Move to Jagran APP

क्यों अमेरिका के खिलाफ नॉर्थ कोरिया में धधक रही है बदले की आग

आखिर नॉर्थ कोरिया अमेरिका के खिलाफ इतना आग बबूला क्यों है? वह अमेरिका से आखिर किस बात का बदला लेना चाहता है?

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sat, 20 May 2017 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 11:58 AM (IST)
क्यों अमेरिका के खिलाफ नॉर्थ कोरिया में धधक रही है बदले की आग
क्यों अमेरिका के खिलाफ नॉर्थ कोरिया में धधक रही है बदले की आग

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। नॉर्थ कोरिया जहां लगातार मिसाइल का परीक्षण कर सभी चेतावनी को दरकिनार करते हुए अमेरिका पर परमाणु बम हमले की धमकी दे रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने अपने विमान वाहक पोत कार्ल विल्सन को पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात कर कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। लेकिन, जेहन में सवाल ये उठता है कि आखिर नॉर्थ कोरिया अमेरिका के खिलाफ इतना आग बबूला क्यों है? वह अमेरिका से आखिर किस बात का बदला लेना चाहता है?

loksabha election banner

नार्थ कोरिया में है बदले की आग

इन बातों को जानने के लिए आपको कोरियाई इतिहास में झांकना होगा। दरअसल, पिछले करीब सात दशक से नार्थ कोरिया का किम का परिवार अमेरिका के खिलाफ भय दिखाकर वहां पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। नार्थ कोरियन प्रोपोगेंडा के जानकार और सिओल यूनिवर्सिटी में पढ़ानेवाले टेटिआना गेब्रुसेन्को का कहना है, “नॉर्थ कोरिया अभी में युद्ध की मानसिक स्थिति में जी रहा है और यह अमेरिका के खिलाफ एंटी प्रोपगेंडा युद्ध के समय से ही है।”

लेकिन, नॉर्थ कोरिया की बातों में काफी हद तक सच्चाई है। यह वो सच्चाई है जिसे नॉर्थ कोरिया को भली भांति याद है भले ही अमेरिका ने उसे भुला दिया हो या फिर या फिर कभी जानने की कोशिश ही ना की हो कि कोरियाई युद्ध कितना विनाशकारी था। 

ऐसे हुआ कोरिया का विभाजन

1910 में जापान ने कोरिया को अपना हिस्सा बना लिया। 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी और जापान घनिष्ठ साथी थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद मुख्य विजेता शक्तियों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (आज के रूस) ने कोरिया को जापान से छीन कर जर्मनी की ही तरह उस का भी विभाजन कर दिया।

यह भी पढ़ें: जानिए, किस देश के पास है कितने परमाणु हथियारों का जखीरा

नार्थ और साउथ कोरिया के बीच खिंची गई 38 अंश अक्षांश रेखा

कोरिया प्रायद्वीप पर यह विभाजन रेखा थी 38 अंश अक्षांश। इस अक्षांश के उत्तर का हिस्सा रूस और चीन की पसंद के अनुसार एक कम्युनिस्ट देश बना और बोलचाल की भाषा में उत्तर कोरिया कहलाया। दक्षिण का हिस्सा अमेरिका और उसके मित्र देशों की इच्छानुसार एक पूँजीवादी देश बना और दक्षिण कोरिया कहलाया। दोनो कोरिया अपने-अपने शुभचिंतकों पर आश्रित थे और किसी हद तक केवल शतरंजी मोहरे थे। उन्हें लड़ा रहे थे एक तरफ़ रूस और चीन और दूसरी तरफ़ अमेरिका और उसके यूरोपीय साथी।

नार्थ कोरिया में रूस और चीन का प्रभाव

उत्तरी क्षेत्र में रूस और चीन के समर्थन वाली साम्यवादी सरकार बनी जिसे नॉर्थ कोरिया कहा गया। परस्पर विरोधी विचारधारा वाली सरकार के गठन और रूस-चीन और अमेरिकी खेमों के दखल के साथ ही यह तकरीबन उसी समय तय हो गया था कि कोरिया के ये दो हिस्से जल्दी ही एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। उत्तर कोरिया ने पहले ही यह धमकी दे दी थी कि वह दक्षिण कोरियाई सरकार को गैरकानूनी मानता है।

नार्थ कोरिया का साउथ कोरिया पर हमला

25 जून 1950 को किम सुंग ने सोवियत संघ के उकसावे पर नॉर्थ कोरिया का नेतृत्व करते हुए सेना के बल पर कोरियाई प्रायद्वीप को फिर से मिलाने की कोशिश करते हुए साउथ कोरिया में आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में नार्थ कोरिया को काफी सफलता मिली भी। लेकिन, जब तक अमेरिका ने अपनी लेकिन इसी समय समय अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से एक प्रस्ताव पारित करवा लिया। इससे अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले सहयोगी देशों की सेना के साथ दक्षिण कोरिया की मदद करने का अधिकार मिल गया।

