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    नेहा ने पेश की मिसाल, पढि़ए हौसले और हुनर की इस दास्तान को..

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    Updated: Tue, 08 Apr 2014 05:22 PM (IST)

    'दीदी मैं भी खेलूंगी। मुझे भी आप जैसा बनना है। पर, मेरे पास न तो स्टिक है और न ही जूते। इन्हें खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं। मम्मी दिन-रात मेहनत मजदूरी करके हम तीनों बहनों को पाल रही है। मैं उनका बोझ कम करना चाहती हूं। प्लीज मुझे भी हॉकी खेलना सिखाइए।' दस साल की बच्ची की यह बातें

    राजीव शर्मा, नई दिल्ली। 'दीदी मैं भी खेलूंगी। मुझे भी आप जैसा बनना है। पर, मेरे पास न तो स्टिक है और न ही जूते। इन्हें खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं। मम्मी दिन-रात मेहनत मजदूरी करके हम तीनों बहनों को पाल रही है। मैं उनका बोझ कम करना चाहती हूं। प्लीज मुझे भी हॉकी खेलना सिखाइए।' दस साल की बच्ची की यह बातें सुनकर अर्जुन अवार्डी प्रीतम सिवाच की आंखें नम हो गई। उन्होंने बच्ची को गले लगाया और अकादमी ले गई। बच्चों के पुराने जूते और स्टिक बच्ची को थमाई। उसका चेहरा खुशी से खिल उठा और कूद गई मैदान में। उसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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    यह कहानी है हरियाणा के सोनीपत जिले की 17 साल की हॉकी खिलाड़ी नेहा गोयल की। नेहा राष्ट्रीय और जूनियर स्तर पर अपनी चमक बिखेरने के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना लोहा मनवाने को तैयार है। उधार के जूतों और स्टिक से सात साल पहले अपना करियर शुरू करने वाली फॉरवर्ड नेहा का चयन पहली बार सीनियर राष्ट्रीय टीम के लिए हुआ जो 27 अप्रैल से चार मई के बीच ग्लास्गो में होने वाले एफआइएच चैंपियंस चैलेंज में खेलेगी। सिवाच कहती हैं, 'नेहा और उसकी मां ने बहुत कष्ट झेले हैं। अपना सपना पूरा करने के लिए नेहा ने कड़ी मेहनत की है। उसका फल अब उसे मिला है।' सावित्री कहती हैं, 'मैंने कुछ नहीं किया सिर्फ मां होने का फर्ज निभाया है। यह तो नेहा की लगन और मेहनत है जो वह यहां तक पहुंची है। मैं तो मजदूरी करती थी। दो वक्त का खाना भी बमुश्किल से जुटा पाती थी। तीन बेटियों की परवरिश करना आसान नहीं था। लेकिन मैंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। दिन रात मेहनत की और जो हो सका वह किया। बेटियों ने भी पूरा साथ दिया।' सावित्री गर्व से कहती हैं कि अब बेटियां मुझे मजदूरी करने नहीं करने देतीं। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। उससे छोटी ब्यूटी पॉर्लर में काम करती है। उसे 2500 रुपये मिलते हैं। उससे घर का गुजारा चल रहा है। नेहा टूर्नामेंट खेलने जाती है जिससे वह अपने कॉलेज की फीस और खर्च चलाती है। घर में भी मदद करती है। वह कहती हैं कि नेहा की कप्तानी में हाल ही में हरियाणा की जूनियर टीम ने स्वर्ण पदक जीता है। वह बहुत अच्छा खेलती है। अब तो लोग मुझे नेहा की मम्मी के नाम से जानने लगे हैं। बहुत अच्छा लगता है। भगवान करे वह इसी तरह आगे बढ़ती रहे।

    'मां को दूंगी हर खुशी':

    पटियाला में टीम के साथ तैयारियों में जुटी नेहा कहती हैं, 'मुझे यहां तक पहुंचाने के लिए मां ने बहुत कष्ट सहे हैं। अब मैं उन्हें हर खुशी देना चाहती हूं। मंजिल की ओर यह मेरा पहला कदम है। अभी तो मुझे लंबा सफर तय करना है। खुद को साबित करना है। यह टूर्नामेंट मेरे लिए चुनौती है। मैं सर्वश्रेष्ठ देने का पूरा प्रयास करूंगी। मिले मौके को हाथ से नहीं जाने दूंगी। इस टूर्नामेंट में किया गया मेरा बेहतर प्रदर्शन मेरे लिए आगे के रास्ते खोल देगा। इसके बाद राष्ट्रमंडल और एशियाई खेल होने हैं। मैं इन दोनों टूर्नामेंटों में देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती हूं।

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