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    ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से अलग होने की वजह कहीं मुसलमान तो नहीं ?

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Thu, 23 Jun 2016 01:39 PM (IST)

    यूरोपीय यूनियन से अलग होने के लिए ब्रिटेन में जनमत संग्रह हो रहा है। कहीं मुसलमानों का डर तो जनमत संग्रह के पीछे वजह नहीं है।

    लंदन। यूरोपीय यूनियन से अलग होने के मामले में ऐतिहासिक जनमत संग्रह शुरू हो चुका है। जनता के फैसले के लिए कल तक का इंतजार करना होगा। लेकिन एक बड़ा सवाल है कि यूरोपीय यूनियन से अलग होने के लिए ब्रिटेन जमनत संग्रह क्यों करा रहा है। जानकारों का कहना है कि मुस्लिम प्रवासियों की बढ़ती तादाद से ब्रिटेन चिंतित है। यूरोपीय संघ से अलग होने की मुहिम चलाने वाले नेताओं का मानना है कि ईयू की प्रवासियों के संबंध में उदार नीति की वजह से ब्रिटेन को मुस्लिम शरणार्थियों का सामना करना पड़ रहा है। जिसकी वजह से न केवल ब्रिटेन के संसाधनों पर असर हो रहा है। बल्कि आतंकवाद के बढ़ते खतरे का भी सामना करना पड़ रहा है।

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    ईयू से अलग होने की मुहिम चलाने वाले नेताओं का ये भी तर्क है कि जनमत संग्रह के नतीजे उनके पक्ष में आएंगे। इसके अलावा मिडिल ईस्ट से आने वाली मुस्लिम शरणार्थियों की बड़ी तादाद पर रोक लगाने में मदद भी मिलेगी। जानकारों का कहना है कि जनमत संग्रह के पीछे यही मूल आधार भी है। यूरोपीय यूनियन की कमान अब जिन हाथों में आने वाली है। वो भी इस जनमत संग्रह के समर्थन में हैं। ईयू अध्यक्ष का कार्यकाल हर 6 महीने में बदलता रहता है। अगले हफ्ते नीदरलैंड्स की जगह स्लोवाकिया को कमान मिलने वाली है।

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    स्लोवाकिया के पीएम रॉबर्ट फित्सो मुस्लिम प्रवासियों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं। फित्सो ने कहा था कि स्लोवाकिया में इस्लाम के लिए जगह नहीं है। मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या से उनके देश की तस्वीर बदल जाएगी। लेकिन वे ऐसा नहीं होने देंगे। पिछले साल भी फित्सो ने कहा था कि शरणार्थियों की वजह से यूरोप की जनसंख्या में बदलाव आ रहा है। उन्होंने यहां तक कहा था कि यूरोप की धरती पर हर तरफ मस्जिदें नजर आएंगी।

    जर्मन चांसलर एंजेल मर्केल ने इस तरह के बयान की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि मानवीय आधार पर हमें इस मामले में सोचने की जरूरत है। जर्मनी में अब तक 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी पनाह ले चुके हैं। 28 देशों वाले यूरोपीय यूनियन में कोई भी देश ऐसा नहीं है। जहां मुस्लिमों की तादाद ज्यादा हो।यूरोप में तुर्की मुस्लिम बहुल देश है। लेकिन तुर्की को यूरोपीय यूनियन में शामिल किए जाने पर मतभेद रहा है।

    यूरोप के लगभग सभी देश तुर्की को शामिल करने का विरोध करते रहे हैं। ब्रिटिश पीएम कैमरन ने यहां तक कहां था कि ये 2016 है तुर्की 3000 में भी ईयू में शामिल नहीं हो पाएगा। इस बयान को लेकर ब्रिटेन में अभियान चलाया गया। हालांकि कैमरन ने इस मामले में सफाई दी थी।

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