तीन साल तक चला युद्ध

इससे पहले कि पूरा दक्षिण कोरिया, किम इल सुंग के कब्जे में आता वहां अमेरिका के नेतृत्व में दस लाख सैनिक पहुंच गए। उसके बाद चीन इस युद्ध में शामिल हो गया और 38 अक्षांश रेखा तक अमेरिकी सेना को वापस जाने पर मजबूर कर दिया।  यह सब पहले छह महीनों तक चलता रहा। उसके बाद अगले ढ़ाई साल तक किसी भी पक्ष ने कोई भी जहमत नहीं उठाई। फिर, खूनी खेल के बाद साल 1953 में युद्ध की समाप्ति की घोषणा कर दी गई।इस युद्ध में अमेरिका के चलते नार्थ कोरिया के काफी सैनिक मारे गए और काफी बर्बादी हुई।

यह भी पढ़ें: ईरान पर प्रतिबंध के बाद अमेरिका के खिलाफ खुलकर सामने आया चीन

30 लाख लोग मारे गए या घायल हुए 

एक लेख में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के कोरियन इतिहास के प्रोफेसर चार्ल्स के. आर्मस्ट्रांग ने लिखा, “पूरे युद्ध के अंत में मरनेवाले, घायल और गुम हुए कोरियाई लोगों की संख्या करीब तीस लाख थी। यानि, कुल आबादी का करीब 10 फीसदी हिस्सा।” इसमें सबसे ज्यादा मरनेवालों की संख्या नॉर्थ कोरिया की थी जिनकी जनसंख्या में साउथ कोरिया की आबादी की तुलना में करीब आधी थी। लेकिन, यह युद्ध किसी शांति संधि के बिना ही खत्म हुआ। इसका मतलब यह है कि नार्थ और साउथ कोरिया आज भी उसी युद्ध के मुहाने पर खड़ा है।

नॉर्थ कोरिया की हुई थी भारी तबाही

अमेरिकी मिलिट्री लीडर्स ने उस वक्त कोरियाई युद्ध को लिमिटेड वॉर कहा क्योंकि उन्होंने इसे कोरियाई प्रायद्वीप के आगे नहीं फैलने दिया। लेकिन, उस प्रायद्वीप में भारी तबाही हुई खासकर नॉर्थ भाग में। अमेरिका ने 6,35,000 टन बमों को कोरिया में फेंका। वाशिंगटन पोस्ट के पूर्व संवाददाता ब्लैन हार्डेन ने 2015 में जो लिखा था उसके अनुसार, नॉर्थ कोरिया में जो भी चीजें चल रही थी उस पर अमेरिका ने बम फेंके चाहे वह एक ईंट पर दूसरी ईंट ही क्यों ना खड़ी हो। युद्ध के आखिर में नॉर्थ के शहरी क्षेत्रों को निशाना बनाने के बाद अमेरिका ने वहां के हाइड्रो इलैक्ट्रिक और सिंचाई बांध को बर्बाद कर दिया। उपजाऊ जमीन और फसल को बेकार कर दिया। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आर्मस्ट्रांग ने लिखा है कि मानवीय तबाही और जानमाल की क्षति दोनों ही तरफ व्यापक तौर पर हुई लेकिन नॉर्थ में अमिरिका की तरफ से की गई भारी बमबारी के चलते ज्यादा तबाही हुई।

अमेरिका विरोधी भावनाएं है नॉर्थ कोरिया का बडा़ औजार

किम शासक नॉर्थ कोरिया में इस स्थिति के लिए अमेरिका को कसूरवार मानकर लगतार वहां के लोगों को भय दिखा रहा है। खासकर उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का। लेकिन, यह उसे बाहरी खतरों के खिलाफ एकजुट करने में काफी मददगार भी साबित हो रहा है। सियोल में एसान इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज से एफिलिएटेड नार्थ कोरिया के शोधकर्ता पीटर वार्ड का कहना है, नॉर्थ कोरिया में अमेरिका के खिलाफ विचारधारा सरकार का एक बड़ा औजार है। उन्हें जरूरत है एक ऐसे दुश्मन और खलनायक बताने की जिस पर बंटवारे का ठीकरा फोड़ा जा सके। और इस स्थिति में वही बलि का बकरा बनाए जा रहे हैं।

यह भी पढ़ें: जानिए, पोखरण का वो पहला परीक्षण जिससे दहल उठी थी दुनिया


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.