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    2019 के लोकसभा चुनाव में आखिर किस मुंह से उतरेगी कांग्रेस: जेटली

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Fri, 20 May 2016 09:37 PM (IST)

    कांग्रेस पर निशाना साधते हुए वित्‍तमंत्री अरुण जेटली ने कहा हैै कि इन चुनावों में सभी पार्टियां हाशिए पर चली गईं। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस क्‍या छुटभैया पार्टियों के साथ चुनाव लड़ेगी।

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    नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में बुरी तरह पराजित हुई कांग्रेस निशाना साधते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि विपक्षी पार्टी अब हाशिए पर चली गयी है। जेटली ने आश्चर्य जताया कि 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी क्या क्षेत्रीय दलों की खिचड़ी में शामिल होगी। जेटली ने अपने फेसबुक पर एक टिप्पणी में कांग्रेस पर सवाल दागते हुए कहा कि कांग्रेस कई नेताओं के साथ एक संस्थागत पार्टी बनेगी या फिर वंशवादी पार्टी बनकर सिमट जाएगी।

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    जेटली ने कहा कि 2014 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी लगातार हासिए पर जा रही है। इसकी वजह यह है कि इसने स्वाभाविक तौर पर सुशासन की पार्टी के तौर पर काम नहीं किया है। इसकी नीतियां अवरोधकारी रहीं जबकि इसके नेताओं का रवैया बड़बोलेपन का रहा। इस तरह कांगे्रस आज हासिए पर चली गयी है। ऐसे में 2019 भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के समक्ष कांग्रेस मुख्य चुनौती होगी या फिर यह क्षेत्रीय दलों की खिचड़ी में शामिल होगी? जेटली ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेता जिस सर्जरी के बारे में बात कर रहे हैं आखिर वह क्या है? ऐसे में कांगे्रस क्या नेताओं की पार्टी होगी या वंशवादी पार्टी बनकर रह जाएगी।

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    जेटली ने कहा कि पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के परिणाम उम्मीद के मुताबिक हैं। असम में भाजपा गठबंधन की जीत हुई है वहीं कांग्रेस की केरल और असम दोनों जगह हार हुई है। जेटली ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार नव निर्वाचित सभी पांच राज्यों की सरकार के साथ मिलकर काम करेगी।

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    जेटली ने एक अन्य कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आम आदमी पार्टी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आज ऐसी प्रवृत्ति देखने को मिल रही है कि राज्य सरकार विज्ञापन पर भारी भरकम खर्च कर रही हैं और चुनकर विज्ञापन दे रही हैं। पहली बार ऐसा हो रहा है कि सरकार अपने विपक्षी को निशाना बना रही है और मित्रों को इनाम दे रही है। इसलिए चुनिंदा और अंधाधुंध विज्ञापन देने की शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है। ऐसे में सवाल है कि इस तरह के विज्ञापन को राजनीतिक घूस माना जाए या राजनीतिक प्रोत्साहन? उन्होंने कहा कि अगर चुन-चुनकर भारी भरकम विज्ञापन देने का यह प्रयोग सफल होता है तो सभी राज्य इसका पालन करेंगे।

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