते हुए उन्हें आवेदन तक न करने की सलाह दे डाली।
एडॉप्शन एजेंसी बच्चों को गोद देने के मामले में नस्ल को प्राथमिकता दे सकती है, लेकिन सरकार का कहना है कि बच्चे की नस्ल इसमें बाधक नहीं होनी चाहिए। दंपती ने एडॉप्ट बर्कशायर (गोद देने वाली एजेंसी) को बताया कि उन्हें किसी भी नस्ल के बच्चे को गोद लेने में समस्या नहीं है, लेकिन एजेंसी ने उनकी दलील इस आधार पर खारिज कर दी कि फिलहाल उसके पास श्वेत बच्चा ही उपलब्ध है। संदीप और रीना ने आरोप लगाया कि एडॉप्ट बर्कशायर ने उन्हें भारत से बच्चा गोद लेने की सलाह दी है।
कोर्ट जाने की तैयारी
एडॉप्ट बर्कशायर के रवैये से नाखुश संदीप और रीना अदालत जाएंगे। दंपती ने स्लॉ काउंटी कोर्ट में अर्जी दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लॉ फर्म मैकलिस्टर ओलीवेरियस उनकी पैरवी करेगी। इक्वलिटी एंड राइट्स कमीशन नामक मानवाधिकार संस्था ने भी संदीप और रीना का समर्थन किया है। इस पूरे विवाद पर एडॉप्ट बर्कशायर ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। संदीप ने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर उन्हें गोद लेने के लिए आवेदन भी नहीं करने दिया जाएगा। उनका मामला स्थानीय लोकपाल के पास भी लंबित है।
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