Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इस साधना के बारे में पढ़के आपके रोंगटे हो जाएंगे खड़े, करनी पढ़ती है घोर तपस्या

    By Abhishek Pratap SinghEdited By:
    Updated: Fri, 10 Jun 2016 05:35 PM (IST)

    उत्तरी जापान के कई हिस्सों में ऐसी चीज दखने को मिली है जिसमें लोग साधना को प्राप्त करने के लिए वो सबसे पहले अपने नियमित भोजन का त्याग करते हैं। इसके ब ...और पढ़ें

    Hero Image

    तपस्या या समाधि में बैठना आसान काम नहीं होता है। इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ित और मोहमाया को त्यागना पड़ता है। यह कितना कठिन है इसे बौद्ध भिक्षुओं से ज्यादा कोई और क्या जानेगा। जी हां आज हम बात कर रहे हैं बौद्ध भिक्षु के उस अंतिम सफर की....

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें


    6 साल तक कठोर तपस्या

    ये बौद्ध भिक्षु एक विशेष साधना जिसे Sokushinbutsu कहते हैं। यह साधना आसान नहीं होती है, इसके लिए 6 साल तक कठोर तपस्या करनी पड़ती है। उत्तरी जापान के कई हिस्सों में यह देखने को मिल जाता है। इस साधना को प्राप्त करने के लिए वो सबसे पहले अपने नियमित भोजन का त्याग करते हैं। ये लोग 1000 दिनों तक केवल बीज, फल और बादाम खा कर साधना की शुरुआत करते हैं। इसके साथ प्रतिदिन व्यायाम भी किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता था, ताकि शरीर से चर्बी घट जाए और साधना में किसी तरह की रुकावट न हो।

    पढ़ें- डार्क सर्कल हटाने के लिए किया कुछ ऐसा, गुब्बारे जैसी फूल गई आंखें

    फिर पीते हैं जहरीली चाय
    पहला चरण पूरा होने के बाद ये भिक्षु जहरीली चाय का सेवन करते हैं। जिससे कि उन्हें लगातार उल्टी होने लगती और शरीर का सारा तरल पदार्थ निकल जाता। ये चाय मरने के बाद भी शरीर से कीटाणुओं को कई सालों तक दूर रखती है।

    स्वेच्छा से प्राणों का त्याग
    साधना के अंतिम चरण तक पहुंचते ही बौद्ध भिक्षु ख़ुद को एक पत्थर के तुंब के नीचे कैद कर लेते थे और तब तक ध्यान योग करते थे, जब तक उनके प्राण न निकल जाएं। इस तुंब या मकबरे के नीचे एक छोटा-सा पाइप डाला जाता था जिससे भिक्षु को सांस लेने में मदद मिलती थी। इसके नीचे एक घंटी भी लगाई जाती है।

    पढ़ें- किन्नरों का जन्म क्यों होता है, जन्म कुंडली में छिपा होता है ये राज

    इस घंटी का मतलब था कि जब तक यह बजेगी तब तक भिक्षु जिंदा है। जब घंटी बजनी बंद हो जाती तो तुंब से उस पाइप को निकाल लिया जाता। और इसे सील कर दिया जाता था। इसके 1000 दिनों के बाद उसे खोला जाता और देखा जाता कि क्या भिक्षु अपनी तपस्या (Sokushinbutsu) में सफल हो पाया है या नहीं।

    पढ़ें- Warning: भूतों पर यकीन नहीं करते तो इस वीडियो को देखने के बाद करने लग जाएंगे!

    ऐसे माना जाता है सफल
    इस पूरी प्रक्रिया में भिक्षु को तभी सफल माना जाता है, अगर वह तुंब खोलने के बाद भी अपनी उसी मुद्रा में बैठा रहे। अगर ऐसा होता है तो उसे नजदीक के मंदिर में स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती। और जो सफल नहीं हो पाते उन्हें उसी मकबरे के तले में पुन: कैद कर दिया जाता है।

    रोचक, रोमांचक और जरा हटके खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें