यूजीसी से हटाए गए योगेंद्र यादव
आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव की दो पदों पर बने रहने की तमाम दलीलों व तर्को को खारिज करते हुए बुधवार को सरकार ने उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से हटा दिया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय कारण बताओ नोटिस पर यादव के लंबे-चौड़े जवाब से सहमत नहीं है। मंत्रालय की नजर मे
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव की दो पदों पर बने रहने की तमाम दलीलों व तर्को को खारिज करते हुए बुधवार को सरकार ने उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से हटा दिया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय कारण बताओ नोटिस पर यादव के लंबे-चौड़े जवाब से सहमत नहीं है। मंत्रालय की नजर में यादव के सभी तर्क बेमानी हैं।
पढ़ें: आप की सीएम प्रत्याशी होंगी बेदी! सरकार ने यूजीसी एक्ट के नियम-6 (अयोग्यता, सेवानिवृत्ति, सदस्य की सेवा शर्ते) में निहित अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए यादव को यूजीसी सदस्य पद से बर्खास्त कर दिया। यादव ने कारण बताओ नोटिस के जवाब में सवाल उठाया था कि क्या वह कांग्रेस पार्टी में शामिल होते तो भी सरकार उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करती। उनका एक तर्क यह भी था कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सोशलिस्ट पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद आचार्य नरेंद्र देव को यूजीसी का सदस्य बनाया था। मंत्रालय का कहना है कि वह तब की बात थी, जब यूजीसी एक्ट नहीं बना था। यह एक्ट 1956 में बना है। दूसरी बात, 1949 में डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में बने जिस यूनिवर्सिटी एजूकेशन कमीशन ने यूजीसी बनाने की सिफारिश की थी, उसने ही स्पष्ट कर दिया था कि आयोग को राजनीति से दूर रखा जाएगा, ताकि किसी संस्थान को अनुदान देने में नेता पक्षपात न कर सकें। मंत्रालय ने यादव को हटाने का एक आधार यह भी बनाया है कि पार्टी खड़ी करने के बाद उन्होंने न तो मंत्रालय के उच्चशिक्षा विभाग और न ही यूजीसी के सामने लिखित रूप में खुद के हटने की पेशकश की। अलबत्ता, एनसीईआरटी और स्कूली शिक्षा विभाग से खुद के हटने के लिए निदेशक, स्कूल शिक्षा को पत्र जरूर लिखा। वह भी पार्टी खड़ी करने से पहले।
सूत्र बताते हैं कि सरकार ने 1999 में एमएल सोढी को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएसएसआर) का चेयरमैन बनाया था। राजग सरकार ने 2002 में ऐसे ही कारणों से उन्हें हटा दिया था। मामला कोर्ट में गया और शीर्ष अदालत ने सरकार के फैसले को सही ठहराया, जबकि यूजीसी के अब तक के इतिहास में कोई ऐसा सदस्य नहीं रहा है, जो किसी राजनीतिक पार्टी को चलाता हो। ऐसे में यह नई नजीर नहीं बनाई जा सकती।
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